Barnard’s Star and Its New Planet: वैज्ञानिकों ने खोजी पृथ्वी जैसी ही छोटी दुनिया, जानें धरती जैसा बनने के लिए किसी ग्रह पर क्या-क्या होना चाहिए?

2018 में, वैज्ञानिकों ने बर्नार्ड तारे के चारों ओर एक ग्रह के होने के संकेत मिले थे. इस ग्रह का Mass लगभग पृथ्वी के तीन गुना होने का अनुमान था. उनका मानना था कि यह तारे से लगभग कुछ ही दूरी पर स्थित है. हालांकि, जब वैज्ञानिकों ने और ज्यादा रिसर्च की, तो उन्हें इस बड़े ग्रह का कोई सबूत नहीं मिला.

Bernard's star planet (Representative Image)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 03 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 12:41 PM IST
  • 2018 में मिला था इसका संकेत  
  • एक्सोप्लैनेट को खोजना आसान नहीं था 

अंतरिक्ष की दुनिया में नए ग्रह की खोज करना हमेशा से एक बड़ी चुनौती रहा है. अब इसी कड़ी में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी जैसे ही छोटी दुनिया की खोज की है. ये एक तरह का एक्सोप्लैनेट है, जो बर्नार्ड तारे के चारों ओर परिक्रमा करता है. यह तारा हमारे सबसे निकटतम पड़ोसियों में से एक है, जो केवल 5.96 लाइट ईयर दूर है. बता दें, वो ग्रह, जो हमारे सूरज के अलावा दूसरे तारों की परिक्रमा करते हैं, उन्हें एक्सोप्लैनेट कहा जाता है. 

बर्नार्ड तारा और उसका नया ग्रह: बर्नार्ड b
बर्नार्ड स्टार एक लाल तारा है, जो हमारे सूरज से छोटा, ठंडा और कम चमकदार है. यह हमारे सौरमंडल (Solar System) के सबसे पास मौजूद है. इस तारे के चारों ओर वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक एक्सोप्लैनेट खोजा है जिसे बर्नार्ड b कहा जा रहा है. बर्नार्ड b बहुत छोटा है - और पृथ्वी के Mass  का लगभग 37 प्रतिशत है. यह शुक्र ग्रह के आकार से थोड़ा कम है और मंगल के Mass का लगभग 2.5 गुना है.

हालांकि, बर्नार्ड b जैसे छोटे एक्सोप्लैनेट को ढूंढना बहुत मुश्किल होता है. वैज्ञानिक आमतौर पर बड़े ग्रहों को आसानी से खोज लेते हैं क्योंकि उनका अपने तारे पर बड़ा प्रभाव होता है, जिससे उन्हें ढूंढना आसान हो जाता है.

2018 में मिला था इसका संकेत  
2018 में, वैज्ञानिकों ने बर्नार्ड तारे के चारों ओर एक ग्रह के होने के संकेत मिले थे. इस ग्रह का Mass लगभग पृथ्वी के तीन गुना होने का अनुमान था. उनका मानना था कि यह तारे से लगभग कुछ ही दूरी पर स्थित है. हालांकि, जब वैज्ञानिकों ने और ज्यादा रिसर्च की, तो उन्हें इस बड़े ग्रह का कोई सबूत नहीं मिला. इसके बजाय, उन्हें बर्नार्ड b मिला, जो तारे के बहुत पास में परिक्रमा करता है.

बर्नार्ड b अपने तारे के चारों ओर सिर्फ 3.15 दिनों में एक परिक्रमा पूरी करता है, जिसका मतलब है कि यह तारे के बहुत करीब है. हालांकि, इसपर जीवन नहीं है, क्योंकि वहां पानी नहीं हो सकता है. 

एक्सोप्लैनेट को खोजना आसान नहीं था 
एक्सोप्लैनेट खोजना आसान नहीं है. आमतौर पर, वैज्ञानिक इन ग्रहों के संकेत तब देखते हैं जब वे अपने तारों पर प्रभाव डालते हैं. इसे रेडियल वेलोसिटी मेथड कहा जाता है. इस मेथड में तारे के छोटे-मोटे हिलने-डुलने को देखना शामिल है. जब तारा थोड़ा "हिलता" है, तब उसकी वेवलेंथ बदलती है. वैज्ञानिक इस बदलाव का विश्लेषण करते हैं तो यह समझने की कोशिश करते हैं कि क्या उस तारे के चारों ओर कोई ग्रह है और उसका मास कितना है.

बर्नार्ड का तारा एस्ट्रोमर्स के लिए विशेष रूप से दिलचस्प है क्योंकि यह एक लाल तारा है और हमारे सबसे करीब तारों में से एक है. इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि बर्नार्ड के तारे जैसे तारों के चारों ओर कौन से ग्रह हो सकते हैं और ये ग्रह हमारे सोलर सिस्टम से कितने अलग हैं? 

कोई ग्रह पृथ्वी जैसा कब बन सकता है? 
जब वैज्ञानिक किसी ग्रह की खोज करते हैं तो वे खोजते हैं कि क्या वहां जीवन संभव है. इसके लिए वे कुछ विशेषताओं को देखते हैं. सबसे जरूरी होता है, पानी. पानी के लिए ग्रह को अपने तारे के इतना पास होना चाहिए कि न तो वह ज्यादा गर्म हो और न ज्यादा ठंडा. इस क्षेत्र को कभी-कभी "गोल्डीलॉक्स जोन" कहा जाता है. 

पानी के अलावा, ग्रह पर जिंदा रहने के कई और चीजें भी जरूरी होती हैं. ग्रह के पास एक वातावरण होना चाहिए जो खराब रेडिएशन से बचा सके और स्थिर तापमान बनाए रख सके. वातावरण में ऑक्सीजन जैसी गैसें होनी चाहिए, जो इंसानों को जिंदा रहने के लिए जरूरी होती है. इसके अलावा, ग्रह पर रहने के लिए ठोस सतह होनी चाहिए और उसमें तारे की सोलर हवा से बचाव के लिए चुंबकीय क्षेत्र या ग्रेविटी होनी चाहिए. 

पृथ्वी जैसे दूसरे एक्सोप्लैनेट
अब तक, वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे एक्सोप्लैनेट खोजे हैं जो आकार में पृथ्वी जैसे ही हैं. उनमें से तीन सबसे ज्यादा पॉपुलर हैं केपलर-186f, केपलर-452b, और ट्रैपिस्ट-1e-

- केपलर-186f: यह एक्सोप्लैनेट पृथ्वी से लगभग 500 लाइट ईयर दूर है. यह अपने तारे के इतना पास है जहां रहा जा सकता है. ये पहला ऐसा ग्रह था, जो आकर में पृथ्वी जैसा ही था. केपलर-186, एक लाल तारा है. हालांकि केपलर-186f आकार में पृथ्वी के जैसा ही है, लेकिन वैज्ञानिक यह सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं कि इसमें इंसानों के जिंदा रहने वाला वातावरण है या नहीं. 

-केपलर-452b: यह एक्सोप्लैनेट लगभग 1,400 लाइट ईयर दूर स्थित है और इसे अक्सर "पृथ्वी का चचेरा भाई" कहा जाता है. यह पृथ्वी से बड़ा है और हमारे सूरज जैसे तारे के चारों ओर परिक्रमा करता है. इसमें पानी हो सकता है, लेकिन जीवन यहां मुमकिन है या नहीं इसे लेकर अभी कुछ साफ नहीं हो पाया है. 

-ट्रैपिस्ट-1e: यह एक्सोप्लैनेट ट्रैपिस्ट-1 तारे के सात ग्रहों में से एक है, जो एक लाल प्लेनेट है और पृथ्वी से लगभग 40 लाइट ईयर दूर स्थित है. ट्रैपिस्ट-1e आकार में पृथ्वी के जैसा ही है और अपने तारे के पास ही है. 

इंसान स्पेस में अभी कितनी दूर तक जा सकते हैं
जब हम दूर के ग्रहों की यात्रा के बारे में सोचते हैं, तो यह जरूरी होता है कि हम यह समझें कि इंसान अभी मौजूदा समय में स्पेस में कितनी दूर जा सकते हैं. अब तक, इंसानों ने जितनी दूर यात्रा की है, वह चंद्रमा तक है, जो पृथ्वी से लगभग 3,84,400 किलोमीटर दूर है. 1960 और 1970 के दशक में अपोलो मिशन में एस्ट्रोनॉट ने चंद्रमा पर कदम रखा था और वे सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस आए थे. 

इंसानों का अब सबसे बड़ा मिशन मंगल ग्रह पर लोगों को भेजना है. मंगल, चंद्रमा की तुलना में पृथ्वी से काफी दूर है और उसकी दूरी लगभग 22.5 करोड़ किलोमीटर है. नासा और दूसरी स्पेस एजेंसियां मंगल पर मानव मिशन की योजना बना रही हैं, जो 2030 के दशक के मध्य तक शुरू हो सकता है. मंगल पर भेजा जाने वाला पहला ह्यूमन मिशन एक बड़ा कदम होगा. इससे हमें ये पता लगेगा कि आखिर इंसान कहां तक स्पेस में यात्रा कर सकते हैं. 

जहां तक दूसरे तारों तक पहुंचने का सवाल है, वर्तमान तकनीक से इंसानों के लिए ऐसा करना मुमकिन नहीं है. सबसे पास का में अल्फा सेंटौरी है, जो पृथ्वी से लगभग 4.37 लीग ईयर दूर है. वर्तमान रॉकेट टेक्नोलॉजी के साथ, इस दूरी को तय करने में हजारों साल लगेंगे. 


 

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