Aditya L1: आदित्य-L1 को लॉन्‍च कर भारत ने रचा एक और इतिहास, कब तक पहुंचेगा और क्या करेगा, ISRO के मिशन सूरज की हर बात जानिए

Aditya L1 Mission: आदित्य-L1 को इसरो का सबसे भरोसेमंद रॉकेट पीएसएलवी-एक्सएल से शनिवार को लॉन्च किया गया. आदित्य-एल 1 पर कुल सात पेलोड्स हैं. इस स्पेसक्रॉफ्ट को धरती और सूरज के बीच एल 1 ऑर्बिट में रखा जाएगा.

इसरो ने अपने पहले सूर्य मिशन आदित्य एल 1 को किया लॉन्च (Photo: ISRO)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:15 PM IST
  • आदित्य-एल 1 पृथ्‍वी से 15 लाख किमी दूर एल 1 ऑर्बिट पर सूर्य को करेगा मॉन‍िटर
  • आदित्य-एल 1 है पूरी तरह से स्वदेशी 

Aditya L1 Launch: चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी के बाद भारतीय स्‍पेस एजेंसी (इसरो) ने एक और इतिहास रच दिया. शनिवार को सूर्य मिशन आदित्य-एल 1 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया. प्रक्षेपण रॉकेट पीएसएलवी-एक्सएल से 11 बजकर 50 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया. यह भारत का पहला सौर मिशन है, जिसे आदित्य-एल 1 नाम दिया गया है.

मिशन के तहत स्‍पेसक्रॉफ्ट को सूर्य के कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परत) का ऑब्‍जर्वेशन करने के लिए भेजा जा रहा है. स्‍पेसक्रॉफ्ट पृथ्‍वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर एल 1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज बिंदु) पर सूर्य को मॉन‍िटर करेगा. आदित्य-एल 1 को यहां तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे.

क्या-क्या करेगा अध्ययन
आदित्य-एल 1 सौर कोरोना (सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग) की बनावट और इसके तपने की प्रक्रिया, इसके तापमान, सौर विस्फोट और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति का अध्ययन करेगा. इसके अलावा कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन (सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं) की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा.

पूरी तरह से है स्‍वदेशी 
आदित्य-एल 1 पूरी तरह से स्वदेशी है. इसे पूरा करने में कई राष्ट्रीय संस्थानों की भागीदारी है. बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) ने विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) पेलोड को तैयार किया है, जबकि इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे ने सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) पेलोड को इस मिशन के लिए तैयार किया है.

आदित्य-एल 1 को एल 1 ऑर्बिट में रखा जाएगा
आदित्य-एल 1 स्पेसक्रॉफ्ट को धरती और सूरज के बीच एल 1 ऑर्बिट में रखा जाएगा. यानी सूरज और धरती के सिस्टम के बीच मौजूद पहला लैग्रेंजियन प्वाइंट. इसलिए उसके नाम में L1 जुड़ा है. L1 असल में अंतरिक्ष का पार्किंग स्पेस है. लैग्रेंजियन बिंदु अंतरिक्ष में वह स्थान है, जहां दो वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले सभी गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को निष्प्रभावी कर देते हैं. 

यहां एक छोटी वस्तु दो बड़े पिंडों (सूर्य और पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के तहत संतुलन में रह सकती है. नासा के अनुसार, इनकी मदद से स्‍पेसक्रॉफ्ट के लिए जरूरी ईंधन की खपत को कम किया जा सकता है. भारत का सूर्ययान धरती से 15 लाख किमी दूर स्थित इस प्वाइंट से सूरज की स्टडी करेगा. 

अंतरिक्ष में हैं पांच लैग्रेंजियन बिंदु 
अंतरिक्ष में पांच लैग्रेंजियन बिंदु हैं. जिन्हें L1, L2, L3, L4 और L5 के रूप में परिभाषित किया गया है. L1, L2 और L3 बिंदु सूर्य और पृथ्वी के केंद्रों को जोड़ने वाली रेखा पर स्थित हैं. वहीं L4 और L5 बिंदु दोनों बड़े पिंडों के केंद्रों के साथ दो समबाहु त्रिभुजों के शीर्ष बनाते हैं. 18वीं सदी के खगोलविद जोसेफ लुई लैग्रेंज के नाम पर इन बिंदुओं को पहचान दी गई है.

L1 बिंदु दो बड़े पिंडों के बीच स्थित है, जहां दोनों पिंडों का गुरुत्वाकर्षण बल बराबर और विपरीत है. यही वह बिंदु होगा जहां आदित्य एल 1 मिशन को रखा जाएगा. L2 बिंदु छोटे पिंड से परे स्थित है, जहां छोटे पिंड का गुरुत्वाकर्षण बल बड़े पिंड के कुछ बल को निष्प्रभावी कर देता है. L3 बिंदु छोटे पिंड के विपरीत, बड़े पिंड के पीछे स्थित होता है. वहीं, L4 और L5 बिंदु बड़े पिंड के चारों ओर उसकी कक्षा में छोटे पिंड से 60 डिग्री आगे और पीछे स्थित होते हैं.

सूर्य का अध्ययन लैग्रेंजियन बिंदु से क्यों किया जा रहा 
लैग्रेंजियन बिंदु अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए उपयोगी हैं क्योंकि यहां कम ऊर्जा वाली कक्षाएं होती हैं. इसके साथ ही इस बिंदु से अंतरिक्ष के कुछ क्षेत्रों को निर्बाध रूप से देखा जा सकता है. सूर्य-पृथ्वी प्रणाली का L1 बिंदु एक अंतरिक्ष यान को लगातार सूर्य का निरीक्षण करने की अनुमति देता है. दूसरी ओर सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के L2 बिंदु से दूरबीनों के जरिए गहरे स्थान का स्पष्ट दृश्य दिखाई देता है. L4 और L5 बिंदु पर ट्रोजन क्षुद्रग्रह होते हैं जो सूर्य के चारों ओर एक ग्रह की कक्षा को साझा करते हैं.

आदित्य-एल 1 पर कौन-कौन से पेलोड लगे हैं
आदित्य-एल 1 पर ऑन-बोर्ड कुल सात पेलोड हैं. इनमें से चार रिमोट सेंसिंग पेलोड्स हैं और तीन इन-सिटू पेलोड्स. आदित्य-एल1 के उपकरणों को मुख्य रूप से क्रोमोस्फीयर और कोरोना सौर वातावरण का निरीक्षण करने के लिए ट्यून किया गया है.

रिमोट सेंसिंग पेलोड्स
1. विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC): कोरोना/इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी.
2. सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्‍कोप (SUIT): प्रकाशमंडल और क्रोमोस्फीयर इमेजिंग- नैरो और ब्रॉड बैंड.
3. सोलर लो एनर्जी एक्‍स-रे स्‍पेक्‍ट्रोमीटर (SoLEXS): सॉफ्ट एक्‍स-रे स्‍पेक्‍ट्रोमीटर.
4. हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्‍स-रे स्‍पेक्‍ट्रोमीटर (HEL1OS): हार्ड एक्‍स-रे स्‍पेक्‍ट्रोमीटर.

इन-सिटू पेलोड्स
1. आदित्‍य सोलर विंड पार्टिकल एक्‍सपेरिमेंट (ASPEX).
2. प्‍लाज्‍मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्‍य (PAPA).
3. ऐडवांस्ड ट्राई-एक्‍सल हाई रेजोल्‍यूशन डिजिटल मैग्‍नोमीटर्स

सूर्य तक की यात्रा कैसे करेगा आदित्य-एल 1
ISRO का PSLV-C57 रॉकेट आदित्य एल 1 को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाएगा. इसके बाद इसे और ओवल आकार में लाया जाएगा और यान को ऑन बोर्ड प्रोपल्शन की मदद से एल 1 प्वाइंट की ओर भेजा जाएगा. इस यात्रा में जब अंतरिक्ष यान पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के स्पीयर ऑफ इंफ्लुएंस या SOI से बाहर हो जाएगा, तो क्रूज चरण शुरू होगा और यान को एल1 के पास हेलो ऑर्बिट में भेजा जाएगा. अंतरिक्ष यान को अपनी मंजिल तक पहुंचने में लगभग 4 महीनों का समय लगेगा.

चीन के मिशन से कैसे है अलग
चीन ने 8 अक्टूबर 2022 को नेशनल स्पेस साइंस सेंटर से एडवांस स्पेस बेस्ड सोलर ऑब्जर्वेटरी (ASO-S) या कुआफू-1 लॉन्च किया था. आदित्य L-1 से अगर इसकी तुलना करें तो सबसे बड़ा अंतर इसकी पृथ्वी से ऊंचाई है. ASO-S जहां धरती से 720 किमी की ऊंचाई पर है तो वहीं आदित्य L-1 की दूरी धरती से लगभग 15 लाख किमी होगी. चीन का ASO-S 859 किग्रा है, वहीं भारत का आदित्य L1 का वजन 400 किग्रा है. आदित्य एल-1 और ASO-S की धरती से दूरी सबसे खास है। क्योंकि चीन का स्पेसक्रॉफ्ट धरती के ऑर्बिट में है, लेकिन इसरो का आदित्य इससे बिल्कुल बाहर होगा. यानी जो चीन ने नहीं किया वह भारत करेगा.

 

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