Chatth Puja 2022: छठ पूजा का दूसरा दिन आज, जानिए इस पर्व का पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व

कार्तिक माह की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ त्योहार न केवल हमारी सदियों पुरानी धार्मिक मान्यताओं और आस्था का अनन्य अभिलेख है बल्कि ये प्रकृति के प्रति हमारे आदर का प्रतीक भी है. सनातन इतिहास के प्राचीनतम ग्रंथ ऋगवेद में सूर्य को जगत की आत्मा, शक्ति और चेतना कहा गया है और छठ, उन्हीं भुवन भास्कर की भक्ति का त्योहार है.

chatth Puja
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 29 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 8:46 AM IST
  • पहला अर्घ्य 30 अक्टूबर को दिया जाएगा
  • अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है

कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा है. शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को इस पूजा का विशेष विधान है. इस पूजा की शुरुआत मुख्य रूप से बिहार और झारखंड से हुई जो अब देश-विदेश तक फैल चुकी है. अंग देश के महाराज कर्ण सूर्य देव के उपासक थे अतः परम्परा के रूप में सूर्य पूजा का विशेष प्रभाव इस इलाके पर दिखता है. कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशि में होता है. अतः सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है ,ताकि स्वास्थ्य की समस्या परेशान न करें. षष्ठी तिथि का सम्बन्ध संतान की आयु से होता है. अतः सूर्यदेव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती है.

छठ का पहला अर्घ्य कब दिया जाता है और इसका क्या महत्व है?
छठ का पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है. इस बार पहला अर्घ्य 30 अक्टूबर को दिया जाएगा. यह अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है. इस समय जल में दूध डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य दिया जाता है. माना जाता है कि सूर्य की एक पत्नी का नाम प्रत्यूषा है , और ये अर्घ्य उन्ही को दिया जाता है.

अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देने के नियम क्या हैं ?
अर्घ्य देने के लिए जल में जरा सा दूध मिलाया जाता है , बहुत सारा दूध व्यर्थ न करें. टोकरी में फल और ठेकुवा आदि सजाकर सूर्य देव की उपासना करें. उपासना और अर्घ्य के बाद आपकी जो भी मनोकामना है, उसे पूरा करने की प्रार्थना करें. प्रयास करें कि सूर्य को जब अर्घ्य दे रहे हों , सूर्य का रंग लाल हो.

छठ के अंतिम अर्घ्य का महत्व क्या है ?
पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को शाम को दिया जाता है. अंतिम अर्घ्य सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अरुण वेला में देते हैं. इस बार अंतिम अर्घ्य 31 अक्टूबर को दिया जाएगा. इस अर्घ्य को देने के बाद ही व्रती व्रत का समापन करते हैं. व्रत का समापन कच्चा दूध और प्रसाद ग्रहण करके होता है.

छठ के प्रसाद को महाप्रसाद क्यों कहा जाता है
छठ के अर्घ्य के समय घाट पर जाना और व्रती के चरण छूकर आशीर्वाद लेने की विशेष मान्यता है. व्रती के हाथों से प्रसाद भी ग्रहण करना बहुत शुभ माना जाता है. माना जाता है कि अर्घ्य देते समय सूर्य का दर्शन और फिर छठ का प्रसाद ग्रहण करना , जीवन की तमाम समस्याओं को दूर कर देता है. मात्र इस प्रसाद को भक्ति भाव से ग्रहण करने से निःसंतान लोगों को संतान की प्राप्ति होती है. स्वास्थ्य की गंभीर से गंभीर समस्या दूर हो जाती है.

 

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