हाल ही में, अग्निकुल कॉसमॉस कंपनी ने दुनिया के पहले सिंगल-पीस 3डी-प्रिंटेड रॉकेट इंजन द्वारा संचालित अपना पहला सब-ऑर्बिटल टेस्ट व्हीकल लॉन्च किया. 30 मई को सुबह 7.15 बजे, अग्निबाण SOrTeD (सब-ऑर्बिटल टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर) ने श्रीहरिकोटा में कंपनी द्वारा स्थापित एक निजी लॉन्चपैड से उड़ान भरी. इंजन के पुर्जे आम तौर पर अलग से मैन्यूफैक्चर करके असेंबल किए जाते हैं. लेकिन, 3डी प्रिंटिंग से लॉन्च की लागत और व्हीकल असेंबली टाइम, दोनों कम होने की संभावना है. यह कंपनी है मोइन एस पी एम और श्रीनाथ रविचंद्रन की.
क्रिकेट फ्रेंडस से रॉकेट तक का सफर
चेन्नई में एक साथ क्रिकेट खेलते हुए बड़े हुए दोनों दोस्तों, मोइन एस पी एम और श्रीनाथ रविचंद्रन ने 2017 में अग्निकुल की स्थापना की. हालांकि, 34 वर्षीय मोइन और 39 वर्षीय रविचंद्रन के अलग-अलग स्ट्रीम में एक्सपर्टीज हासिल करने के बाद से उनके रास्ते एक होने में थोड़ा समय लगा. मोइन ने चेन्नई के अन्ना विश्वविद्यालय से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की और न्यूकैसल विश्वविद्यालय से एमबीए किया, वहीं रविचंद्रन ने चेन्नई के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, इसके बाद कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में सर्टिफिकेट कोर्स किया, और इलिनोइस विश्वविद्यालय अर्बाना-शैंपेन से उसी क्षेत्र में मास्टर डिग्री.
शुरुआत में दोनों दोस्तों ने बहुत अलग-अलग करियर को चुना था- मोइन और उनके चचेरे भाइयों ने एक कंपनी की स्थापना की जो फ्रेग्रेंस और एरोमेटिक कंपाउंड का निर्माण और बिक्री करती थी. वहीं, रविचंद्रन ने लॉस एंजिल्स में शिफ्ट होने से पहले न्यूयॉर्क में वॉल स्ट्रीट पर काम करना शुरू किया. दोनो दोस्त अलग-अलग फील्ड में थे लेकिन उनका पैशन कहीं न कहीं कुछ और था. वे कुछ अलग करना चाह रहे थे. उन्हें पता लगा कि 3डी प्रिंटिंग का उपयोग छोटे रॉकेट भागों को बनाने के लिए किया जा रहा है. तो उन्होंने सोचा, पूरा इंजन क्यों नहीं डिजाइन किया जा सकता है. हालांकि, पारंपरिक डिजाइनों को 3डी प्रिंट करना संभव नहीं था, जो 3डी प्रिंटर के साथ संगत नहीं हैं, इसलिए पूरे इंजन को फिर से डिजाइन करना पड़ा.
इसरो के वैज्ञानिकों ने की मदद
मोइन और रविचंद्रन ने फिर ऐसे इंसान की तलाश की जो रॉकेट इंजन को "प्रिंट" करने और अंतरिक्ष में प्रोजेक्टाइल लॉन्च करने में उनकी मदद कर सके. उनकी मुलाकात प्रोफेसर सत्या चक्रवर्ती (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास में राष्ट्रीय दहन अनुसंधान और विकास केंद्र के प्रमुख) से हुई. उन्होंने मोइन और रविचंद्रन को आर वी पेरुमल (सेवानिवृत्त जीएसएलवी परियोजना निदेशक) के संपर्क में रखा. पेरुमल ने शुरू से ही इसरो के जीएसएलवी (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च वाहन) के विकास को देखा था.
प्रोफेसर चक्रवर्ती और पेरुमल उनकी कंपनी में संस्थापक सलाहकार बन गए. साल 2017 में उनकी उनकी कंपनी शुरू हुई. उन्होंने अपनी टेक्नोलॉजी को पेटेंट कराया है. अग्निकुल के पास वर्तमान में एक 3डी प्रिंटर है, लेकिन वह छोटे सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के बड़े बाजार को ध्यान में रखते हुए इसे बढ़ाने पर विचार कर रहा है.
3D प्रिंटिंग के हैं कई फायदे
रॉकेट को 3डी प्रिंटिंग से कई फायदे हैं. क्योंकि इंजन में चलने वाले हिस्से नहीं होते हैं - कोई जोड़ नहीं होता है, कोई वेल्डिंग नहीं होती है और कोई फ़्यूज़िंग नहीं होती है - रॉकेट को असेंबल करने में लगने वाला समय काफी कम हो जाता है. जब रॉकेट बनाने की बात आती है, तो मोइन कहते हैं, पारंपरिक मैन्यूफैक्चरिंग जहां दो सप्ताह का समय लेती हैं वहीं एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (या 3 डी प्रिंटिंग) में लगभग तीन दिन लगते हैं.
एक पारंपरिक रॉकेट को एक साथ रखने और लॉन्च से पहले उसका परीक्षण करने में लगभग नौ महीने लगते हैंय उन्होंने कहा कि 3डी प्रिंटिंग इंजनों के साथ, लॉन्च व्हीकल को तैयार करने में सिर्फ कुछ सप्ताह लगेंगे. कंपनी का लक्ष्य इस फाइंनेंशियल साल के अंत तक अपना पहला ऑर्बिटल लॉन्च करना और सैटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा में ले जाना है. उनकी योजना नौ से 12 महीनों के भीतर कमर्शियल लॉन्च शुरू करने और एक साल में लगभग 50 लॉन्च करने की है. उन्होंने कहा कि लॉन्च श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट में इसके मौजूदा लॉन्चपैड से होगा और बाद में तमिलनाडु के कुलशेखरपट्टनम में छोटे वाहनों के लिए बनने वाले आगामी बंदरगाह से होगा.