भगवान सूर्य जब मां नर्मदा की गोद में अस्ताचल हो जाते हैं. तब उदित होती है उस देव स्थान में देव ज्योति. पौराणिक मान्यताओं में उसे महर्षि भृगु की तपोस्थली के नाम से जाना जाता है. तो वहीं मानवीय आंखें उसे शिव और मां पार्वती के वैवाहिक संयोग के रूप में देखती हैं. कहते हैं कि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित ये प्रतिमा उस पौराणिक कथा का परिचायक है जो बताती है कि हिमालय की पुत्री पार्वती को विवाहित कर भगवान शंकर अपने गण नंदी पर विराजमान होकर कैलाश की ओर चले थे.
अगर आपको भी करना है मां गौरी संग भगवान शिव के इस अनोखे स्वरूप के दर्शन तो आपको आना होगा. हिंदुस्तान के दिल मध्य प्रदेश के शहर जबलपुर में. जहां भगवान शंकर के इस मंदिर को पूरी दुनिया चौसठ योगिनी मंदिर और गोलकी मठ नाम से जानती है.
81 कोणीय, त्रिभुजाकारी, 84 खंभों वाला ये देव स्थान पूरी दुनिया में बाबा विश्वनाथ की बारात वाले मंदिर के रूप में विख्यात हो चुका है. मंदिर के बाहर एक बहुत बड़ा शिवलिंग विराजमान है. उनके साथ में भगवान के गण नंदी भी स्थापित हैं.
क्यों खास है गर्भगृह-
आस्था और शिव विश्वास के कदम गर्भगृह की ओर बढ़ते हैं तो आंखे खुली की खुली रह जाती हैं. क्योंकि इसी गर्भगृह मे काले पत्थरों में दिखता है वो चमत्कार, जो इस इस धाम को पूरी दुनिया में अद्वितीय और अनोखा बना देता है. गर्भगृह में भगवान शकंर और मां पार्वती की काल पत्थरों पर नक्कशीकी गई प्रतिमा दिखती है. जहां दुनिया में सभी शिवालयों में गर्भगृह में शिवलिंग मिलते हैं, वहीं इस मंदिर में मां गौरा और भगवान शिव का साकार स्वरूप दिखता है.
दूल्हा-दुल्हन के रूप में शिव-पार्वती
इस धाम में मां गौरा और भगवान शंकर नंदी पर सवार दिखते हैं. इस साकार स्वरूप को यहां आने वाले भगवान शिव और माता पार्वती का वैवाहित चित्रण मानते हैं. नंदी पर विराजमान भगवान शिव को दूल्हा और मां पार्वती को यहां दुल्हन माना गया है. नंदी पर विराजमान होने पर भी दोनों एक दूसरे को निहारते प्रतीत होते हैं. जब गर्भगृह में जगत के नियंता स्वयं ही वैवाहिक परिवेश में स्थापित हैं तो यहां सबसे ज्यादा तांता नव विवाहितों का ही लगता है, जो मां गौरा के साथ साथ भगवान शंकर से अखंड सौभाग्य का वर मांगने आते हैं.
इस देव स्थान से जुड़ी एक मान्यता और भी है. वो ये कि माना जाता है कि शिव और शक्ति के चारों और स्थापित 64 योगनियां नृत्य करते हुए भगवान शंकर और मां पार्वती को पहरा देती हैं. महादेव को नाट्य विधा में पारंगत माना जाता है, वहां मां गौरी लाश्य नृत्य की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं. जो इस संकल्पना को और मजबूती देती हैं.
इस मंदिर का इतिहास जो भी कहता हो. पुराण जो भी साक्ष्य देते हो, लेकिन आस्था यही मानती है कि दूल्हे के भेष में शिव यहां दुल्हन के भेष में मां गौरा के साथ नंदी पर विराजमान हैं. जो सुख शांति और समृद्धि का वरदान सदियों से बरसाते आ रहे हैं.
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