देश और दुनिया में भगवान भोलेनाथ के प्रमुख पूजा स्थलों में से विख्यात 800 साल से भी ज्यादा पुराने हुगली के तारकेश्वर के विख्यात शिव मंदिर में आस्था और भक्ति का गजब नजारा देखने को मिलता है. सावन महीने में तारकेश्वर मंदिर में भगवान शिव पर जलाभिषेक करने के लिए तारकेश्वर में लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है. इस मंदिर के पवित्र तालाब दूधपुकर के साथ भी अनोखी मान्यताएं जुड़ी हैं. कहा जाता है कि सुहागिन महिलाओं से लेकर कुंवारी कन्याएं उपवास रहकर दूध व पवित्र गंगा जल से शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से उनके मन की सारी मुरादें पूरी हो जाती हैं.
इसके अलावा तारकेश्वर मंदिर प्रांगण में बाबा भोलेनाथ की सवारी के रूप में विख्यात नंदी और भृंगी का सजीव जलाभिषेक करने पर परिवार में सुख समृद्धि और शांति का वास होता है. इस मंदिर में महिलाएं अपनी संतान और परिवार के लिए मन्नत पूरी होने पर पवित्र दूधपुकर में स्नान करके और डंडी काटकर भगवान भोलेनाथ का शुक्रिया अदा करती हैं.
हुगली के तारकेश्वर का विख्यात भोलेनाथ मंदिर भगवान शिव को दिया गया नाम है और मंदिर भगवान शिव को विशेष रूप से समर्पित है, जिन्हें मंदिर में भगवान भोलेनाथ के नाम से पूजा जाता है. यह मंदिर भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और हुगली जिले के तारकेश्वर शहर में स्थित है.
अचला शैली में किया गया है निर्माण
मंदिर का निर्माण राजा भारमल्ला ने 1729 ई. में करवाया था. अचला पश्चिम बंगाल की वास्तुकला शैली है और मंदिर का निर्माण उसी शैली में किया गया है. मंदिर के उत्तर में दूधपुकर जल कुंड स्थित है, जिसे एक पवित्र कुंड माना जाता है और लोग मोक्ष पाने और अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दूधपुकर जल कुंड में डुबकी लगाते हैं.
परिसर में लक्ष्मीनारायण और मां काली का भी मंदिर
इसके अलावा मंदिर परिसर में लक्ष्मीनारायण और मां काली का भी मंदिर है. मंदिर को एक विशिष्ट बंगाली शैली में बनाया गया है जिसमें एक आंतरिक मंदिर और मंदिर के सामने एक बालकनी है. बालकनी में संगमरमर का एक मार्ग है और बालकनी चार तरफ से है तथा बालकनी के ठीक सामने भक्तों के बैठने और ध्यान करने के लिए एक बड़ा हॉल है.
भोलेनाथ से मांगते हैं वर
यह मंदिर भारत के सबसे ज़्यादा लोकप्रिय तीर्थस्थलों में से एक है और लोग अपनी ढेरों इच्छाएं पूरी करने के लिए यहां आते हैं. वे सभी देवी-देवताओं में सबसे दयालु भोलेनाथ से मोक्ष, धन, ज्ञान, विभिन्न भौतिकवादी वस्तुएं, शांति, बीमारियों से मुक्ति और बहुत कुछ मांगते हैं.
मंदिर का इतिहास 18 वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है, ऐसा माना जाता है कि यह वह समय था जब भगवान शिव अपने भक्त के सपने में आए और उनसे कहा कि वे तारकेश्वर शहर के जंगल में गहरे शिवलिंग की खोज करें और उस स्थान पर भगवान शिव का मंदिर भी बनवाएं. बाद में मंदिर का निर्माण स्वयंभू लिंग के पास किया गया जिसे बाबा तारकनाथ कहा जाता है.
भगवान ने सपने में आकर शिवलिंग खोजने को कहा
ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव के एक परम भक्त विष्णु दास अयोध्या से तारकेश्वर तक यात्रा करते रहे. एक दिन उनके भाई को मंदिर में एक जगह मिली जहां उनकी गाएं हर दिन दूध देती थीं. जब उन्होंने उसी जगह पर एक शिव लिंग देखा तो उन्हें और आश्चर्य हुआ. ऐसा माना जाता है कि उन्हें शिवलिंग के बारे में तब पता चला जब भगवान ने उन्हें सपने में लिंग खोजने के लिए कहा और इस तरह, गांव वालों ने उस जगह पर एक मंदिर बनाने का फैसला किया.
-भोलानाथ साहा की रिपोर्ट