सनातन धर्म में जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष माना गया है. इसके लिए शास्त्रों में तमाम साधन भी बताए गए हैं. उन साधनों के साथ-साथ सात पुरों का भी जिक्र किया गया जिनको हम सप्त पुरी कहते हैं.
मान्यता है कि देवों से जुड़ी ये नगरियां मोक्ष का द्वार मानी जाती हैं. कहते हैं कि सत युग से लेकर कलियुग तक इन सातों नगरियों का नाता किसी न किसी रूप में देवताओं के साथ रहा है. यही वजह है कि सनातन धर्म शास्त्र इन सभी सातों नगरियों को मोक्ष दायिनी सप्त पुरियां कहते हैं.
क्या है सप्तपुरी?
सभी सप्त पुरियां नदियों या पानी के बड़े स्रोत के किनारे हैं. इसलिए इन नगरों की महत्ता बढ़ गई. इन सभी सातों नगर का संबंध भगवान विष्णु और भगवान शिव से है. कहा जाता है कि इन सप्तपुरी जगहों पर जाने से मोक्ष मिल जाता है. आइए इन सप्तपुरी के बारे में जानते हैं.
1. कांचीपुरम
सप्तपुरियों में एक पुरी दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में भी है. इसे भगवान ब्रह्मा की नगरी कहते हैं. इसे कांचीपुरम भी कहा जाता है. पलार नदी के किनारे बसी ये धर्म नगरी न केवल आस्था का केंद्र रही है बल्कि धार्मिक शिक्षा का भी केंद्र रहा है.
कांचीपुरम एक तमिल शब्द है जो दो शब्दों कांची और "पुरम" से मिल कर बना है. कांची का अर्थ "ब्रह्म" और पुरम का अर्थ है "आवासीय स्थान" यानी ब्रह्मा को पूजने वाला पवित्र स्थान जो वेगावती नदी के तट पर है.
कांचीपुरम के कामाक्षी मंदिर की मान्यता शक्ति पीठ के स्वरूप में होती है. कहते हैं कि यहां मां सती का कंकाल गिरा था इसीलिए ये देव स्थान बन गया. मान्यता तो ये भी है कि कामाक्षी मंदिर के श्री चक्र की स्थापना आदिगुरू शंकराचार्य ने की थी.
2. उज्जैन
शिप्रा के तट पर बसी भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन को भी सप्तपुरियों में एक माना जाता है. माना जाता है कि इस धाम में जो भी भगवान महाकाल, भगवान भैरव और मां हिरसिद्धी के दर्शन करता है. इससे सारे पाप कट जाते हैं और वो मोक्ष का भागी बन जाता है.
वैसे तो सभी तीर्थों के राजा प्रयागराज को माना जाता है. महाकाल भगवान शिव की नगरी उज्जैन को सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है. उज्जैन में शिप्रा के तट पर भगवान महाकाल ज्योतिर्लिंग स्वरूप में विराजमान हैं. पूरे भारत में ये अकेला ऐसा देव स्थान है जहां रोजाना सुबह 4 बजे भस्म से भगवान शंकर की आरती की जाती है.
उज्जैन में भगवान शंकर के साथ साथ मां सती के दो शक्ति पीठ हैं. उज्जैन इसलिए भी सप्तपुरियों में शामिल है क्योंकि यहां समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरी थी. हर 12 साल में उज्जैन में भी कुंभ का मेला लगता है. यहां होने वाले कुंभ मेले को सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है.
3. अयोध्या
सप्त पुरियों में सबसे पहला नाम अयोध्या का आता है. सरयू नदी के तट पर बसे अयोध्या को भगवान राम की जन्म स्थली के लिए भी जाना जाता है. मान्यता है कि यही अयोध्या महाराजा मनु द्वारा बसाई गई पहली नगरी थी.
मोक्ष दायिनी सरयू के तय पर बसी अयोध्या कई युगों से आस्था का केंद्र रही है. स्कंद पुराण में इस नगरी के बारे में कहा गया है कि इस नगरी में ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों का समन्वित स्वरूप मिलता है. अथर्व वेद में इस नगरी को ईश्वर का नगर बताया गया है.
अयोध्या शब्द के वर्णन में स्कंद पुराण में व्याख्या मिलती है. अयोध्या का अर्थ 'अ' कार ब्रह्मा का स्वरूप है 'य' कार विष्णु का स्वरूप है 'ध' कार रुद्र यानी शिव का स्वरूप है. अयोध्या यूं तो सदैव किसी न किसी आयोजन में व्यस्त रहती है लेकिन श्रीरामनवमी, श्रीजानकीनवमी, गुरुपूर्णिमा, सावन झूला, कार्तिक परिक्रमा, श्रीरामविवाहोत्सव जैसे उत्सव प्रमुखता से मनाये जाते हैं.
4. मथुरा
अयोध्या को तृप्त कर सरयू आगे मां गंगा में विलीन हो जाती हैं. उसी गंगा में जिसमें मिलकर मां यमुना प्रयागराज को तीर्थराज बना देती हैं. मां यमुना ही मथुरा को सप्त पुरियों में एक बनाती हैं. इस वजह से ये धाम मोक्षनगरी बन जाता है.
मथुरा के कण-कण में कान्हा का वास है. मथुरा में ही जेल में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था. वहीं गोकुल में भगवान कृष्ण ने अपनी बाल लीला से सभी को मोहित किया. पूरी मथुरा नगरी में आज भी द्वापर युग की परंपरा देखने को मिलती है.
गरुड़ पुराण में मथुरा को अन्य पुरियों से पहले स्थान प्राप्त है. पदम पुराण में मथुरा का महत्व सर्वोपरि मानते हुए कहा गया है कि यह पुरी देवताओं के लिये भी दुर्लभ है. 'गर्गसंहिता' में कहा गया है कि पुरियों की रानी कृष्णापुरी मथुरा बृजेश्वरी और तीर्थेश्वरी है.
5. हरिद्वार
सरयू या फिर यमुना, दोनों ही नदियां मां गंगा में विलीन होकर अपनी यात्रा का अंत करती हैं. एक कहानी शुरू होती है गंगा के किनारे बसे हरिद्वार से. हरिद्वार को भगवान के घर यानी हरि के द्वार का प्रवेश माना जाता है.
हरिद्वार से ही मां गंगा मैदानी इलाके में प्रवेश करती हैं. हरिद्वार से ही चार धाम यात्रा शुरू होती है. इसीलिए ये नगरी पवित्र और मोक्ष दायिनी मानी गई है. हरिद्वार का पौराणिक नाम माया था जिसे मायापुरी भी कहते थे.
हरिद्वार भगवान विष्णु का देव स्थान है तो यहां भगवान शंकर भी निवास करते हैं. हरिद्वार के पास कनखल को भगवान शंकर का ससुराल माना जाता है. ये प्रजापति दक्ष का राज्य था. जहां माता सती ने यज्ञ में अपनी देह का त्याग किया था. कनखल हरिद्वार में ही प्रजापति दक्ष ने धरती का पहला शिवलिंग स्थापित किया था.
6. काशी
भगवान शिव की नगरी काशी को भी सप्त पुरियों में एक माना गया है. मान्यता है कि यहां भगवान शंकर खुद प्राण त्यागने वाले को तारक मंत्र देते हैं. इसीलिए इस नगरी को मोक्ष नगरी कहा जाता है.
माना जाता है कि काशी दुनिया का सबसे पुराना शहर है. यहां भगवान शंकर विश्वनाथ स्वरूप में विराजमान रहते हैं. मां गंगा यहां शिव के मस्तक पर विराजमान अर्धचंद्राकार स्वरूप में बहती हैं. काशी सदियों से सनातन, ज्ञान, साहित्य, कला, संगीत, योग और ज्योतिष की आधिष्ठात्री नगरी मानी गई है.
काशी के कण-कण में शंकर हैं इसीलिए यहां शिव ज्योतिर्लिंग स्वरूप में विराजमान हैं. शिव के साथ मां शक्ति यहां मां अन्नपूर्णा और विशालाक्षी स्वरूप में दर्शन देती हैं. ऋग्वेद से लेकर शास्त्र पुराण उपनिषद ग्रंथ कोई भी हो हर ग्रंथ में काशी की महत्ता लिखी गई है.
7. द्वारका
विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण में द्वारका को केशव की नगरी कहा गया है. ये नगरी हिंदुओं के पवित्र चार धाम में से एक है. मान्यता है कि मोक्ष दायिनी द्वारका को माधव ने अपनी राजधानी बनाया था.
द्वारकाधीश मंदिर की महिमा सुबह 4 बजे से द्वारकाधीश मंदिर मंगला आरती के साथ शुरु होता है. रात की अंतिम शयन आरती के साथ ये मंदिर बंद हो जाता है. कहते हैं कि यहां पर भगवान को वृंदा यानी तुलसी की माला चढ़ाई जाती है. यहां तुलसी का ही भोग लगाया जाता है.
कहते हैं कि इस मंदिर में ध्वजा चढ़ाने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. देश और दुनिया से श्रद्धालु इस मंदिर में ध्वजा चढ़ाने लोग आते हैं. साथ में राधे-राधे का सुमिरन करते हैं. इससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.