पूजा पाठ के समय सिर ढंकने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है. अक्सर आपने पूजा के समय महिलाओं या फिर पुरुष दोनों को ही सिर ढककर पूजा करते देखा होगा. सिर ढंकना सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं पुरुषों के लिए भी जरूरी है. पुरुष पूजा के समय रूमाल से सिर ढंक कर पूजा करते हैं. बड़े बुजुर्गों के पैर छूते समय भी महिलाएं दुपट्टा या साड़ी के पल्ले से सिर ढंक लेती हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों पूजा के समय सिर ढंका जाता है.
- मनुष्य का मन चंचल होता है. माना जाता है कि सिर ढंक कर पूजा करने से व्यक्ति का पूरा फोकस पूजा पर होता है और उसका ध्यान नहीं भटकता. इस नियम का पालन करने से व्यक्ति को भाग्य का साथ भी दोगुना मिलता है.
- वहीं सिर पर पल्ला रखकर पूजा करने से वातावरण भी सकारात्मक बन जाता है और इससे व्यक्ति की मानसिकता भी बदल जाती है. इससे व्यक्ति का ध्यान भगवान में ज्यादा लगता है और उसके शरीर से निकलने वाली उर्जा से आसपास का माहौल भी अच्छा बनता है.
- हमारे आसपास हर समय नकारात्मक उर्जा रहती है. पूजा करते समय या मंदिर जाते समय सिर ढकने से हम नकारात्मक शक्तियों से बचे रहते हैं. क्योंकि बालों के जरिए नकारात्मकता हमें अपनी ओर खींचती है. जबकि सिर के ढंके होने से मन में सकारात्मक विचार आते हैं.
- शास्त्रों के अनुसार पूजा के समय सिर ढंकना भगवान को सम्मान देने का प्रतीक है. जिस तरह बड़े-बुजुर्गों के सामने सिर ढका जाता है. वैसे ही ईश्वर को सम्मान देने के लिए सिर ढंकना जरूरी होता है.
- माना जाता है कि आकाश से कई सारी तरंगे निकलती है और पूजा करते समय अगर सिर खुला हो तो आकाशीय विद्युतीय तरंगे सीधे व्यक्ति के भीतर प्रवेश कर जाती हैं, जिसके कारण सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि समस्याएं होती हैं. ऐसे में सिर के बालों में आकाश की तरंगों से आने वाली कीटाणु आसानी से चिपक जाते हैं, क्योंकि बालों की चुंबकीय शक्ति उन्हें आकर्षित करती है. ये कई सारे रोग का कारण बनते हैं.
- कई लोगों को बाल झड़ने और डैंड्रफ जैसी समस्याएं होती हैं. ऐसे में पूजा की सामग्री में अगर कुछ गिर जाएगा तो वो अशुद्ध हो जाएगी. सामग्री की शुद्धता के लिए सिर ढंकना जरूरी है.