हाथ पर कलावा बांधने का क्या है महत्व, कैसे शुरू हुई यह परंपरा, जानिए ...

हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य या तीज-त्योहार की पूजा के समय कलावा या मौली बांधने का विशेष महत्व होता है. कोई पूजा-अनुष्ठान सबसे पहले हाथ पर कलावा बांधने से ही शुरू होता है. लेकिन क्या आपके दिमाग में कभी ख्याल आया है कि आखिर मौली या कलावा हाथ पर क्यों बांधा जाता है? इस परंपरा का क्या महत्व है? और इसकी शुरुआत कैसे हुई?

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  • नई दिल्ली ,
  • 02 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 2:06 PM IST
  • आखिर क्यों बांधते हैं हाथ पर कलावा
  • किस दिन उतार सकते हैं पहले से बंधा कलावा

हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य या तीज-त्योहार की पूजा के समय कलावा या मौली बांधने का विशेष महत्व होता है. कोई पूजा-अनुष्ठान सबसे पहले हाथ पर कलावा बांधने से ही शुरू होता है.

लेकिन क्या आपके दिमाग में कभी ख्याल आया है कि आखिर मौली या कलावा हाथ पर क्यों बांधा जाता है? इस परंपरा का क्या महत्व है? और इसकी शुरुआत कैसे हुई? शायद अपने पहली कभी ये बातें न सोची हों. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्यों हाथ पर कलावा बांधा जाता है. इसका क्या महत्व है और कैसे यह परंपरा शुरू हुई. 

क्या है मौली या कलावे का महत्व: 

मौली का शाब्दिक अर्थ होता है सबसे ऊपर और इसे कलाई पर बांधने की वजह से कलावा भी कहा जाता है. कहते हैं कि मौली का वैदिक नाम उप मणिबंध है. और इसका तात्पर्य सिर से भी होता है. भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा सुसज्जित है. इसलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है. 

मौली या कलावे को मुख्यतः तीन रंगों के कच्चे सूती धागे से बनाया जाता है. जिनमें लाल, पीला और हरा रंग शामिल है. कभी-कभी यह पांच रंगों से भी बना होता है और नीले व सफेद धागे का भी प्रयोग किया जाता है. तीन धागों से अभिप्राय त्रिदेव तो पांच धागों से अभिप्राय पंचदेव से है. 

कहा जाता है कि हाथ में मौली या कलावा बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश व तीन देवियों- लक्ष्मी, गौरी और सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है. ब्रह्मा से कीर्ति, विष्णु भगवान से बल मिलता है और शिव जी मनुष्य के दुर्गुणों का नाश करते हैं. 

प्रचलित हैं लोककथाएं: 

हाथ पर मौली या कलावा बांधने के बारे में कई लोक कथाएं प्रचलित हैं. कलावे को रक्षासूत्र के रूप में हाथ पर बांधा जाता है. कहते हैं कि प्राचीन समय में वृत्रासुर नामक एक राक्षस हुआ करता था. जिसके आतंक से पृथ्वी को मुक्ति दिलाने के लिए देवताओं ने उससे युद्ध किया. 

बताया जाता है कि देवराज इंद्र जब इस राक्षस से युद्ध के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी इन्द्राणी ने उनकी दाहिनी भुजा पर कलावा या रक्षासूत्र बांधकर त्रिदेवों और मां आदिशक्ति से उनकी रक्षा की प्रार्थना की. जिसके बाद इंद्र वृत्रासुर को मारकर विजयी हुए. 

तबसे ही मौली बांधने की परंपरा चली आ रही है. इसके अलावा, एक मान्यता यह भी है कि राजा बलि को अमरता का वरदान देने के लिए भगवान विष्णु ने उनके दाहिने हाथ पर कलावा बांधा था. 

कलावे को धारण करने और उतारने के नियम: 

शास्त्रों के नियमों के अनुसार पुरुष और अविवाहित स्त्री दाएं हाथ में और विवाहित स्त्री बाएं हाथ में कलावा बंधवाती हैं. जब भी कोई पंडित या शास्त्री आपके हाथ में कलावा बांधें तो उस हाथ की मुट्ठी बंद और दूसरा हाथ हमेशा सिर के पीछे होना चाहिए.

और कलावे को हमेशा पांच या सात बार घुमाकर हाथ में बांधना चाहिए.

वहीं अगर आपके हाथ में बंधा कलावा पुराना हो गया है और आप इसे उतारना चाहते हैं तो ध्यान रहे कि पुराने कलावे को हमेशा मंगलवार या शनिवार के दिन ही हाथ से उतारें. और इसे उतारकर फेंकना नहीं चाहिए बल्कि इसे आप पीपल के पेड़ के नीचे रख दें. 

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