पेट में फैले कैंसर का HIPEC तकनीक से किया गया ट्रीटमेंट, खून की बजाय सीधे पेट में दी गई कीमोथेरेपी 

कीमोथेरेपी की दवाइयां भी खून की नसों के बजाय सीधी पेट में देने का फायदा होता है. इससे पूरे शरीर में इसके साइड इफेक्ट्स नहीं होते हैं. साथ ही जहां पेट में ही सबसे ज्यादा मात्रा में दवाई की जरूरत होती है, वहीं इसको सीधे दिया जा सकता है. 

Stomach Cancer
gnttv.com
  • जोधपुर,
  • 22 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 2:28 PM IST
  • 10 घंटे में हुई पूरी सर्जरी 
  • सीधे पेट में दी जाती है ये दवा

एम्स जोधपुर के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी (Oncology) विभाग में एडवांस हाइपरथर्मिक इन्ट्रापेरिटोनेल कीमोथेरेपी (HIPEC) मशीन से पेट में फैले हुए कैंसर के दो मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया गया.  सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के डॉ जीवनराम विश्नोई ने बताया कि 42 वर्षीय महिला को ओवरी  (Ovary) कैंसर था जो बड़ी आंत सहित भीतरी अंगों तक ​फैला हुआ था, उसे सफलतापूर्वक निकाला जा चुका है.  दरअसल, इस तरह के ऑपरेशन को साइटोरेडक्टिव सर्जरी (cytoreductive surgery) कहा जाता है. 

ऑपरेशन के बाद वहां फैले कैंसर का ट्रीटमेंट सिस्प्लैटिन (cisplatin) नामक कीमोथेरेपी की दवा से शुरू किया गया. इस दवा को HIPEC मशीन से 42 डिग्री तापमान पर लगातार गर्म  करते हुए 90 मिनट तक पूरे पेट में प्रवाहित किया गया. इस तरह की पूरी सर्जरी में टीम को दस घंटे का समय लगा. 

ये तकनीक है कारगर 

एम्स के निदेशक डॉ संजीव मिश्रा के अनुसार, पेट  में फैले हुए ओवेरियन, अपेंडिक्स व बड़ी आंत  के कैंसर के लिए ये तकनीक बहुत कारगर है. ज्यादातर ये कैंसर पेट में, आसपास के दूसरे अंगो में और पेट के अंदर की झिल्ली (पेरिटोनियम) में फैल जाता है. यही वजह है कि इस तरह के कैंसर की खून से शरीर के दूसरे अंगो में जाने की संभावना कम रहती है. इसलिए इस प्रकार के एडवांस कैंसर को साइटोरेडक्टिव सर्जरी करके पूरी तरह निकालना जरूरी होता है. 

कैसे दी जाती है कीमोथेरेपी?

डॉ संजीव मिश्रा ने आगे बताया कि HIPEC मशीन से कीमोथेरेपी की दवा को 42 डिग्री तापमान पर गर्म करके लगातार पेट में ट्यूब्स से प्रवाहित किया जाता है. इससे पेट में मौजूद कैंसर के सूक्ष्म कण पर 42 डिग्री का तापमान व कीमोथेरेपी की दवा दोनो ही प्रभावशाली साबित होते हैं.

सीधे पेट में क्यों दी जाती है ये दवा?

डॉ जीवनराम विश्नोई के अनुसार कीमोथेरेपी की दवाइयां भी खून की नसों के बजाय सीधी पेट में देने का फायदा होता है. इससे पूरे शरीर में इसके साइड इफेक्ट्स नहीं होते हैं. साथ ही जहां पेट में ही सबसे ज्यादा मात्रा में दवाई की जरूरत होती है, वहीं इसको सीधे दिया जा सकता है. 

बता दें, इस ऑपरेशन में डॉ विश्नोई के साथ डॉ निवेदिता शर्मा, डॉ धर्माराम पुनिया, डॉ राहुल यादव, डॉ राजेंदर, डॉ मोहित, डॉ अरविन्द, डॉ नेहा, इबा खरनीयोर, धर्मवीर, तीजो चौधरी, रमेश शामिल थे. एनस्थेसिया टीम में प्रोफ़ेसर प्रदीप भाटिया के नेतृत्व में डॉ प्रियंका सेठी (सहायक आचार्य), डॉ दीपक, डॉ बालाकृष्ण, डॉ पूजा (रेज़िडेंट) आदि ने मदद की. 

(अशोक शर्मा की रिपोर्ट)


 
 

Read more!

RECOMMENDED