आखिर कैसे वैज्ञानिकों के काम में अड़चन पैदा कर रही Elon Musk की Starlink Satellites... स्पेस व्यू ब्लॉक होने की कर रहे हैं शिकायत

स्पेस में इस वक्त हजारों स्टारलिंक सैटेलाइट्स हैं. वर्तमान में, अमेरिका, रूस, चीन और स्पेसएक्स जैसी प्राइवेट कंपनियां सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजती हैं. हर देश या कंपनी अपनी खुद की सैटेलाइट्स को मैनेज करती हैं. हालांकि, इसके लिए कुछ अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और नियम भी हैं. उन सभी का ध्यान रखते हुए इन सैटेलाइट को स्पेस में लॉन्च किया जाता है. 

Starlink project (Representative Image/Nasa)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 19 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:24 PM IST
  • हजारों स्टारलिंक सैटेलाइट्स हैं स्पेस में  
  • सैटेलाइट्स कर रही हैं स्पेस व्यू ब्लॉक

एलन मस्क (Elon Musk) पिछले कई सालों से स्पेस इंडस्ट्री में अपनी धाक जमाने में लगे हैं. एलन के स्टारलिंक प्रोजेक्ट (Starlink project) का उद्देश्य पूरी दुनिया में हाई-स्पीड इंटरनेट (High Speed Internet) उपलब्ध कराना है. स्टारलिंक सैटेलाइट्स उन दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी देने का काम रही हैं, जहां कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है. हालांकि, इसकी कीमत दूसरे वैज्ञानिकों को चुकानी पड़ रही है.

हाल ही में नीदरलैंड्स इंस्टीट्यूट फॉर रेडियो एस्ट्रोनॉमी (ASTRON) से आई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ये सैटेलाइट्स कहीं न कहीं स्पेस का व्यू ब्लॉक कर रही हैं. इसका मतलब है कि एलन मस्क की ये सैटेलाइट इतनी ज्यादा हैं कि इस भीड़ से अंतरिक्ष में कई चीजें दिख नहीं पा रही हैं. 

स्टारलिंक पहले से ही इंटरनेट कनेक्टिविटी को बेहतर और तेज बनाने का काम कर रहा है. 2022 में यूके में किए गए टेस्ट से पता चला कि स्टारलिंक दूसरों की तुलना में चार गुना तेज़ स्पीड से इंटरनेट दे सकता है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों और युद्ध क्षेत्र जैसे यूक्रेन (Ukraine) और यमन को फायदा पहुंच रहा है.

हालांकि, खगोल वैज्ञानिकों के लिए चिंता का बड़ा कारण यह है कि स्टारलिंक सैटेलाइट्स से निकलने वाले रेडियो सिग्नल (Radio Signal) बहुत ज्यादा हैं. ये रेडियो टेलिस्कोप से जो डेटा मिलता उसे रोकने या उसमें हस्तक्षेप कर करने का काम कर रहे हैं.

ASTRON के शोधकर्ताओं ने पाया कि इन नए सैटेलाइट्स से निकल रहे रेडियो सिग्नल दूसरी सैटेलाइट्स की तुलना में 32 गुना ज्यादा ब्राइट (तेज) हैं. यह नीदरलैंड्स में स्थित दुनिया के सबसे बड़े और शक्तिशाली रेडियो टेलिस्कोप को उसका काम करने से रोक रहे हैं. लोफार (LOFAR) जैसे प्रोजेक्ट के लिए इतने तेज सिग्नल बड़ी चुनौती हैं. LOFAR और इसी तरह के दूसरे टेलिस्कोप (Telescope) का काम अंतरिक्ष में हो रही किसी भी एक्टिविटी को मॉनिटर या ट्रैक करना है, लेकिन उनके सिग्नल काफी कमजोर होते हैं. ऐसे में एलन मस्क की सैटेलाइट्स से निकले तेज सिग्नल इनको ट्रैक करने में रुकवाट पैदा कर रहे हैं. ASTRON ने कहा है कि इतने तेज रेडियो सिग्नल की वजह से स्पेस का अध्ययन करना लगभग असंभव हो रहा है.

हजारों स्टारलिंक सैटेलाइट्स हैं स्पेस में  
स्पेस में इस वक्त हजारों स्टारलिंक सैटेलाइट्स हैं. वर्तमान में, अमेरिका, रूस, चीन और स्पेसएक्स जैसी प्राइवेट कंपनियां सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजती हैं. हर देश या कंपनी अपनी खुद की सैटेलाइट्स को मैनेज करती हैं. हालांकि, इसके लिए कुछ अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और नियम भी हैं. उन सभी का ध्यान रखते हुए इन सैटेलाइट को स्पेस में लॉन्च किया जाता है. 

फोटो- SpaceX

कैसे की जाती है सैटेलाइट लॉन्च?
सैटेलाइट को स्पेस में भेजने की प्रक्रिया में कई चरण होते हैं, जिसकी शुरुआत रॉकेट लॉन्च से होती है. सैटेलाइट्स अक्सर रॉकेटों का उपयोग करके धरती के वायुमंडल (Atmoshphere) को पार करते हैं. अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद, सैटेलाइट को उसकी ऑर्बिट कक्षा में तैनात किया जाता है. स्पेस में अलग-अलग ऑर्बिट होती हैं. इन सबका अपना अलग उद्देश्य है. लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थित सैटेलाइट्स, जैसे स्टारलिंक, पृथ्वी के करीब होने के कारण तेज़ इंटरनेट की सुविधा देती है, जबकि जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में जो सैटेलाइट्स होती हैं वे काफी ऊपर होती हैं और बड़े क्षेत्र को कवर कर सकती हैं.

इंटरनेशनल लेवल पर बनाए गए हैं नियम 
हालांकि हर देश या कंपनी आमतौर पर अपने सैटेलाइट्स के लॉन्च और ऑपरेशन का मैनेजमेंट करती है, लेकिन इसके लिए दूसरे देशों के साथ भी रिश्ते अच्छे रखने होते हैं. और इसके लिए कुछ नियम-कानून भी हैं. उदाहरण के लिए, यूनिटेड नेशन ऑफिस फॉर आउटर स्पेस अफेयर्स (UNOOSA) स्पेस में मौजूद सभी चीजों का रिकॉर्ड रखता है. इसके अलावा, इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (ITU) ये देखता है कि सभी सैटेलाइट एक दूसरे के रास्ते में कोई अड़चन पैदा न करें.

स्टारलिंक जैसी बड़ी सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन (large satellite constellations) के मामले में, इंटरनेशनल स्पेस एजेंसी और ऑब्जर्वेटरी के बीच तालमेल अच्छा होना बहुत जरूरी है. ताकि दूसरी सैटेलाइट्स के काम में किसी तरह की कोई परेशानी न आए और न ही स्पेस रिसर्च में दिक्कत हो.

फोटो- Unsplash

क्या एक-दूसरे से नहीं टकराती सैटेलाइट? 
पहले से ही हजारों सैटेलाइट्स पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं, और आने वाले वर्षों में हजारों और लॉन्च होने की योजना है, इसलिए टकराव से बचाव सबसे जरूरी है. सैटेलाइट्स को ऐसी ऑर्बिट में रखा जाता है जो टकराव के जोखिम को कम करती हैं. साथ ही सैटेलाइट ट्रैकिंग मॉनिटर सिस्टम से इन्हें ट्रैक और मॉनिटर किया जाता है. यह डेटा अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों और कंपनियों के बीच साझा किया जाता है, जिससे सैटेलाइट भेजने वाली कंपनी जरूरी कदम उठा सकें. 

इसके अलावा, मॉडर्न सैटेलाइट्स में प्रोपल्शन सिस्टम होता है. इसकी मदद से सैटेलाइट अपने आप किसी भी टकराव से बच सकती है और उसी हिसाब से अपनी ऑर्बिट को मैनेज कर सकती है. हालांकि, लोअर ऑर्बिट में स्टरलिंक सैटेलाइट्स की संख्या बढ़ती जा रही है. इनकी वजह से स्पेस ट्रैफिक मैनेज करना मुश्किल होता जा रहा है. 

क्या खुद नष्ट हो जाती हैं सैटेलाइट्स?
बता दें, सैटेलाइट्स स्पेस में स्थायी रूप से नहीं रहती हैं. हर सैटेलाइट का एक अपना टाइम होता है. ये उसके फ्यूल और उसके ऑनबोर्ड सिस्टम पर निर्भर करता है. लोअर अर्थ ऑर्बिट में जो सैटेलाइट होती हैं उनका जीवनकाल लगभग 5 से 15 साल का होता है, जिसके बाद वे या तो पृथ्वी पर वापस गिर जाते हैं और खुद रीएंट्री पर जल जाती हैं या उन्हें एक "ग्रेवयार्ड ऑर्बिट" में ले जाया जाता है, जो एक हायर ऑर्बिट है. 

ग्रेवयार्ड ऑर्बिट में इसलिए ले जाया जाता है ताकि यह स्पेस का कचरा न बने. छोटे से छोटा टुकड़ा भी दूसरी सैटेलाइट्स और स्पेस मिशनों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है.


 

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