Yogini Ekadashi का क्या है महत्व, जानिए शुभ मुहूर्त और व्रत करने का सही तरीका

Yogini Ekadashi 2022: आषाढ़ महीने की योगिनी एकादशी 24 जून को मनाई जाएगी. माना जाता है कि योगिन एकादशी के दिन व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है. योगिनी एकादशी को लेकर कहा गया है कि इस व्रत को करने से 88000 ब्राह्मणों के भोजन कराने का फल मिलता है.

Yogini Ekadashi 2022
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 23 जून 2022,
  • अपडेटेड 3:35 PM IST
  • 24 जून को मनाई जाएगी योगिनी एकादशी
  • व्रत करने पर 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल मिलता है

एकादशी की तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है. कहते हैं कि एकदाशी का व्रत करके भगवान सत्य नारायण का परम वरदान पाया जा सकता है. आषाढ़ महीने की पहली एकदाशी 24 जून को मनाई जाएगी. जिसे योगिनी एकादशी कहते हैं. निर्जा एकादशी और देव शयनी एकादशी के बीच पड़ने वाली ये एकादशी इसलिए अति महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि देवशयनी एकादशी से 4 महीने के लिए भगवान विष्णु सो जाएंगे और भगवान शिव सृष्टि का संचालन करेंगे.

योगिनी एकादशी का महत्व-
ज्योतिष के जानकारों की माने तो सबके हाथों कभी ना कभी कोई ना कोई पाप हो ही जाता है. कुछ पाप इंसान जान-बूझकर करता है और कुछ उससे अनजाने में हो जाते हैं. लेकिन हर पाप का दंड इंसान को ही भुगतना पड़ता है. कहते हैं कि योगिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से उन सभी दोष-पापों से छुटकारा पाया जा सकता है.

  • आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है 
  • यह एकादशी पापों के प्रायश्चित के लिए विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है 
  • इस दिन श्री हरि के ध्यान, भजन और कीर्तन से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है 
  • योगिनी एकादशी के दिन उपवास रखने और साधना करने से समस्याओं का अंत हो जाता है
  • यहां तक कि पीपल का पेड़ काटने का पाप भी इस एकादशी पर नष्ट हो जाता है

इंसान के कर्मों को ध्यान में रखकर ही तो ऋषि-मुनियों ने व्रत और उपवास के नियम बनाए थे. ज्योतिष के जानकारों के मुताबिक अगर इंसान सही नियम से व्रत और उपवास रखे तो जीवन के तमाम कष्टों से मुक्त रहता है. 

योगिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त-
योगिनी एकादशी के बाद देवशयनी एकादशी व्रत रखा जाता है. देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं. इस दौरान भगवान शंकर सृष्टि का संचालन करते हैं. इन महीनों में शुभ कार्यों की मनाही होती है. निर्जला एकादशी और देवशयनी एकादशी के बीच योगिनी एकादशी व्रत रखा जाता है. एकादशी के व्रत के लिए शुभ मुहूर्त जानना भी जरूरी है. 

  • 24 जून को रखा जाएगा योगिनी एकादशी का व्रत
  • 23 जून रात 9.41 बजे से एकादशी तिथि शुरू होगी
  • सूर्योदय 24 जून में होगा इसीलिए एकादशी 24 जून को होगी
  • 25 जून को एकादशी व्रत का पारण किया जाएगा

कैसे रखें योगिनी एकादशी का उपवास-
एकादशी के व्रतों को मोक्षदायी माना गया है. योगिनी एकादशी को लेकर शास्त्रों में कहा गया है कि ये व्रत करके 88000 ब्राह्मणों के भोजन कराने का फल मिलता है. योगिनी एकादशी व्रत के भी कुछ विशेष नियम हैं. 

  • सुबह नहाकर सूर्य देव को जल अर्पित करें
  • इसके बाद पीले कपड़े पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें
  • श्रीहरि को पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें
  • इसके बाद श्री हरि और मां लक्ष्मी के मन्त्रों का जाप करें
  • किसी निर्धन व्यक्ति को जल, अनाज, कपड़े, जूते और छाते का दान करें
  • इस दिन केवल जल और फल ग्रहण करके ही उपवास रखें

तो आप भी योगिनी एकादशी के परम लाभकारी व्रत का लाभ उठाइए. क्योंकि इस दिन अलग-अलग उपायों से आपकी जिंदगी की तमाम उलझनें सुलझ सकती हैं. तो इस सुनहरे मौके को खाली ना जाने दीजिए. श्रीहरि का ध्यान कीजिए. कल्याण ही कल्याण होगा.

योगिनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा-
योगिनी एकादशी की व्रत कथा काफी रोचक है. कहते हैं कि इस व्रत को राजा कुबेर के माली ने किया था. जिससे उसके सारे संकट कट गए थे. देवशयनी एकादशी से पहले आने वाली इस एकादशी पर कुछ छोटे-छोटे उपाय करके न केवल सफलता का मंत्र पाया जा सकता है, बल्कि भगवान विष्णु के साथ साथ भगवान शिव का वरदान भी पाया जा सकता है. परमकल्याणकारी दिन की महिमा का बखान पुराणों और धर्म ग्रंथों मे भी है और इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है. पुरातन समय में अलकापुरी का राजा कुबेर शिव-भक्त था. हेममाली नामक एक यक्ष उनकी सेवा करता था जो रोज शिव पूजा के लिए फूल लाता था. एक बार हेममाली पत्नी प्रेम में पूजा के लिए फूल लाने से चूक गया. नाराज होकर कुबेर ने हेममाली ने उसे श्राप दे दिया कि वह स्त्री के वियोग में तड़पे और मृत्युलोक में जाकर रोगी बने. श्राप के कारण ऐसा ही हुआ. एक दिन हेममाली की भेंट मार्कण्डेय ऋषि से हुई. ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने के लिए कहा. हेममाली ने ये व्रत विधि-विधान से किया. इस व्रत के प्रभाव से उसके कष्ट दूर हो गए और वह अपनी पत्नी के साथ पुन: अलकापुरी में जाकर सुखपूर्वक रहने लगा.

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