Sawan Special: क्या हैं भगवान शिव के पांच प्रतीक और इनका महत्व

हिंदू धर्म में भगवान शिव के पांच प्रतीक माने गए हैं. इन प्रतीकों में उनका डमरू, त्रिशूल, उनका तिलक-त्रिपुंड, भस्म और रूद्राक्ष. जानिए इन पांच प्रतीकों का क्या महत्व है.

Mahadev
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 30 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 7:43 AM IST

भगवान शिव को भोलेबाबा, महादेव और शंकर भगवान जैसे कई नामों से जाना जाता है. सोमवार का दिन शिवजी को ही समर्पित है. और सावन का पूरा महीना भक्तजन उन्हीं की भक्ति में लीन रहते हैं. शिवजी की स्वरूप हिंदू धर्म के सभी भगवानों में सबसे निराला है. उनकी लंबी जटाएं हैं जिनमें से गंगा निकलती है और उनके मस्तक पर चंद्र भी सजा हुआ है. भगवान शिव की तीन आंखें हैं और गले में वह रूद्राक्ष के साथ-साथ सर्प भी धारण करते हैं. शरीर पर भस्म लगाते हैं, एक हाथ में डमरू तो दूजे में त्रिशूल... शिवजी के रूप की महिमा एकदम निराली है. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं उनके पांच प्रतीकों के बारे में. 

शिवजी के पांच प्रतीक हैं- डमरू, त्रिशूल, त्रिपुंड, भस्म और रूद्राक्ष. भोलबाबा के ये पांच प्रतीक बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिनके बारे में जानना जरूरी है. 

महादेव के डमरू का महत्व 
भगवान शिव ही नृत्य और संगीत के प्रवर्तक हैं. शिव जी के डमरू में न केवल सातों सुर हैं बल्कि उसके अन्दर वर्णमाला भी है. शिव जी का डमरू बजाना आनंद और मंगल का द्योतक है. वे डमरू बजाकर भी खुश होते हैं और डमरू सुनकर भी. नित्य अगर घर में शिव स्तुति डमरू बजाकर की जाए तो घर में कभी अमंगल नहीं होता. 

महादेव के त्रिशूल का महत्व
दुनिया की कोई भी शक्ति हो- दैहिक, दैविक या भौतिक, शिवजी के त्रिशूल के आगे नहीं टिक सकती. शिव का त्रिशूल हर व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार दंड देता है. घर में सुख0समृद्धि के लिए, मुख्य द्वार के ऊपर बीचों बीच त्रिशूल लगायें या बनायें. त्रिशूल आकृति तभी धारण करें, जब आप का मन, वचन और कर्म पर पूर्ण नियंत्रण हो.  

महादेव के तिलक "त्रिपुंड" का महत्व  
सतोगुण , रजोगुण और तमोगुण तीनों ही गुणों को नियंत्रित करने के कारण , शिवजी त्रिपुंड तिलक प्रयोग करते हैं. यह त्रिपुंड सफ़ेद चन्दन का होता है. कोई भी व्यक्ति जो शिव का भक्त हो, त्रिपुंड का प्रयोग कर सकता है. त्रिपुंड के बीच में लाल रंग का बिंदु, विशेष दशाओं में ही लगाना चाहिए. ध्यान या मंत्र जाप करने के समय त्रिपुंड लगाने के परिणाम अत्यंत शुभ होते हैं. 

महादेव की भस्म का महत्व
भगवान शिव इस दुनिया के सारे आकर्षणों से मुक्त हैं. उनके लिए ये दुनिया, मोह-माया, सबकुछ राख के समान है. सबकुछ एक दिन भस्मीभूत होकर समाप्त हो जाएगा- भस्म इसी बात का प्रतीक है. शिव जी का भस्म से भी अभिषेक होता है, जिससे वैराग्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है. घर में धूप बत्ती की राख से, शिव जी का अभिषेक कर सकते हैं. परन्तु महिलाओं को भस्म से अभिषेक नहीं करना चाहिए. 

महादेव के आभूषण रुद्राक्ष का महत्व
रुद्राक्ष का अर्थ है - रूद्र का अक्ष. माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रुओं से हुई है. रुद्राक्ष को प्राचीन काल से आभूषण के रूप में, सुरक्षा के लिए, ग्रह शांति के लिए और आध्यात्मिक लाभ के लिए प्रयोग किया जाता रहा है. कुल मिलाकर मुख्य रूप से 16 प्रकार के रुद्राक्ष पाए जाते हैं, परन्तु 12 मुखी रुद्राक्ष विशेष रूप से प्रयोग में आते हैं. रुद्राक्ष कलाई, कंठ और ह्रदय पर धारण किया जा सकता है. इसे कंठ प्रदेश तक धारण करना सर्वोत्तम होगा. कलाई में बारह, कंठ में छत्तीस और ह्रदय पर एक सौ आठ दानो को धारण करना चाहिए. एक दाना भी धारण कर सकते हैं पर यह दाना ह्रदय तक होना चाहिए तथा लाल धागे में होना चाहिए. 

रुद्राक्ष को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को या किसी भी सोमवार को धारण कर सकते हैं. फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी अर्थात शिवरात्री को रुद्राक्ष धारण करना सबसे उत्तम होता है. रुद्राक्ष धारण करने के पूर्व उसे शिव जी को समर्पित करना चाहिए और उसी माला या रुद्राक्ष पर मंत्र जाप करना चाहिए . जो लोग भी रुद्राक्ष धारण करते हैं उन्हें सात्विक रहना चाहिए और आचरण को शुद्ध रखना चाहिए अन्यथा रुद्राक्ष लाभकारी नहीं होगा. 

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