जब भी किसी एस्ट्रोनॉट को स्पेस में भेजा जाता है तो उसका अच्छे से चेकअप होता है. क्योंकि स्पेस मानव शरीर के लिए काफी अलग जगह हो सकती है. जिसमें माइक्रोग्रैविटी की स्थिति और दूसरे कारक हमारे शरीर के साथ छेड़छाड़ करते हैं. पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण की वजह से जिस तरह हमारा शरीर काम करता है ठीक उसके उलट बिना गुरुत्वाकर्षण वाले स्पेस में ये अलग हो जाता है. इसमें सिर सबसे बड़ी चिंता का विषय होता है. स्पेस में दिमाग के साथ हेर-फेर हो सकता है.
शोधकर्ताओं ने गुरुवार को कहा कि कम से कम छह महीने तक चलने वाले मिशनों पर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) या नासा के स्पेस शटल पर यात्रा करने वाले अंतरिक्ष यात्रियों ने अपने ब्रेन के सेरिब्रल वेंट्रिकल्स स्पेस में कुछ बदलाव का अनुभव किया. उन्हें अपने ब्रेन के बीच में सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड मिला.
30 एस्ट्रोनॉट की जांच की गई
दरअसल, सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड एक रंगहीन और पानी जैसा फ्लूइड हमारे ब्रेन और रीढ़ की हड्डी में और उसके आसपास बहता है. यह अचानक से होने वाले प्रभावों से बचाने में हमारी मदद करता है. और हमारे दिमाग से वेस्ट प्रोडक्ट्स को हटाता है. इस रिसर्च के लिए 30 एस्ट्रोनॉट के ब्रेन को स्कैन किया गया. जिसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि वेंट्रिकल्स को इस तरह की यात्रा के बाद पूरी तरह से ठीक होने में तीन साल लग गए. उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि लंबे स्पेस मिशनों के बीच कुछ ये 3 साल का गैप होना जरूरी है. ताकि वह ठीक हो सके.
3 साल का गैप होना जरूरी
फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट हीदर मैकग्रेगर इसे लेकर कहते हैं, "अगर वेंट्रिकल्स के पास बैक-टू-बैक मिशनों के बीच ठीक होने के लिए पर्याप्त समय नहीं है, तो यह ब्रेन की माइक्रोग्रैविटी में फ्लूइड की बदलावों से निपटने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है. उदाहरण के लिए, अगर वेंट्रिकल्स पहले से ही पिछले मिशन से बढ़े हुए हैं, तो वे कम प्रभावी हो सकते हैं. जिससे कई तरीके की परेशानी हो सकती है.
माइक्रोग्रैविटी में सिर में जमा हो जाता है फ्लूइड
वहीं, फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के फिजियोलॉजी और किनेसियोलॉजी के प्रोफेसर राचेल सीडलर ने कहा, "वर्तमान में अंतरिक्ष यात्रियों को वेंट्रिकुलर एक्सपैंशन के प्रभाव के बारे में पता ही नहीं है. पृथ्वी पर, हमारे वैस्कुलर सिस्टम में वाल्व होते हैं जो गुरुत्वाकर्षण के कारण हमारे सभी फ्लूइड को हमारे पैरों में जमा होने से रोकते हैं. जबकि माइक्रोग्रैविटी में, इसके विपरीत होता है - ये फ्लूइड सिर की ओर शिफ्ट हो जाते हैं. इस हेडवर्ड फ्लुइड शिफ्ट के परिणामस्वरूप वेंट्रिकुलर एक्सपेंशन होता है.
जबकि छोटे मिशनों के बाद अंतरिक्ष यात्रियों में वेंट्रिकुलर एक्सपेंशन में बहुत कम या कोई परिवर्तन नहीं हुआ. छह महीने या उससे अधिक के मिशन के बाद ही ये एक्सपेंशन अंतरिक्ष यात्रियों के ब्रेन में देखने को मिला. स्टडी में कहा गया, "इससे पता चलता है कि अंतरिक्ष में पहले छह महीनों के दौरान अधिकांश वेंट्रिकल इजाफा होता है, फिर एक साल के आसपास ये बंद होना शुरू हो जाता है.”