कान्हा के जन्म के पर्व जन्माष्टमी की धूम सिर्फ़ देश में ही नहीं दुनिया भर में है. इस अवसर के लिए जहां भक्त कान्हा के वस्त्र,आभूषण और पूजा सामग्री की ख़रीदारी कर रहे हैं वहीं परम्परागत रूप से झांकी सजाने को लेकर भी उत्साह है. जन्माष्टमी के लिए इस बार बनारस की GI tagged काष्ठ कला (wood craft and lacquerware) से बनी कृष्ण लीला को पसंद किया का रहा है. अमेरिका और स्पेन जैसे देशों में भी बनारस से झांकी भेजी गयी है. बनारस के काष्ठ कला के खिलौना उद्योग के लिए ये मौका ‘अच्छे दिन’ लेकर आया है.
दरअसल जन्माष्टमी पर झांकी सजाने की परम्परा है. कृष्ण भक्त न सिर्फ कृष्ण जन्म की झांकी सजाते हैं बल्कि कृष्ण की विविध लीलाओं को झांकी के माध्यम से दिखाया जाता है. कृष्ण भक्त इस मौके के लिए भी खरीदारी करते हैं. इस बार महादेव की नगरी काशी ने कान्हा के जन्म पर देश भर में ही नहीं दुनिया भर में उनके भक्तों को सौग़ात दी है. बनारस की जीआई टैग्ड काष्ठ कला की मूर्तियों और झांकियों को नए रूप में उकेरा गया है. करीब 3 महीने के बनारस के 100 से भी ज़्यादा हस्त शिल्पी और कारीगर मूर्तियां बनाने, झांकी को आकार देने और रंग रोगन में लगे हैं, यानि लकड़ी से बनी मूर्तियों को चमकदार रंगों में रंगकर सजे कृष्ण, वासुदेव, देवकी, सुदामा, बलराम, राधा, ग्वालात गोपियाँ तैयार किए गए हैं.
खास बात यह है कि कृष्ण भक्त बड़ी संख्या में विदेशों में भी हैं जो उनके जन्म पर कृष्ण जन्माष्टमी पर्व को बहुत धूम धाम से मनाते हैं.भक्ति में डूबे प्रवासी भारतीय और यहां तक कि विदेशी कृष्ण भक्त भी जन्माष्टमी की झांकी सजाने के लिए बनारस के लकड़ी के खिलौनों की मांग कर रहे हैंं इससे काशी के काष्ठ कला उद्योग को बल मिला है. साथ ही रोजगार के नये अवसर भी पैदा हुए हैं. इन कारीगरों में बड़ी संख्या महिलाओं की भी है जो लकड़ी की मूर्तियों पर रंग रोगन और सभी पात्रों की भाव भंगिमा बनाने में व्यस्त हैं. हाल ही में सावन महीने में बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या खूब बढ़ी थी. काशी कोर्रिडोर बनने के बाद पहली बार पड़े सावन उत्सव में बनारस की जीआई टैग्ड लकड़ी के खिलौनों की खूब बिक्री हुई. इसके बाद अब जन्माष्टमी के पर्व पर भी पारम्परिक मूर्ति और पौराणिक पात्रों को लोग पसंद कर रहे हैं.
पहली बार बने लकड़ी के लड्डू गोपाल
शिव की नगरी काशी दुनियाभर में अपने लकड़ी के उत्पादों के लिये जानी जाती है।प्रदेश की होगी सरकार ने इसे odop (one district one product) में भी शामिल किया है. ऐसे में जन्माष्टमी पर सजायी जाने वाली झांकी के लिये लकड़ी के उत्पादों को देश ही नहीं विदेशों में भी खूब पसंद किया जा रहा है. लकड़ी के लड्डू गोपाल बहुत पसंद किए जा रहे हैं. बनारस के लोलार्क कुंड में काष्ठकला के खिलौनों के व्यवसायी लाल बिहारी अग्रवाल कहते हैं ‘चाँदी और मिट्टी के लड्डू गोपाल ही आम तौर पर लिए जाते हैं पर यहां लकड़ी के लड्डू गोपाल पहली बार बनाए गए हैं.’ यूं तो श्रीकृष्ण जन्म, माखन चुराने, ग्वालों के साथ गाय चराने, बांसुरी बजाते कृष्ण, गोवर्धन पर्वत उठाए कृष्ण, राधा के साथ कृष्ण जैसी परम्परागत लीलाएं झांकी के लिए सबसे ज़्यादा पसंद की जा रही हैं पर देश विदेश में मांग को देखते हुए 18 पीस और 45 पीस की खास झांकी बनायी गयी है.
45 पीस की ख़ास झांकी बनी, कृष्ण की सम्पूर्ण लीला को दर्शाया गया
यहां के हस्त शिल्पियों ने जन्माष्टमी पर झांकी के रूप में सजाने के लिए लकड़ी पर उकेरी गई 45 पीस की पूरी कृष्ण लीला एक साथ तैयार कर दी है. इससे जन्माष्टमी की पूरी झांकी एकसाथ सजा सकते हैं. इन मूर्तियों पर रंग रोगन करके इन्हें चमकदार बनाने वाली मीना देवी कहती हैं कि इसे प्राकृतिक रंगों से रंग कर और भी खूबसूरत बनाया गया है. ये रंग दूर से ही लोगों को आकर्षित करते हैं. 45 पीस की इस जन्माष्टमी झांकी की कीमत करीब 30 हजार रुपए है. इसमें कृष्ण जन्म, देवकी वासुदेव, यशोदा कृष्ण, माखन चोर, ग्वाल-गोपियाँ, सुदामा , नाग नथैया, कंस वध, पूतना वध, राधा और गोपियों के साथ कृष्ण को दर्शाया गया है. खास बात ये है कि झांकी के लिए आकार बहुत छोटा रखा गया है जिससे छोटी जगह या फ़्लैट में भी इसे सजाया जा सके.
अमेरिका, स्पेन और ऑस्ट्रेलिया में भी भेजी गयी झांकियां
कृष्ण जन्माष्टमी पर झांकियों की मांग गुजरात, महाराष्ट्र कर्नाटक सहित कई प्रदेशों में ज़्यादा है. साथ ही विदेशों में भी इस बार काष्ठ कला की झांकियों की बहुत डिमांड है. विदेशों से कृष्ण भक्तों ने इसके ऑर्डर दिए हैं. अमेरिका, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर जैसे जगह से ऑर्डर आए हैं. पिछले तीन महीनों से काष्ठ कला के कारीगर जन्माष्टमी के लिए झांकियाँ तैयार करने में जुटे हैं. लकड़ी के खिलौना उद्योग से जुड़े व्यापारी बिहारी लाल अग्रवाल बताते हैं कि ‘पीएम मोदी के प्रयास से इस उद्योग में नयी जान आई है. उन्होंने बनारस के काष्ठकला के व्यापारियों और कारीगरों को इस बात की अपील की थी कि ऐसे खिलौने बनाएँ जिसमें बैटरी की ज़रूरत न हो।उसके बाद से ही इसमें इनोवेशन हो रहा है.’ वहीं परम्परागत काष्ठ कला के हस्तशिल्पियों की प्रोत्साहन के लिए यूपी की योगी सरकार ने भी काम किया है.वाराणसी के संयुक्त आयुक्त (उद्योग) उमेश सिंह कहते हैं कि ‘सरकार पैकेजिंग और मार्केटिंग के लिए बड़े पैमाने पर समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है, इसका लाभ भी देखने को मिल रहा है.’ बिहारी लाल अग्रवाल बताते हैं कि बनारस के लकड़ी के खिलौने और मूर्तियों की मांग देश और विदेशों में भी बढ़ी है, जिससे इस कला को और इससे जुड़े शिल्पियों को नया जीवन मिला है.
पीएम ने G-7 समिट में दिया था ‘राम दरबार ‘ का तोहफ़ा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून में हुए G-7 समिट में इंडोनेसिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो को बनारस की काष्ठ कला से बने ‘राम दरबार’ का तोहफा दिया था. उसके बाद बनारस की GI टैग्ड लकड़ी के खिलौने और अन्य सामान को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई थी.