Tirupati Kitchen Hall Potu: दुनिया के सबसे बड़े किचन में से एक है तिरुपति मंदिर का पोटु, 300 साल पुराने इसी रसोई घर में बनता है भगवान वेंकटेश्वर का भोग, हर दिन परोसी जाती है नई थाली

Tirupati Kitchen Potu: मंदिर की कथाओं और प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, पोटु को बहुत सोच समझकर बनाया गया है. ये रसोई मंदिर परिसर के सबसे अंदर वाले हिस्से में स्थित है. इसका उद्देश्य यह बताना था कि देवता के लिए खाना बनाना केवल एक काम नहीं बल्कि एक अनुष्ठान है.

Tirupati Temple
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:19 PM IST
  • हर बार नई प्लेट में दिया जाता है खाना 
  • हर प्रसाद का समय और बनाने का तरीका है अलग 

तिरुमला पहाड़ियों पर स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर, न केवल सबसे ज्यादा देखे जाने वाले तीर्थ स्थलों में से एक है, बल्कि यहां दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर भी है. इसका नाम है "पोटु" (Potu). ये मंदिर परिसर के अंदर स्थित एक बड़ा रसोई हॉल है, जहां भगवान वेंकटेश्वर (Balaji) के लिए भोजन प्रसाद, जिसे नैवेद्यम कहा जाता है, तैयार किया जाता है. ये रसोई 300 साल पुरानी है. 

ऐतिहासिक रूप से, भारत के मंदिरों की रसोइयों को पवित्र स्थान माना गया है. यहां भोग तैयार होता है जो भगवन और भक्तों को दिया जाता है. तिरुपति में पोटु भी इसका अपवाद नहीं है. 

सदियों से, यह रसोई मंदिर का दिल रही है, जहां भगवान वेंकटेश्वर के लिए बहुत सावधानी से भोजन प्रसाद तैयार किया जाता है. ये भोग एक बार भगवान को प्रस्तुत किए जाने के बाद प्रसादम बन जाते हैं, और फिर भक्तों में बांटे जाते हैं. मंदिर की कथाओं और प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, पोटु को बहुत सोच समझकर बनाया गया है. ये रसोई मंदिर परिसर के सबसे अंदर वाले हिस्से में स्थित है. इसका उद्देश्य यह बताना था कि देवता के लिए खाना बनाना केवल एक काम नहीं बल्कि एक अनुष्ठान है.

हर बार नई प्लेट में दिया जाता है खाना 
पोटु में एक विशिष्ट प्रथा है जिसमें हर प्रसाद के लिए नई प्लेटों का उपयोग किया जाता है, जिसे थमनी पल्लालु कहा जाता है. भगवान वेंकटेश्वर को टूटे हुए मिट्टी के बर्तनों में भोजन अर्पित किया जाता है, और कहा जाता है कि भगवान इन साधारण मिट्टी के बर्तनों को किसी दूसरे बर्तन से ज्यादा पसंद करते हैं. प्रसाद किए जाने के बाद, टूटे हुए मिट्टी के बर्तन भक्तों को लौटाए जाते हैं और उनमें प्रसाद दिया जाता है. 

हर प्रसाद का समय और बनाने का तरीका है अलग 
पोटु में नैवेद्यम का मतलब केवल खाना पकाना नहीं है. यह एक तरह का पवित्र अनुष्ठान है, जिसमें सख्त दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है. हर प्रसाद का एक विशेष समय, तरीका और अनुष्ठान होता है. भोजन सबसे पहले श्री वराह स्वामी को अर्पित किया जाता है और फिर भगवान वेंकटेश्वर को. इसके बाद यह मंदिर के दूसरे देवताओं, जैसे द्वार पालक, गरुड़ आलवार, वरदा राजा स्वामी, वकुला माता और योग नरसिंह स्वामी आदि को अर्पित किया जाता है.

प्रसाद चढ़ाने के बाद बली नाम का अनुष्ठान होता है, जिसमें सभी आठ दिशाओं के प्रमुख देवताओं को भोजन अर्पित किया जाता है.

दिन का आखिरी प्रसाद, जिसे निवेदना अनंतर निवेदना कहा जाता है, बेदी अंजनेय स्वामी को अर्पित किया जाता है, जिनका मंदिर मुख्य मंदिर के सामने संनिधि स्ट्रीट पर स्थित है. 

पोटु में बनते लड्डू

पोटु की तीन हिस्सों में बांटा गया है

1. मुख्य पोटु: यह वह सेक्शन है जहां सीधे देवता के लिए भोजन प्रसाद तैयार किए जाते हैं. यह रसोई का सबसे पवित्र हिस्सा है और यहां पूरी तरह से पारंपरिक वैदिक अनुष्ठानों का पालन करके खाना बनाया जाता है. यहां तैयार किया गया भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है, और यह माना जाता है कि खाना बनाने वाले हाथ साफ, पवित्र और पूरी तरह से भक्ति में लीन होने चाहिए. मुख्य पोटु के रसोइयों को अर्चक कहा जाता है. ये सभी ब्राह्मण होते हैं. 

2. लड्डू पोटु: ये स्थान सबसे प्रसिद्ध हिस्सा है. यह वह स्थान है जहां विश्व-प्रसिद्ध तिरुपति लड्डू बनाए जाते हैं. तिरुपति लड्डू, जिसे पहली बार 1715 में पेश किया गया था, इसे "दिव्य मिठाई" कहा जाता है. यह पहले भगवान वेंकटेश्वर को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है. 

3. प्रसादम पोटु: यहां भक्तों के लिए भोजन तैयार किया जाता है, जिसमें चावल, सब्जियां, मिठाइयां, और छाछ जैसी चीजें शामिल होती हैं. हर दिन करीब 1,00,000 तीर्थयात्री यहां भोजन करके जाते हैं. यहां ये भोजन बड़े पैमाने पर विशाल तांबे के बर्तनों और पारंपरिक लकड़ी से जलने वाले चूल्हों का उपयोग करके बनाया जाता है.

पोटु का मुख्य उद्देश्य भगवान वेंकटेश्वर के लिए भोजन तैयार करना है, लेकिन मंदिर में आने वाले हजारों भक्तों को भोजन भी यहीं बनता है. मंदिर का अन्नदानम कार्यक्रम यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी भक्त बिना प्रसाद लिए मंदिर से न जाए. भक्तों को पौष्टिक भोजन, जिसमें चावल, सब्जियां और छाछ शामिल हैं, दिया जाता है. 

गौरतलब है कि भोजन के प्रसाद के अलावा, तिरुपति बालाजी मंदिर भगवान वेंकटेश्वर के आभूषण के लिए मशहूर है. ये अमूल्य हैं. दुनियाभर के तीर्थयात्री इन आभूषणों की झलक पाने के लिए आते हैं. संस्कृत में कहा गया है, ना भूतो ना भविष्यति—"न पहले कभी, न भविष्य में"—इस मंदिर की संपन्नता की तुलना में कोई दूसरे मंदिर नहीं है. 


 

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