45 दिनों के बाद एक बार फिर शनिदेव अपनी चाल बदल रहे हैं. वो भी पूरे 141 दिनों के लिए. शनिदेव एक बार फिर मार्गी से वक्री होने जा रहे हैं. शनि की चाल वक्री क्यों होती है. इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है. साथ ही शनि की वक्री चाल के अच्छे और बुरे दोनों प्राभाव होते हैं.
शनिदेव चलेंगे उल्टी चाल-
न्याय के देव हैं शनिदेव. शनिदेव कर्मों का फल देते हैं. लेकिन अब शनिदेव अपनी चाल बदलने वाले हैं. शनिदेव अपनी सीधी चाल को बदलकर पूरे 141 दिनों तक उल्टा चलेंगे.
ग्रहों की मार्गी और वक्री चाल-
ज्योतषीय मान्यता है कि जब शनिदेव वक्री होते हैं तो काफी कष्ट में होते हैं इसीलिए शनिदेव को नाराज नहीं करना चाहिए. अब आपको यहां ये भी जान लेना चाहिए ज्योतिष में ग्रहों की चाल दो तरह की रहती है.
वैसे तो वक्री शनि अगर अशुभ हों तो अशुभ परिणाम ही देते हैं. लेकिन अगर वक्री शनि शुभ हों तो कार्य क्षेत्र में तरक्की मिलती है. वहीं अशुभ होने पर कार्यों में रुकावट आती हैं.
वक्री शनि को कैसे मनाएं ?-
शनि की वक्री चाल के समय भी शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है. वहीं जो व्यक्ति धर्म के काम करता है उसको भी शनि कष्ट नहीं पहुंचाते हैं. शनि के बारे में मान्यता है कि ये लोगों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं. इसलिए 5 जून के बाद आपको भी वक्री शनि को मनाने के लिए ये उपाय करने होंगे.
जून में बदलेगी 4 ग्रहों की चाल-
जून के महीने में केवल शनि देव ही अपनी चाल में परिवर्तन नहीं क रहे हैं. बल्कि जून के महीने में चार और ग्रह अपनी चाल बदलने वाले है.
शनिदेव आखिर टेढ़ी चाल क्यों चलते हैं. इसके पीछे पौराणिक मान्यता है कि शनिदेव शापित हैं. शनिदेव की मां संध्या ने शनिदेव को पैर के टूट जाने का श्राप दिया था. लेकिन शनिदेव के पिता सूर्यदेव ने इस श्राप का प्रायश्चित बताकर शनिदेव को बचा लिया था. तभी से कहते हैं कि शनिदेव के पैरों में दोष है जिसकी वजह से वो टेढ़ी चाल चलते हैं. और आने वाली 5 जून को एक बार फिर शनिदेव अपनी चाल बदलने वाले हैं.
शनिदेव के पैर टूटने की क्या है कथा-
शनिदेव की चाल टेढ़ी है. जिसके पीछे की कथा कहती है कि शनिदेव भगवान सूर्य के पुत्र हैं. लेकिन सूर्य देव की पत्नी और शनिदेव की मां छाया सूर्य देव का तेज नहीं सह पाती हैं. इसीलिए वो अपनी जुड़वा संध्या का निर्माण करती हैं और अपने मायके चली जाती हैं. इस हिदायत के साथ कि संध्या कभी भी सूर्यदेव को सत्य का पता नहीं चलने देंगी. लेकिन संध्या शनिदेव से ज्यादा अपनी संतान का ध्यान रखती हैं. एक दिन शनिदेव ने तेज भूख में मां संध्या से खाना मांगो तो मां ने भोजन में देरी बताकर प्रतीक्षा की बात कही. शनिदेव इस पर अपार क्रोधित हो गए और अपनी मां पर अपने पैर से प्रहार कर दिया. इस पर मा संध्या ने शनिदेव को उनके पैर टूट जाने का श्राप दे दिया. पैर टूटने की असहनीय पीड़ा में शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव को पुकारा. सूर्य देव को शनिदेव ने श्राप के बारे में बताया. इस पर सूर्यदेव ने शनिदेव के पैर को टूटने से तो बाचा लिया. लेकिन अपनी शक्ति यों से उनके पैर को पूरी तरह से ठीक न कर सके. तभी से शनिदेव के पैरों में त्रुटि रह गई और शनिदेव तभी से टेढ़ी चाल चलते हैं.
शनि के लिए छाया दान-
शनिदेव की दृष्टि के प्रभाव से बचने के लिए सबसे आसान और शुभकारी उपाय छायादान को बताया गया है. ऐसा कहा जाता है कि भूतकाल की गलतियों से मिलने वाली सजा से बचने के लिए छाया दान किया जाता है. इससे व्यक्ति को सही राह पर चलने की प्रेरणा मिलती है. तो चलिए अब आपको बताते हैं कि शनि के शुभ प्रभावों को पाने के लिए कैसे, कब और क्यों छाया दान करना चाहिए.
शनि की अशुभ छाया के प्रभाव-
शनि का प्रतिकूल होना बहुत कष्टकारी हो सकता है. जिस भी जातक पर व्यक्ति पर शनि की अशुभ छाया रहती है. वो कई परेशानियों से घिर जाता है.
शनि के अशुभ प्रकोप से बचने के लिए सबसे उत्तम साधन है शनि का दान. छाया दान के विधि विधान के बारे में तो आपने जान लिया. लेकिन सप्त धान्य का दान भी शनि की चाल को अनुकूल बनाता है.
शनि दे को सप्त धान्य चढ़ाएं-
सप्त धान्य यानी कि सात अनाज का दान. कहते हैं कि शनि को सात अनाज का दान करने से शनि की प्रकोप शांत हो जाता है.
लेकिन शनि देव को सप्त धान्य इतना प्रिय क्यों है इसके पीछे की एक पौरणिक कथा है. एक बार शनिदेव आकाश में काफी चिंता में विचरण कर रहे थे. शनिदेव को चिंत देख कर नारद मुनि ने शनिदेव से चिंता का कारण पूछा. तो शनिदेव ने कहा कि कर्मों के फलों के अनुसार उनको सप्त ऋषियों के साथ न्याय करना है. इस पर नारद जी ने कहा कि कुछ भी करने से पहले शनिदेव को सप्त ऋषियों की परीक्षा लेनी चाहिए. शनिदेव को नारद जी की सलाह न्यायोचित लगी. इसीलिए उन्होने एक ब्रह्मण के भेष बनाया. और सप्त ऋषियों के पास पहुंच गए. शनि देव ने सप्त ऋषियों के सामने अपनी बुराई शुरू कर दी. ऐसे में सप्त ऋषियों ने कहा कि शनिदेव तो कर्मों का फल देते हैं. कर्मों के अनुसार फल देना तो न्यायोचित है. साथ ही वो सूर्य पुत्र हैं और उनके ऊपर भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है. ये सब बातें सुन कर शनिदेव प्रसन्न हुए और अपने स्वरूप में आकर सप्तऋषियों को दर्शन दिए. जिसके बाद सभी सप्त ऋषियों ने एक एक अनाज से शनिदेव की आराधान की और उनको उपहार दिया. जिससे शनिदेव काफी प्रसन्न हुए और कहा कि जो भी जातक सप्त धान्य से मेरी पूजा आराधना करेगा मेरी दृष्टि से उसे राहत मिलेगी. तभी से शनिदेव की आराधना में सप्त धान्य के चढ़ावे का विधान बताया गया है.
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