Bissau Ki Mook Ramleela: कोई पात्र नहीं बोलता डायलॉग… विश्व प्रसिद्ध है राजस्थान के बिसाऊ की ये मूक रामलीला, मुस्लिम समुदाय बजाता है ढोल नगाड़े 

Bissau Ki Mook Ramleela: ये मूक रामलीला कब से शुरू हुई इसके पीछे कई कहानी हैं. इसके बारे में अलग तथ्य सामने आते हैं. कुछ का कहना है कि यह 200 साल पुरानी है तो कुछ 177 साल पहले शुरू होना बताते हैं.

Bissau ki Mook Ramleela
gnttv.com
  • झुंझुनूं,
  • 04 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:18 AM IST
  • शाम के उजाले में होता है मंचन
  • 200 सालों से चल रही मूक रामलीला

देश के अलग अलग क्षेत्रों में अपने-अपने अनूठे तरीके से रामलीला का मंचन किया जाता है. लेकिन इन सभी रामलीला से अलग एक और रामलीला है, जो राजस्थान के झुंझुनू जिले के बिसाऊ कस्बे में होती है. इस रामलीला का मंचन लगभग 200 साल से हो रहा है. इसकी खास बात है कि ये मूक है यानी इसमें पात्र डायलॉग नहीं बोलते हैं. इशारों से ही पूरी रामलीला का मंचन किया जाता है. साथ ही इस रामलीला का मंचन स्टेज की जगह खुले मैदान में किया जाता है, जो शाम के समय 4 बजे के बाद किया जाता है. 

इतिहास कई सौ साल का है इतिहास 
रामलीला में सभी पात्रों के द्वारा लीला का मंचन मुखौटे लगाकर किया जाता है. कई सौ सालों से चल रही इस मूक रामलीला का इतिहास आज भी कायम है. विदेशी सैलानियों के साथ साथ स्थानीय प्रवासियों को अपनी ओर होने आप ही खींच लाती है. रामलीला का मंचन भी 10 दिनों की बजाय 15 दिनों तक होता है. मूक रामलीला में सभी पात्र मुखौटो का प्रयोग करते हैं. साम्प्रदायिक सौहार्द की प्रतीक इस रामलीला में ढोल नगाड़े हमेशा से मुस्लिम समुदाय के लोगों के द्वारा ही बजाए जाते हैं. इन्हीं ढोल नगाड़ों की धुन पर पूरी रामलीला का मंचन किया जाता है.

रावण भी है सबसे अलग 
देश की सभी रामलीला में अहंकार में चूर होकर रावण अपनी तेज और डरावनी आवाज मे दहाडता है. रावण के साथ-साथ लंका के राक्षसों की आवाज भी दूर-दूर तक सुनाई देती है, मगर मूक रामलीला का रावण ऐसा नहीं है. ये बोलता नहीं है, मूक रहता है. हालांकि, ये पूरी कहानी वैसी ही होती है जैसे दूसरी रामलीला में होती है. मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र की मधुर आवाज भी इस रामलीला में नहीं सुनाई देती, ना ही अयोध्या के भजन सुनाई देते हैं. ये सिलसला लगातार पिछले 200 साल से चल रहा है. 

इतिहास से जुड़ी हैं जड़ें 
झुंझुनू जिले के बिसाऊ में हो रही मूक रामलीला का इतिहास खंगाला जाए तो कई रोचक जानकारियां सामने आती हैं. इस तरह की रामलीला का मंचन पूरे संसार में कहीं नहीं होता है. इस मूक रामलीला की शुरुआत रामाणा जोहड़ से हुई. फिर इसका मंचन गुगोजी के टीले पर होने लगा. बाद में काफी समय तक स्टेशन रोड पर हुई. साल 1949 से गढ़ के पास बाजार में मुख्य सड़क पर लीला का मंचन शुरू हुआ, जो वर्तमान में जारी है.

इतिहासकार क्या कहते हैं?
ये मूक रामलीला कब से शुरू हुई इसके पीछे कई कहानी हैं. इसके बारे में अलग तथ्य सामने आते हैं. कुछ का कहना है कि यह 200 साल पुरानी है तो कुछ 177 साल पहले शुरू होना बताते हैं. वही इस बारे में इतिहासकार त्रिलोकचन्द शर्मा कहते हैं कि यह रामलीला लगभग 177 साल पहले जमना नाम की एक साध्वी ने बिसाऊ के रामाणा जौहड से शुरू की थी. साध्वी जमना ने गांव के कुछ बच्चों को एकत्रित कर रामाणा जोहड़ में रामलीला का मंचन शुरू किया. उन्होंने अपने हाथ से पात्रों के लिए मुखोटे बनाए, लेकिन मुखौटा पहनने के बाद बच्चों को संवाद बोलने में दिक्कत होने लगी, तो उनसे मूक रहकर ही अपने पात्र की भूमिका निभाने को कहा गया. और इसी तरह बिसाऊ में मूक रामलीला की शुरुआत हुई, जो आज तक जारी है.

शुक्ल प्रथम से पूर्णिमा तक चलती है रामलीला
रामलीला की खास बात यह है कि यह शुक्ल प्रथम से पूर्णिमा तक चलती है. वहीं इस लीला में रावण दशहरे वाले दिन नहीं, बल्कि  चतुर्दशी को मरता है. साथ ही यहां की रामलीला में विजयादशमी की बजाय चतुर्दशी यानी दशहरे के चार दिन बाद रावण दहन होता है. साथ ही मूक रामलीला का मंचन आसोज शुक्ल प्रथम से पूर्णिमा तक 15 दिन तक होता है.

ढोल-नगाड़ों को मुस्लिम समुदाय के इल्लाही जाति के लोग बजाते हैं 
यह मूक रामलीला अपने आप में साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में भी जानी जाती है. त्रिलोकचंद शर्मा की मानें तो लीला का मंचन ढोल-नगाड़ों पर होता है, जो स्थानीय मुस्लिम समुदाय के इल्लाही जाति के लोग बजाते हैं. जहां लगभग सभी रामलीला में अमूमन हर दिशाओं में लाउड स्पीकर लगाए जाते हैं, मगर यहां एक भी लाउड स्पीकर नहीं लगाया जाता है. सभी पात्र अपना अभिनय मूक रहकर ही करते हैं. 

लकड़ी की अयोध्या सोने की लंका और मैदान के बीच रखी जाती है पंचवटी
मूक रामलीला का मंचन के दौरान एक पंचवटी व लंका की बनावट मैदान के उत्तरी भाग मे काठ (लकड़ी) की बनी हुई अयोध्या व दक्षिण भाग मे सुनहरे रंग की लंका तथा मध्य भाग मे पंचवटी रखी जाती है. मैदान में बालू मिट्टी डालकर पानी का छिड़काव किया जाता है. रामलीला शुरू होने के बाद चारों स्वरूप रामलीला हवेली से लकड़ी की बनी गाडी में आते हैं और लीला संपन्न होने के बाद उसी पर बैठ कर जाते हैं.

(विजय चौहान की रिपोर्ट)
 

 

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