Chandrayaan-3: चंद्रमा की सतह पर 23 अगस्त को उतरेगा चंद्रयान-3, जानिए क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग और इस मिशन से इंडिया को क्या होगा हासिल    

ISRO Scientists Confident of Successful landing: चांद की सतह से बड़ी खुशखबरी आने में अब बस चंद दिन शेष हैं. चंद्रयान-3 के चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग के साथ ही इंडिया एक नया इतिहास रच देगा. ऐसा करने वाला वह दुनिया का पहले देश बन जाएगा.

23 अगस्त 2023 की शाम चंद्रमा की सतह पर उतरेगा चंद्रयान-3 (फोटो इसरो ट्विटर)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 21 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 5:09 PM IST
  • चंद्रयान-3 का लैंडर 25 किमी की ऊंचाई से चांद की तरफ बढ़ेगा 
  • लैंडर विक्रम चांद की सतह पर 14 दिनों तक करेगा खोज 

हमारा चंद्रयान-3 इतिहास रचने की तरफ बढ़ रहा है. यह चांद के करीब पहुंच गया है. यहीं से अब ये 23 अगस्त 2023 को चांद के दक्षिण ध्रुव (साउथ पोल) पर 18:04 बजे सॉफ्ट लैंडिंग करेगा. आज आइए जानते हैं क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग और इस मिशन से इंडिया को क्यो होगा हासिल?

क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग 
आसान भाषा में समझें तो सॉफ्ट लैंडिंग उस प्रक्रिया को कहते हैं जब कोई अंतरिक्षयान किसी ग्रह पर ऐसे उतारा जाता है कि उसे किसी तरह का नुकसान न हो. इसी के उलट हार्ड लैंडिंग में इसमें मौजूद मशीन और इक्विपमेंट के खराब होने का खतरा रहता है. इससे पूरे मिशन के बर्बाद होने का रिस्क रहता है. इसलिए चंद्रयान-3 के जरिए विक्रम लैंडर के सॉफ्ट लैंडिंग की तैयारी है. सॉफ्ट लैंडिंग के लिए पूरा देश दुआ कर रहा है क्योंकि ऐसा करते ही इंडिया एक नया इतिहास रचेगा.

पैराशूट से कूदता हुआ आदमी है सबसे बड़ा उदाहरण
एक इंटरव्यू में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक विनोद कुमार श्रीवास्तव ने कहा था, सॉफ्ट लैंडिंग का सबसे बड़ा उदाहरण है पैराशूट से कूदता हुआ आदमी. जब विमान से कोई इंसान कूदता है तो पैराशूट उसके वजन और गुरुत्वाकर्षण के असर को कम करता है. इसलिए उसे चोट नहीं पहुंचती. यदि वह पैराशूट न खोले तो वह गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव और अपने वजन की वजह से तेजी से जमीन पर टकरा सकता है. इससे उसे भारी नुकसान हो सकता है या उसकी मौत हो सकती है. लेकिन पैराशूट की वजह से वह सॉफ्ट लैंडिंग करता है. 

अंतरिक्षयान की लैंडिंग है अलग
आपको यह बता दें कि अंतरिक्षयान की लैंडिंग पैराशूट की मदद से विमान से कूदे व्यक्ति की लैंडिंग से अलग होती है, क्योंकि यह लैंडिंग धरती के गुरुत्वाकर्षण बल के आधार पर होती है, लेकिन चंद्रमा की स्थिति अलग है और वहां पर धरती की तुलना में गुरुत्वाकर्षण बल भी बेहद कम है. चांद पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति धरती की अपेक्षा 1/6 कम है. यानी वहां गिरने की गति बढ़ जाएगी. वहां वायुमंडल नहीं है, इसलिए घर्षण से गति कम करने की कवायद भी नहीं कर सकते. यानी न तो पैराशूट का उपयोग कर सकते हैं न ही प्लेन की तरह लैंडिंग. 

महत्वपूर्ण है सॉफ्ट लैंडिंग
विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह से लगभग 25 किमी की ऊंचाई से चंद्रमा पर उतरेगा. सॉफ्ट लैंडिंग काफी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें रफ और फाइन ब्रेकिंग सहित कई जटिल शृंखला शामिल होती है. सॉफ्ट लैंडिंग के लिए चंद्रयान-3 के नीचे लगे पांचों इंजन को ऑन किया जाएगा. जो इंजन अभी तक विक्रम लैंडर को आगे बढ़ाने का काम कर रहे थे, वही इंजन विपरीत दिशा में दबाव बनाकर विक्रम की गति को कम करके लैंडिंग से कुछ समय पहले लैंडर की गति को जीरो कर देंगे. जिसकी मदद से विक्रम लैंडर आराम से चंदा मामा की सतह पर उतरेगा. लेकिन इससे पहले विक्रम लैंडर में लगे सेंसर सही जगह की तलाश करेंगे, जहां पर लैंडिंग हो सके. लैंडर विक्रम चांद की सतह पर 14 दिनों तक खोज करेगा.

इस बार सॉफ्ट लैंडिंग क्यों है आसान
इसरो ने चंद्रयान-2 के क्रैश होने से काफी कुछ सीख ली है. इसरो ने हाल ही में चंद्रमा की फोर साइड तस्वीरें शेयर की थीं. ये वो तस्वीरें हैं, जिनमें चांद के उस हिस्से को दिखाया गया है, जो पृथ्वी से नहीं दिखता. चंद्रयान-3 में इसरो लैंडर हैजार्ड डिटेक्शन एंड एवॉइडेंस कैमरे (LHDAC) का इस्तेमाल किया है. ये कैमरा ही चंद्रयान-3 की लैंडिंग को आसान बनाएगा. दरअसल, लैंडर विक्रम को सॉफ्ट लैंडिंग के लिए एरिया लोकेट करने में कैमरा मदद करेगा. इससे बिना गड्ढे वाले इलाके का पता चलेगा और लैंडर धीमे से चांद की सतह पर कदम रख देगा.

क्रिटिकल टाइमिंग को लेकर अलर्ट है इसरो
23 अगस्त की शाम चंद्रयान-3 का लैंडर 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद की तरफ बढ़ेगा और सतह तक पहुंचने में उसे 15 से 20 मिनट लगेंगे. ये टाइमिंग सबसे क्रिटिकल मानी जा रही है. दरअसल, इसमें लैंडर की स्पीड को ऑब्जर्व करना, लैंडिंग के लिए जगह को चुनना और उड़ने वाली धूल में लैंडर को सतह तक पहुंचाना मुश्किल है. लेकिन, इसके बाद लैंडर विक्रम अपनी रैंप खोलेगा और छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर बाहर आ जाएगा. इसरो रोवर को कमांड देगा और चांद की सतह पर पहिए भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो की छाप छोड़ते जाएंगे.

इस मिशन से भारत को क्या होगा हासिल
1. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की काफी कम जानकारी दुनिया के पास मौजूद है. इस मिशन से दक्षिणी ध्रुव की कई अहम जानकारी भारत को हाथ लग सकती है.

2. दक्षिणी ध्रुव में ज्यादातर समय छाया रहती है. इस क्षेत्र का तापमान बहुत कम रहता है. तापमान -100 डिग्री से भी नीचे चला जाता है. उम्मीद जताई जा रही है कि दक्षिणी ध्रुव पर तापमान कम होने की वजह से यहां पर पानी और खनिज की मौजूदगी भी हो सकती है. वहीं, कई वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि इस क्षेत्र में बर्फ जमा होने की बातें कही है. 

3. इस मिशन के जरिए भारत दक्षिणी ध्रुव पर मिट्टी का केमिकल विश्लेषण के साथ चांद पर मौजूद चट्टानों की भी स्टडी करेगा. चंद्रमा के वातावरण की जानकारी भी प्राप्त की जा सकेगी. इंसान की ख्वाहिश है कि चंद्रमा पर मानव बस्तियां बस सके. इसके लिए वहां के वातावरण की पूरी जानकारी होनी जरूरी है.

4. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद मिट्टी और चट्टानों की स्टडी करने से वैज्ञानिकों को चंद्रमा के इतिहास और भूविज्ञान की काफी जानकारी मिल सकेगी, जो चंद्रमा पर भेजे जाने वाले मानव मिशनों के लिए उपयोगी होगी. 

5. यह मिशन न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएगी बल्कि हमारे देश में रोजगार के कई अवसर भी खोलने में मदद करेगी. दरअसल, आज के समय अंतरिक्ष क्षेत्र में प्राइवेट इन्वेस्टर्स काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. चंद्रयान-3 की सफलता, प्राइवेट इन्वेस्टर्स को इसरो के साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित करेगी.

6. दुनियाभर में कम लागत में अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक सैटेलाइट भेजने के लिए इसरो काफी प्रसिद्ध है. चंद्रयान-3 की सफलता के बाद दुनिया भर के इन्वेस्टर्स भारत की ओर रुख करेंगे. इस मिशन की सफलता से कई और दूसरे मिशन के लिए दरवाजे खुलेंगे. 

 

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