Earth’s First Radio Message to Aliens: 50 साल पहले इंसानों ने भेजा था एलियंस को अपना पहला मैसेज... किस भाषा में और वो क्या संदेश था

Earth’s First Radio Message to Aliens: साल 1974 में, हमारी जिज्ञासा ने एक कदम आगे बढ़ाया था, जब एक रेडियो मैसेज अंतरिक्ष में भेजा गया था. इसका मकसद था ये पता लगाना कि क्या यूनिवर्स में कोई भी है? या क्या एलियंस सच में हैं? इसे "अरेसिबो मैसेज" के रूप में जाना जाता है. 

Earth’s First Radio Message to an Alien Civilization (Representative Image)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:31 PM IST
  • इंसानों ने एलियंस को भेजा था मैसेज
  • यह एक एक्सपेरिमेंट भर था

यूनिवर्स कैसा है? वहां क्या है? क्या हमारे अलावा भी कोई दूसरा  यूनिवर्स है? क्या कहीं धरती से अलग भी दुनिया है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन्हें खोजने के लिए न जाने कब से अलग-अलग एक्सपेरिमेंट किए जा रहे हैं. समय के साथ, इन सभी सवालों के जवाबों की जिज्ञासा ने अनगिनत मिथकों, वैज्ञानिक सिद्धांतों, अलग-अलग इनोवेशन और चर्चाओं को जन्म दिया है. लेकिन 1974 में, हमारी जिज्ञासा ने एक कदम आगे बढ़ाया था, जब एक रेडियो मैसेज अंतरिक्ष में भेजा गया था. इसका मकसद था ये पता लगाना कि क्या यूनिवर्स में कोई भी है? या क्या एलियंस सच में हैं? इसे "अरेसिबो मैसेज" (Arecibo Message) के रूप में जाना जाता है. 

अरेसिबो मैसेज कैसे बना?
स्पेस में किसी तरह का कोई मैसेज भेजने का विचार काफी पहले से ही चला आ रहा था. 1974 में, प्यूर्टो रिको के अरेसिबो ऑब्जर्वेटरी में काम कर रहे वैज्ञानिकों ने इस मैसेज को बनाया था. ये तब दुनिया का सबसे बड़ा रेडियो टेलिस्कोप था. प्रसिद्ध अमेरिकी खगोलशास्त्री फ्रैंक ड्रेक ने इस प्रोजेक्ट को लीड किया था. 

हालांकि, इस मैसेज का उद्देश्य सीधे एलियंस से बातचीत करना नहीं था; बल्कि, यह एक एक्सपेरिमेंट भर था कि अब तक इंसानों ने कितना कुछ पा लिया है या तरक्की कर ली है. 

अरेसिबो मैसेज में क्या था? 
अरेसिबो मैसेज को आसान और समझदारी वाला बनाने के लिए काफी ध्यानपूर्वक तैयार किया गया था. लेकिन इसमें सबसे बड़ी चुनौती थी कि आखिर वैज्ञानिक ऐसा क्या लिखें कि एलियंस से संवाद हो पाए. इसमें क्या भाषा हो? संस्कृति? या इतिहास? क्या मैसेज हो कि यह सही जगह पर पहुंचे. 

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, अरेसिबो मैसेज को बाइनरी डिजिट (1,679 बिट्स) में लिखा गया. इस मैसेज को 73 लाइन और 23 कॉलम के एक ग्रिड में लिखा गया था. इस साधारण बाइनरी कोड ग्रिड में, वैज्ञानिकों ने कई चीजें रखी थी: 

1. संख्या 1 से 10: मैसेज में संख्याओं को 1 से 10 तक शुरू में किया गया था. 

2. एटॉमिक नंबर: इसके बाद, जीवन के लिए जरूरी प्रमुख तत्वों हाइड्रोजन, कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और फॉस्फोरस की एटॉमिक संख्या दिखाई गई, जो कि पृथ्वी पर डीएनए का आधार हैं.

3. डीएनए स्ट्रक्चर: मैसेज में डीएनए का डबल हेलिक्स स्ट्रक्चर का एक आसान सा चित्र बनाया गया था और डीएनए के न्यूक्लियोटाइड बेस भी दिखाए गए थे. 

4. मानव आकृति और जनसंख्या: इंसानों का एक चित्र, साथ ही ऊंचाई और उस समय पृथ्वी की जनसंख्या का संकेत भी दिया गया था.

5. सोलर सिस्टम: मैसेज में हमारे सौरमंडल का चित्रण था, जिसमें सूर्य से तीसरे ग्रह के रूप में पृथ्वी को चिह्नित किया गया था. 

6. अरेसिबो ऑब्जर्वेटरी: आखिर में, अरेसिबो टेलिस्कोप की एक बुनियादी योजना भी शामिल की गई थी, इसमें इस तरह की साइन की गई थी, जो भेजने वाले की पहचान को दर्शाती थी.

अरेसिबो मैसेज (फोटो-phl.upr.edu)

16 नवंबर, 1974 को अरेसिबो मैसेज को 2,380 मेगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी पर ट्रांसमिट किया गया था. इसे ग्लोबुलर स्टार क्लस्टर M13 की ओर भेजा गया, जो हरक्यूलिस तारामंडल में स्थित है. 

क्या उसका जवाब आया था?
हालांकि, अरेसीबो मैसेज केवल एक बार ही प्रसारित किया गया था. भले ही इसका जवाब न आया हो लेकिन इसने कई बड़ी चर्चाएं शुरू कर दीं. कुछ न संदेश भेजने को बेवकूफी बताया तो कुछ न समझदारी. कुछ वैज्ञानिक तर्क देते हैं कि एलियंस को जानबूझकर संदेश भेजना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि हम उनकी मंशा या तकनीकी क्षमताओं की भविष्यवाणी नहीं कर सकते. दूसरी ओर, समर्थकों का कहना है कि अगर एलियन सभ्यताएं हैं और हमारे संदेशों को पकड़ने का साधन रखती हैं, तो वे पहले से ही पृथ्वी पर जीवन के संकेतों को देख चुके होंगे. ऐसे में अरेसीबो जैसे मैसेज उन्हें हम तक पहुंचने में मदद कर सकते हैं. 

 

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