Shattila Ekadashi 2022: तिल दान करने से होती है पुण्य की प्राप्ति, जानें इस व्रत की विधि और इसके पीछे की कथा

षटतिला एकादशी पर भगवान विष्णु की आराधना करने और व्रत-पूजा एवं तिल दान करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है. शातातप स्मृति ग्रंथ के अनुसार, इस दिन तिल का प्रयोग 6 कामों में करने का विधान है. तिल सृष्टि का पहला अन्न भी है. इसलिए तिल के इस्तेमाल से शारीरिक परेशानियां भी दूर होने लगती है.

Shattila Ekadashi 2022
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 28 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST
  • तिल दान करने से होती है सुखों की प्राप्ति
  • व्रत के पीछे प्रचलित है कथा 
  • तिल से हवन करने का भी विधान

हर साल माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को हिंदू पंचांग के अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत मनाया जाता है. इस साल यह व्रत 28 जनवरी यानी शुक्रवार को मनाया जा रहा है. इस व्रत में तिल दान करना बेहद लाभकारी माना जाता है. हिंदू धर्म में षटतिला एकादशी का खास महत्व है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन यदि व्यक्ति 6 तरीकों से तिल दान करें, तो उसे हजारों वर्ष स्वर्ग में रहने का फल मिलता हैं. षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इस व्रत को विधि-पूर्वक करने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.

तिल दान करने से होती है सुखों की प्राप्ति 

कहा जाता है जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, षटतिला एकादशी का व्रत करने से उससे अधिक फल मिलता है. षटतिला एकादशी पर भगवान विष्णु की आराधना करने और व्रत-पूजा एवं तिल दान करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है. शातातप स्मृति ग्रंथ के अनुसार, इस दिन तिल का प्रयोग 6 कामों में करने का विधान है. तिल सृष्टि का पहला अन्न भी है. इसलिए तिल के इस्तेमाल से शारीरिक परेशानियां भी दूर होने लगती है. शास्त्रों में बताया गया है कि माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी समस्त पापों का नाश करती है. सनातन धर्म में एकादशी व्रत करने के कुछ नियम बताए गए हैं जिसका पालन करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है.

व्रत के पीछे प्रचलित है कथा 

इसकी कथा के अनुसार किसी नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी. वह भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्तिन थी. एक बार उस ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु का व्रत एक महीना रखा. 1 महीना व्रत रखने की वजह से उसका शरीर बेहद कमजोर हो गया. लेकिन ऐसा करने से उसका तन शुद्ध हो गया. ब्राह्मणी के शुद्ध तन को देखकर भगवान विष्णु ने सोचा कि क्यों न मैं इसका मन भी शुद्ध कर दू ताकि इसे विष्णु लोक में निवास करने का सौभाग्य मिल सकें. यह सोच कर भगवान विष्णु ब्राह्मणी के पास दान मांगने गए. लेकिन उस ब्राह्मणी ने भगवान को दान में मिट्टी का एक पिंड दे दिया और भगवान विष्णु ब्राह्मणी के दिए गए दान को लेकर वहां से चले गए. कुछ समय बाद ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई और वह सीधे विष्णु लोक पहुंच गई. विष्णु लोक पहुंचने के बाद उसे वहां रहने के लिए एक खाली कुटिया मिली. इसका कारण बताते हुए भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने अपने मनुष्य जीवन में कभी भी अन्य धन का दान नहीं किया. इसी वजह से तुम्हें स्वर्ग लोक में खाली कुटिया मिली है. यह सुनकर ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु से इस समस्या के समाधान के बारे में पूछा. तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मणी से कहा कि जब देवकन्या तुमसे मिलने आएंगी, तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत करने की विधि पूछ लेना और उस व्रत को विधि पूर्वक करना. तब ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु की बात सुनकर वैसा ही किया.

तिल से हवन करने का भी विधान

षटतिला एकादशी  के दौरान तिल से बनी वस्तुओं का सेवन करने से न सिर्फ पापों से मुक्ति मिलती है बल्कि मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. धर्म ग्रंथों के अनुसार, तिल का दान करने से भगवान विष्णु अपने भक्तों से प्रसन्न होते हैं और उन्हें मनोवांछित फल प्रदान करते हैं. षटतिला एकादशी  के दिन तिल मिले हुए जल से स्नान भी किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तिल के जल से स्नान करने से पाप से मुक्ति मिलती है. षटतिला एकादशी के दिन तिल से हवन करने का भी विधान है. तिल का हवन श्रद्धालुओं को सुख समृद्धि प्रदान करता है और श्री विष्णु भी प्रसन्न होते हैं. इसके अतिरिक्त तिल के हवन करने से पर्यावरण भी शुद्ध रहता है.


 

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