Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति पर क्या है दान का महत्व, जानिए

मकर संक्रांति में दान और स्नान का बहुत महत्व है. माना जाता है कि इस दिन दिया हुआ दान सौ गुना होकर लौटता है. इस दिन दान की गई हर चीज का एक अलग ही महत्व है. तो चलिए दान के महत्व के बारे में जान लीजिए.

मकर संक्रांति पर क्या है दान का महत्व
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 14 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 10:11 PM IST
  • खिचड़ी के दान से मिलती है ग्रहों की शांति
  • उड़द की दाल का शनि से हैं संबंध

शास्त्रों में मकर संक्रांति के दिन स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व बताया गया है. मान्‍यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है. मकर संक्रांति के मौके पर गंगा नदी के साथ-साथ शिप्रा नदी में स्नान करने का भी खास महत्व बताया गया है. धर्म के जानकारों का कहना है कि संक्रांति के दिन काली तिल और तिल के लड्डू का दान करने से सूर्य और शनि की कृपा प्राप्त होती है.

खिचड़ी के दान से मिलती है ग्रहों की शांति
ज्योतिष के जानकार खुशी और समृद्धि के प्रतीक मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी के दान को ग्रहों की शांति से जोड़कर देखते हैं. मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गुड़, घी, नमक और तिल के अलावा काली उड़द की दाल और चावल को दान करने का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर में जाते हैं. 

उड़द की दाल का शनि से हैं संबंध
ज्योतिष में उड़द की दाल को शनि से संबंधित माना गया है. ऐसे में उड़द की दाल की खिचड़ी खाने से शनिदेव और सूर्यदेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है. इस तरह मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में करीब करीब सभी ग्रहों की स्थिति बेहतर होती है. कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की प्रथा बाबा गोरखनाथ के समय से शुरू हुई थी. 

मकर संक्रांति क्यों खाते हैं खिचड़ी
बताया जाता है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया था, तब नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे ही लड़ाई के लिए निकल जाते थे. उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ पकाने की सलाह दी थी. ये झटपट तैयार हो जाती थी. इससे योगियों का पेट भी भर जाता था और ये काफी पौष्टिक भी होती थी.

बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा. खिलजी से मुक्त होने के बाद मकर संक्रांति के दिन योगियों ने उत्सव मनाया और उस दिन खिचड़ी का वितरण किया. तब से ​मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने की प्रथा की शुरुआत हो गई. मकर संक्रांति को लेकर गोरखपुर में रौनक दिखाई दे रही है. यहां मकर संक्रांति से शुरू होकर महीने भर चलने वाला खिचड़ी मेला बेमिसाल है.

नेपाल में क्या है खिचड़ी की मान्यता
ऐसी मान्यता है कि मंदिर में नेपाल के राजा की खिचड़ी सबसे पहले चढ़ती है. इसके बाद बाकी श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाते हैं. ऐसे में नेपाली श्रद्धालु भारी संख्या में खिचड़ी चढ़ाने के लिए महराजगंज जनपद के सोनौली सीमा के रास्ते गोरखपुर के लिए जाते हैं.

मकर संक्रांति के दिन दही-चूड़ा खाने का है महत्व
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी के साथ-साथ दही-चूड़ा खाने का भी विशेष महत्व है. इस दिन खिचड़ी के साथ-साथ दही-चूड़ा भी खाया जाता है. धार्मिक दृष्टिकोण की बात करें तो इस दिन ये सभी चीजें खाना शुभ होता है. मकर संक्रांति के त्योहार से पहले ही सितम्बर, अक्टूबर में धान काटे जाते हैं और बाजार में नए चावल बिकने लगते हैं. यही वजह है कि अन्न देवता की पूजते हुए नए चावल की खिचड़ी बना कर इस दिन खाया जाता है. इसे पहले सूरज देव को भोग के रूप में दिया जाता है फिर खुद प्रसाद के रूप में खाया जाता है.

 

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