Dream reading machine: क्या जापान में विकसित हुई सपनों की वीडियो रिकॉर्डिंग करने वाली मशीन? जानिए क्या है दावे की हकीकत

दावा किया जा रहा है कि जापानी वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित कि है जो इंसानों के सपनों को रिकॉर्ड कर उन्हें 'रिप्ले' कर सकता है. यह दावा कितना सच है और कितना झूठ, जानिए.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 30 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 7:18 AM IST

सोशल मीडिया पर वैज्ञानिक आविष्कार से लेकर दैविक चमत्कार तक नित नई खबरें सामने आती रहती हैं. इन खबरों में कुछ सच्ची होती हैं तो कुछ झूठी. इस समय सोशल मीडिया पर जापानी वैज्ञानिकों से जुड़ी एक खबर वायरल हो रही है. इस खबर में दावा किया जा रहा है कि जापानी वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित कि है जो इंसानों के सपनों को रिकॉर्ड कर उन्हें 'रिप्ले' कर सकता है. यह दावा कितना सच है और कितना बनावटी, आइए जानते हैं. 

क्या हो सकते हैं सपने रिकॉर्ड?
इस दावे की पड़ताल हमें 2013 में ले जाती है. जापान की एटीआर कम्प्यूटेशन न्यूरोसाइंस लैब ने 11 साल पहले एक रिसर्च जारी की थी, जिसके अनुसार जापान के वैज्ञानिकों ने लोगों के स्वपन पढ़ने का तरीका ढूंढ निकाला था. 

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस रिसर्च के लिए वैज्ञानिकों ने उन एमआरआई स्कैन का इस्तेमाल कर ऐसी तस्वीरें तैयार कीं जो एक सोते हुए इंसान ने अपनी नींद के शुरुआत में देखी थीं. 'साइंस' जर्नल बताया गया कि वे वैज्ञानिक 60% सटीकता के साथ इस काम को अंजाम दे पा रहे थे. 


कैसे की गई रिसर्च?
इस रिसर्च में सोने के लिए कुछ वॉलंटियर चुने गए. जैसे ही ये वॉलंटियर स्कैनर के अंदर सोने लगे, इन्हें उठाकर पूछा गया कि अपने सपनों की शुरुआत में उन्होंने क्या-क्या देखा. प्रतिभागी ने जो भी चीजें बताईं, उन्हें नोट किया गया और यह प्रक्रिया 200 बार दोहराई गई. इस प्रक्रिया से जो नतीजे सामने आए उनसे एक डेटाबेस तैयार किया गया. इस डेटाबेस में एक जैसी चीजों के वर्ग बनाए गए. मिसाल के तौर पर, होटल, घर और बिल्डिंग को "संरचनाएं" (Structures) नाम के वर्ग में डाला गया. 

वैज्ञानिकों ने वॉलंटियर्स को एक बार फिर स्कैन किया. लेकिन इस बार उन्हें जगाकर रखा गया. उन्हें एक कंप्यूटर स्क्रीन पर तस्वीरें दिखाई गईं और उनके दिमाग में जो पैटर्न तैयार हुए उन्हें नोट कर लिया गया. इन दोनों प्रक्रियों के दम पर वैज्ञानिक कुछ तस्वीरों के साथ पैटर्न जोड़ने में सफल रहे. 

रिसर्च के दूसरे चरण में वॉलंटियर्स से सोने के लिए कहा गया. इस बार वैज्ञानिक उनके दिमाग के स्कैन देखकर बता पा रहे थे कि वे सपनों में क्या देख रहे हैं. ऐसा करने में वैज्ञानिकों की सटीकता 60 प्रतिशत थी. 

क्या बन पाएंगे वीडियो भी?
सोशल मीडिया पर मौजूद खबर में दो दावे किए गए हैं. पहला यह कि सपनों की वीडियो उपलब्ध होगी. और दूसरा यह कि सपनों में चल रही कहानी का भी पता लगाया जा सकेगा. इन दोनों दावों में कोई सच्चाई नहीं है. दरअसल यह तकनीक दिमाग के स्कैन से फिलहाल सपनों में दिखने वाली वस्तुओं का ही पता लगा सकती है. 

फिलहाल विज्ञान सपनों को 'पढ़ने' से बहुत दूर है. हालांकि मौजूदा तकनीक उस मंजिल तक पहुंचने का रास्ता जरूर तैयार कर देती है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के डॉ मार्क स्टोक्स कहते हैं, "वहां पहुंचने में हमें अभी बहुत समय लगेगा लेकिन यह मानने का कोई कारण नहीं है कि ऐसा नहीं हो सकता. मुश्किल बस यह है कि दिमाग की एक्टिविटी और घटनाओं को कैसे जोड़ा जाए." 

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