अयोध्या स्थित भव्य श्रीराम मंदिर में 22 जनवरी को जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी तब दसों दिशाएं गूंज उठेंगी. इस असवर पर प्रधानमंत्री और विशिष्ट अतिथियों की मौजूदगी में संत-महंत मंगलकामना करेंगे. समारोह को खास बनाने के लिए मंगल ध्वनि होगी. इसमें देश के अलग-अलग राज्यों के विशिष्ट वाद्ययंत्रों का वादन किया जाएगा.
किन राज्यों से कौन वाद्ययंत्र होंगे शामिल
उत्तर प्रदेश से पखावज, बांसुरी और ढोलक, कर्नाटक से वीणा, पंजाब से अलगोजा, महाराष्ट्र से सुंदरी, ओडिसा से मर्दल, मध्य प्रदेश से संतूर, मणिपुर से पुंग,असम से नगाड़ा और काली, छत्तीसगढ़ से तम्बूरा, दिल्ली की शहनाई, राजस्थान का रावणहत्था, बंगाल का श्रीखोल, सरोद, आंध्र का घटम, झारखंड का सितार, गुजरात का संतार, तमिलनाडु का नागस्वरम, तविल, मृदंग और उत्तराखंड का हुड़का वाद्ययंत्र शामिल होंगे. इन वाद्ययंत्रों के समवेत स्वर से राम मंदिर में मंगल ध्वनि की जाएगी, जो अपने आप में पहली ऐसी मंगल ध्वनि होगी, जिसमें कई विलुप्त वाद्ययंत्रों का संयोजन किया गया है.
इतने बजे से होगा मंगल ध्वनि का भव्य वादन
श्रीराम तीर्थ ने अपने ऑफिशियल एक्स हैंडल पर इसकी जानकारी साझा करते हुए लिखा है कि भक्ति भाव से विभोर अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर होने वाली प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रातःकाल 10 बजे से मंगल ध्वनि का भव्य वादन होगा. 50 से अधिक मनोरम वाद्ययंत्र, विभिन्न राज्यों से, लगभग 2 घंटे तक इस शुभ घटना का साक्षी बनेंगे. अयोध्या के लेखक, साहित्य और संगीत के जानकर यतींद्र मिश्र ने इस भव्य मंगल वादन के परिकल्पना और संयोजन किया है. अलग अलग प्रदेशों के वाद्य यंत्रों को साथ लाने में केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली ने सहयोग किया है. यह भव्य संगीत कार्यक्रम हर भारतीय के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर का प्रतीक होगी, जो प्रभु श्री राम के सम्मान में विविध परंपराओं को एकजुट करने का कार्य करेगी.
शुभ कार्य से पहले होता है वादन
सुबह 10 बजे से प्राण-प्रतिष्ठा मुहूर्त के ठीक पहले तक, लगभग 2 घंटे के लिए राम मंदिर में शुभ की प्रतिष्ठा के लिए 'मंगल ध्वनि का आयोजन किया जाएगा. श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि हमारी भारतीय संस्कृति की परम्परा में किसी भी शुभ कार्य, अनुष्ठान, पर्व के अवसर पर देवता के सम्मुख आनन्द और मंगल के लिए पारम्परिक ढंग से मंगल ध्वनि का विधान रचा गया है. इसी सन्दर्भ में प्रभु श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा का यह श्रीअवसर, प्रत्येक भारतवासी के लिए शताब्दियों में होने वाला ऐसा गौरव का क्षण है, जब हम सम्पूर्ण भारत के विभिन्न अंचलों और राज्यों से वहां के पारम्परिक वाद्यों का वादन यहां श्रीरामलला के सम्मुख करने जा रहे हैं.