Surya Grahan 2025: सूर्य ग्रहण आखिर क्यों लगता है? सिर्फ वैज्ञानिक ही नहीं, रामायण-महाभारत और समुद्र मंथन से भी है इसका संबंध, जानिए कैसे

Solar Eclipse: इस साल का पहला सूर्य ग्रहण 29 मार्च को लगेगा, जो आंशिक होगा. सूर्य ग्रहण का विज्ञान और हिंदू धर्म से गहरा संबंध है. रामायण, महाभारत और पुराणों में सूर्य ग्रहण से जुड़ी कई कहानियां हैं. आइए इन रोचक कथाओं के बारे में जानते हैं. 

Surya Grahan
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 28 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 5:02 PM IST
  • साल 2025 का पहला सूर्य ग्रहण लगने जा रहा 29 मार्च का 
  • विष्णु पुराण और भागवत पुराण में भी सूर्य ग्रहण का है उल्लेख 

Surya Grahan Kyon Lagta Hai: साल 2025 का पहला सूर्य ग्रहण 29 मार्च दिन शनिवार को लगने जा रहा है. यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा, इसलिए सूतक काल भी मान्य नहीं होगा. सूतक काल को अशुभ माना जाता है. इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. इस बार सूर्य ग्रहण भारतीय समयानुसार 29 मार्च को दोपहर 2:21 बजे से लेकर शाम को 6:14 बजे तक रहेगा. आइए जानते हैं सूर्य ग्रहण का विज्ञान, रामायण, महाभारत और समुद्र मंथन से क्या है संबंध?

सूर्य ग्रहण का विज्ञान से संबंध 
सूर्य ग्रहण एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है. वैज्ञानिक दृष्टि से जब चंद्रमा, हमारी पृथ्वी और सूर्य के बीच से होकर गुजरता है तो चंद्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढक जाता है. इससे सूर्य की रोशनी धरती पर नहीं पहुंच पाती है. इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है. आपको मालूम हो कि पृथ्वी, सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा हमारी पृथ्वी की परिक्रमा करता है. 

सूर्य ग्रहण का समुद्र मंथन से संबंध 
पुराणों और अन्य हिंदू धर्म शास्त्रों में सूर्य ग्रहण का उल्लेख मिलता है. विष्णु पुराण और भागवत पुराण में बताया गया है कि जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था तो उसमें से 14 रत्न निकले थे. इनमें अमृत कलश को लेकर धन्वंतरि निकले थे. इसे पीने के लिए देवता और असुरों युद्ध शुरू हो गया. इसके बाद विष्णु भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत बांटा. उन्होंने एक चाल के तहत असुरों को अमृत देने से मना कर दिया और देवताओं को अमृत पिलाने लगे लेकिन इसी बीच देवता का रूप धारण करके स्वरभानु नामक असुर ने अमृतपान कर लिया. 

हालांकि सूर्य भगवान और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया. उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी भगवान विष्णु को दी. विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर को धड़ से अलग कर दिया. चूंकि स्वरभानु अमृत पीने में सफल रहा था. इसके कारण उसका शरीर अमर हो गया था. उसका सिर राहु और धड़ केतु के रूप में अस्तित्व में आया. उसी समय से राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा से बदला लेने के लिए पूर्णिमा और अमावस्या के दिन ग्रहण लगाते हैं.

सूर्य ग्रहण का रामायण से संबंध 
सूर्य ग्रहण का रामायण में भी वर्णन्न मिलता है. इसमें उल्लेख है कि जब प्रभु श्रीराम और रावण के बीच युद्ध हो रहा था. उस दौरान घनघोर सूर्य ग्रहण लगा था. चारों ओर अंधेरा का राज कायम हो गया था. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस ग्रहण के दौरान भगवान राम ने आदित्य हृदय स्रोत का पाठ किया था और सूर्यदेव से विशेष शक्तियां प्राप्त की थी. इसी शक्ति से भगवान राम ने रावण का वध किया था. 

सूर्य ग्रहण का महाभारत से संबंध 
सूर्य ग्रहण का महाभारत से भी संबंध बताया गया है. महाभारत में जिस समय कौरव और पांडव के बीच जुआ खेला जा रहा था उस वक्‍त भी सूर्य ग्रहण लगा हुआ था. युधिष्ठिर जुए में राजपाट संग अपने भाइयों और पत्‍नी द्रौपदी को भी हार गए थे. कौरव और पांडवों के बीच युद्ध के दौरान जयद्रथ वध के समय भी सूर्य ग्रहण लगा था. अर्जुन ने अपने पुत्र अभिमन्‍यु की हत्‍या का बदला लेने के लिए जयद्रथ का वध करने का प्रण लिया था. अर्जुन ने सूर्यास्त तक जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा ली थी. उन्होंने कहा था कि यदि वह सूर्यास्त तक जयद्रथ को नहीं मार पाए तो अग्निसमाधि ले लेंगे. 

इसके बाद कौरवों ने जयद्रथ की सुरक्षा के लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच बना दिया था. इसके कारण अर्जुन को युद्ध के मैदान में जयद्रथ दिख ही नहीं रहा था. धीरे-धीरे शाम होने के करीब आ रहा था. इसके बाद अर्जुन के सारथी भगवान कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से एक कृत्रिम सूर्य ग्रहण उत्पन्न कर दिया. इससे चारों ओर अंधेरा छा गया और कौरवों ने सोचा कि सूर्यास्त हो गया है. अर्जुन के सामने जयद्रथ यह कहते हुआ आ गया कि सूर्यास्त हो गया है अब तुम अग्निसमाधि लो. इसी बीच भगवान कृष्‍ण ने अपनी लीला से ग्रहण को समाप्त कर दिया और सूर्यदेव फिर से आसमान में चमकने लगे. अर्जुन ने पलक झपकते ही जयद्रथ का वध कर दिया. अर्जुन ने जयद्रथ का वध करके उसके सिर को धड़ से अलग करके उसके पिता के चरणों में गिरा दिया था.

 

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