Vijaya Ekadashi 2022: इस साल दो दिन है विजया एकादशी, बन रहा है खास संयोग, जानें तिथि, मुहूर्त, पूजा-विधि और व्रत कथा

एकादशी के दिन सिर धोने की मनाही होती है. इसलिए व्रत रखने वाले लोगों को एक दिन पहले ही सिर धो लेना चाहिए. इसके बाद, एकादशी के दिन सुबह में जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए. स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें और एकदशी व्रत का संकल्प लें.  

प्रतीकात्मक तस्वीर
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 20 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 6:34 AM IST
  • इस बार दो दिन किया जाएगा विजया एकादशी का व्रत
  • विजया एकादशी पर बन रहा है खास संयोग

हिन्दू शास्त्रों में एकादशी व्रत का बहुत ही महत्व है. भारत में बहुत से लोग हर महीने एकादशी का व्रत और पूजा करते हैं. क्योंकि एकादशी को महापुण्य देने वाला माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और पूरे दिन व्रत करके दूसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है. 

इस महीने विजया एकादशी का व्रत किया जाएगा. मान्यता है कि इस व्रत को करने वालों को सभी कार्यों में सफलता मिलती है. 

दो दिन रखा जाएगा व्रत: 

इस साल दो दिन 26 और 27 फरवरी को विजया एकादशी का व्रत किया जाएगा. एकादशी तिथि 26 फरवरी को सुबह 10 बजकर 39 मिनट से शुरू होगी और फरवरी को सुबह 08 बजकर 12 मिनट पर खत्म होगी. पूजा का शुभ मुहूर्त 26 फरवरी को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से 12 बजकर 57 मिनट तक रहेगा.

अगर आप 26 फरवरी को व्रत रख रहे हैं तो व्रत का पारण 27 फरवरी को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट से शाम 04 बजकर 01 मिनट तक कर सकते हैं. 27 फरवरी को व्रत रखने वाले लोग 28 फरवरी को सुबह 06 बजकर 48 मिनट से 09 बजकर 06 मिनट तक व्रत रख सकेंगे.

बन रहा है खास संयोग: 

इस साल विजया एकादशी पर सर्वार्थ सिद्धि योग और त्रिपुष्कर योग बन रहे हैं. ये दोनों योग 27 फरवरी को सुबह 08 बजकर 49 मिनट से शुरू हो जाएंगे. और अगले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06 बजकर 48 मिनट तो त्रिपुष्कर योग सुबह 05 बजकर 42 मिनट पर संपन्न होगा. 

धार्मिक मान्यता है कि सर्वसिद्धि योग में पूजा और व्रत करने से सभी काम बनते हैं और लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. 

इस तरह से करें पूजा: 

एकादशी के दिन सिर धोने की मनाही होती है. इसलिए व्रत रखने वाले लोगों को एक दिन पहले ही सिर धो लेना चाहिए. इसके बाद, एकादशी के दिन सुबह में जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए. स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें और एकदशी व्रत का संकल्प लें.  

  • पूजा के लिए घर के मंदिर में साफ-सफाई करके एक वेदी बना लें. और वेदी पर 7 अनाज- उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा रखें.  
  • अब वेदी पर एक तरफ कलश स्थापना करें और इसमें आम या अशोक के पांच पत्ते लगाएं. 
  • कलश स्थापना के बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर वेदी पर रखें. 
  • भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाएं और साथ में धूपबत्ती या अगरबत्ती भी लगाएं. 
  • पूजा में पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल अर्पण करना चाहिए और इसके बाद विजया एकादशी की कथा कहें या सुनें.
  • कथा कहने या सुनने के बाद भगवान विष्णु की आरती करें. पूरा दिन व्रत करने के बाद शाम के समय एक बार फिर भगवान विष्णु की आरती करें.
  • रात के समय भी आप भजन-कीर्तन करते हुए जागरण कर सकते हैं. 
  • एकादशी के दूसरे दिन सुबह स्नान करके, पूजा करने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं. और यथा-शक्ति दक्षिणा दें. 
  • इसके बाद आप स्वयं भोजन करके अपने व्रत का पारण करें.

क्या है व्रत कथा और महत्व:      

हिंदू शास्त्रों के अनुसार बताया जाता है कि जब श्रीराम को माता सीता का पता चल गया और उन्होंने लंका पर चढ़ाई करने की ठानी तो उनके रास्ते में समुद्र बाधा बनाकर खड़ा था. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वानर सेना इतने विशाल समुद्र को पार करे. 

ऐसे में श्रीराम को चिंतित देखकर लक्ष्मण जी उनसे कहा कि उन्हें थोड़ी दूर पर स्थित वकदालभ्य मुनि के आश्रम जाकर उनसे मार्गदर्शन लेना चाहिए. इसके बाद श्रीराम, लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे. मुनि को प्रणाम कर उन्होंने अपनी व्यथा बताई. 

मुनिवर ने उन्हें बताया कि आप और आपकी सेना फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करे और इस व्रत के प्रभाव से आप अपने सभी कार्यों में सफल होंगे. श्रीराम ने उनकी बात मानकर वानर सेना सहित एकादशी को व्रत किया. जिसके प्रभाव से उन्होंने पत्थरों के पूल का निर्माण करा समुद्र पार किया और लंका में विजय भी पाई. 

तब से ही इस एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है. श्रीकृष्ण ने इस एकादशी के बारे में अर्जुन को भी बताया था. इसलिए सभी कार्यों को बनाने वाली इस एकादशी का व्रत अवश्य करें.

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सभी सुचना विभिन्न पॉर्टल्स पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर दी गई है. अगर आप ज्यादा जानना चाहते हैं तो किसी ज्योतिष या शास्त्रों के विद्वान से संपर्क कर सकते हैं.)  

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