शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को आज दी जाएगी भू-समाधि, भारत में साधु संतों के लिए अंतिम संस्कार के क्या हैं नियम

Swaroopanand Saraswati: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का सोमवार को निधन हो गया. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को उनके आश्रम में भू समाधि (Bhu-Samadhi) दिलवाई जाएगी.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 12 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:48 PM IST
  • स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भू-समाधि दी जाएगी. 
  • साधुओं को कैसे देते हैं भू-समाधि

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे. उन्हें आज शाम 5 बजे मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर में परमहंसी गंगा आश्रम में भू-समाधि दी जाएगी. शंकराचार्य के निधन से पूरे देश में शोकाकुल माहौल है. पीएम मोदी समेत देश की कई हस्तियों ने शंकराचार्य के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित की है.

हिन्दू धर्म में आम लोगों का अंतिम संस्कार जलाकर किया जाता है, लेकिन साधु-संतों के लिए अंतिम संस्कार के नियम अलग होते हैं. साधु-संतों का अंतिम संस्कार भू या जल समाधि देकर किया जाता है. शंकराचार्य के पार्थिव शरीर का दूध से अभिषेक होगा. इसेक बाद उनका श्रृंगार किया जाएगा फिर पालकी में बैठाकर समाधि स्थल तक लाया जाएगा. 

क्या होती है भू समाधि

संत समाज में अंतिम संस्कार संप्रदाय के मुताबिक होता है. वैष्णव संतों का ज्यादातर अग्नि संस्कार किया जाता है. साधु-संतों के लिए अग्नि का सीधे स्पर्श करने की मनाही रहती है. इसलिए मृत्यु के बाद पृथ्वी तत्व में या जल तत्व में विलीन करने की परंपरा है. भू-समाधि में पद्मासन या सिद्धिसन की मुद्रा में बिठाकर जमीन में दफनाया जाता है. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भी इसी तरह से भू-समाधि दी जाएगी. शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परंपरा के साधु-संतों को भू-समाधि दी जाती है. 

कैसे दी जाती है भू समाधि

संतों को समाधि देने के लिए गड्ढा खोदा जाता है, जिसे गाय के गोबर से लीपा जाता है. गड्ढे में नमक डाला जाता है. फिर उनसे जुड़ी खास चीजें गड्ढे में रखी जाती हैं. सन्यासी के शरीर पर घी और भस्म लगाया जाता है. ये इसलिए किया जाता है क्योंकि संतों का पूरा जीवन परोपकार के लिए होता है. और मरने के बाद उनका पार्थिव शरीर करोड़ों जीवों का आहार बनता है.

कौन थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 1924 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में हुआ था. स्वरूपानंद सरस्वती के बचपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था. वे अपने पांच भाइयों में सबसे छोटे थे. नौ साल की उम्र में ही उन्होंने अपना घर छोड़ दिया. घर त्यागने के बाद उन्हें करपात्री जी महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ. यहीं से उनके स्वरूपानंद सरस्वती बनने की यात्रा शुरू हुई. 1981 में स्वरूपानंद सरस्वती को शंकराचार्य की उपाधि मिली थी. 

 

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