Saints of Mahakumbh: 97% तक खराब फेफड़ों ने भी नहीं तोड़ा हौसला, महंत इंद्र गिरी ऑक्सिजन सपोर्ट के साथ पहुंचे कुंभ 

दोनों फेफड़े खराब होने के बाद महंत को चार साल पहले ही डॉक्टरों ने सलाह दी थी कि वे आश्रम से बाहर न जाएं, लेकिन महंत ने अपनी इच्छाशक्ति और आस्था के बल पर महाकुंभ में आने का फैसला कर लिया.

gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 30 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:13 PM IST
  • 4 साल पहले डॉक्टरों ने दी थी सलाह 
  • ऑक्सिजन सपोर्ट के साथ पहुंचे कुंभ 

प्रयागराज के कुंभ मेले में लगातार देश भर से संत-महात्मा व अखाड़ों का आगमन जारी है. इसी क्रम में आवाहन अखाड़े के शिविर में श्री महंत इंद्र गिरी महाराज ने पहुंच कर सबको चौंका दिया. महंत इंद्र गिरी के दोनों फेफड़े 97% से ज्यादा खराब हैं, वे  इसके लिए ऑक्सिजन सिलेंडर का सपोर्ट लेते हैं. सिलेंडर के ही साथ वे हरियाणा के हिसार से कुंभ मेले में पहुंचे हैं. टूटती, उखड़ती सांसों से साथ श्री महंत का कुंभ और सनातन प्रेम को देख कर हर कोई उनके सामने नतमस्तक हो गया.

4 साल पहले डॉक्टरों ने दी थी सलाह 
दोनों फेफड़े खराब होने के बाद महंत को चार साल पहले ही डॉक्टरों ने सलाह दी थी कि वे आश्रम से बाहर न जाएं, लेकिन महंत ने अपनी इच्छाशक्ति और आस्था के बल पर महाकुंभ में आने का फैसला कर लिया. महंत इंद्र गिरी ने बताया कि यह कुंभ उनके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है. चाहे कुछ भी हो जाए वे तीनों शाही स्नान के बगैर वापस नहीं जाने वाले हैं. हरियाणा के हिसार से आए हुए इंद्र गिरी 4 दशक से आवाहन अखाड़े का महत्वपूर्ण अंग हैं.

कैसे हुए फेफड़े खराब?
इंद्र गिरी साल 2020 में पंच अग्नि धुनि तपस्या कर रहे थे. उन्होंने पांच तरफ कंडों से बने हवन कुंड के बीच बैठ कर तपस्या की थी. भीषण गर्मी के मौसम में पांच तरफ से बड़े हवन कुंड की आग से उनके शरीर आग की तरह तप रहा था. इस बीच उनके एक शिष्य ने अनजाने में उनके शरीर पर बाल्टी भर पानी डाल दिया जिसके बाद उन्हें बुखार आ गया और उनकी तबियत खराब हो गई. 

उन्हें डॉक्टरों ने बताया कि उनके दोनों फेफड़े खराब हो गए हैं. बाबा को डूबती सांसों के बीच ऑक्सीजन सिलेंडर लगाया गया, जिसके बाद से वो आज तक इस सिलेंडर के सहारे एक एक सांस गिन रहे हैं. 

1989 से लगातार कुंभ मेले में आ रहे हैं 
बता दें, महंत इंद्र पूरी 1989 से लगातार कुंभ मेले में आ रहे हैं. वो हर साल अपने शिविर में भंडारा चलाते हैं. इस हालत में होने के बाद भी उन्होंने किसी परंपरा को नहीं छोड़ा. वे आवाहन अखाड़े में पहुंचने वाले एक-एक शख्स को पूछ पूछ कर पंगत में बैठाते हैं और भोग प्रसाद लेने के बाद उन्हें दक्षिणा भी अपने हाथों से देते हैं. वे कहते हैं प्रयागराज के संगम तट पर कुंभ मेले में उनके प्राण भी चले जाएं तो उनके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाएंगे. 

(आनंद राज की रिपोर्ट )

 

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