Geeta Jayanti 2021: श्रीकृष्ण के मैनेजमेंट सूत्र अपनाकर आप भी पा सकते हैं तरक्की

भगवान श्री कृष्ण के इस उपदेश से हमें मैनेजमेंट मंत्र मिलता है उसके अनुसार श्रेष्ठ व्यक्ति को हमेशा अपने पड़ और गरिमा के अनुसार ही व्यवहार या आचरण करना चाहिए. क्योंकि वह लोगों के लिए आदर्श हैं और वो जैसा करेंगे लोग भी वैसा ही अनुसरण करेंगे.

सांकेतिक तस्वीर
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 14 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 11:24 AM IST
  • आज गीता एकादशी है
  • हर साल मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष की एकादशी को मनाया जाता है

आज यानी 14 दिसंबर को गीता जयंती मनाई जा रही है. गीता में ऐसे ना जाने कितने उपदेश हैं जिनकी बदौलत आप अपने जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाकर तरक्की कर सकते हैं. इस लेख के ज‍र‍िये हम आपको ऐसे ही गीता के कुछ उपदेशों के बारे में बता रहे हैं. 

गीता जयंती हर साल मार्गशीर्ष यानी माघ महीने में शुक्लपक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. ऐसी मान्यता है क‍ि इस दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश दिये थे. उस समय मोहवश अर्जुन ने हथ‍ियार त्याग दिए थे. तब गीता के उपदेशों के ज‍र‍िये ही भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को धर्मानुसार कर्म करने की प्रेरणा दी. महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने जो उपदेश दिए थे, इनमें मैनेजमेंट के सूत्र छिपे हुए हैं. इस सूत्रों को समझकर कोई भी इंसान अपने जीवन में छोटे छोटे बदलावों से उन्नति कर सकता है. 

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।

कहने का तात्पर्य है क‍ि श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं, सामान्य पुरुष उसी को आदर्श मानकर उसका अनुसरण करते हैं.
भगवान श्रीकृष्ण के इस उपदेश से हमें मैनेजमेंट मंत्र मिलता है उसके अनुसार श्रेष्ठ व्यक्ति को हमेशा अपने पद और गरिमा के अनुसार ही व्यवहार या आचरण करना चाहिए. क्योंकि वह लोगों के लिए आदर्श हैं और वो जैसा करेंगे, बाकी लोग भी वैसा ही अनुसरण करेंगे. 


विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:।
निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।।

यानी जो मनुष्य अपनी दिली ख्वाहिश को त्यागकर ममता रहित और अहंकार रहित होकर अपने कर्तव्य निभाता है, उसे ही शांति मिलती है. यहां भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार जिस मनुष्य के मन में किसी प्रकार की इच्छा या कामना होती है, उसे कभी सुख शांति प्राप्त नहीं होती. इसल‍िए सुख-शांति हास‍िल करने के लिए इंसान को सबसे पहले अपनी इच्छाओं का त्याग करना होगा. हम कर्म के साथ उसके आने वाले परिणाम के बारे में सोचते हैं जो हमें कमजोर बनाता है. लेकिन हमें परिणाम की चिंता न करके अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए, जिससे हम अपने कर्तव्य का पालन कर सकें

न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्म संगिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्त: समाचरन्।।

इसका मतलब यह हुआ क‍ि ज्ञानी पुरुष, कर्मों में आसक्त अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम पैदा न करे, स्वयं (भक्ति से) युक्त होकर कर्मों का सम्यक् आचरण कर, उनसे भी वैसा ही कराये. भगवान कृष्ण का ये श्लोक आज के समय पर एकदम सटीक बैठता है. क्योंकि आज हर क्षेत्र में कड़ी टक्कर है. हर कोई आगे बढ़ने की होड़ में लगा हुआ है. ये देखा जाता है कि दफ्तर में जो चतुर होते हैं वो अपने साथी को कोई भी कोशिश करने से रोकते हैं और खुद मौका पाकर आगे निकल जाते हैं. मगर श्रेष्ठ वही होता है, जो अपने कार्यों से दूसरे के लिए आदर्श बन जाए.

 

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