Climate Change: अभी से संभल जाना जरूरी ! बर्फबारी के पैटर्न में हो रहा बदलाव, इस गलती के कारण हरा-भरा दिखने लगा आल्प्स पर्वत

जलवायु परिवर्तन (Climate Change)का दुनिया भर में प्रभाव पड़ा है. इसके कारण अब आल्प्स भी हरे-भरे दिखने लगे हैं. स्पेस से अब बर्फ से ढकी चोटियों नजर आना कम हो गया है.

बर्फबारी के पैटर्न में हो रहा बदलाव
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2022,
  • अपडेटेड 4:38 PM IST
  • अब कम नजर आ रही हैं बर्फ से ढकी चोटियां
  • क्लाइमेट चेंज के कारण बर्फबारी के पैटर्न में हुआ बदलाव

भीषण गर्मी का असर केवल आम जीवन में ही नहीं बल्कि पर्यावरण में भी देखने को मिल रहा है. जैसे-जैसे दुनिया में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है वैसे-वैसे कई तरह के जलवायु परिवर्तन देखे जा रहे हैं. यूरोप में आल्प्स माउंटेन रेंज में बड़े पैमाने पर बदलाव देखा जा रहा है. एक समय था जब यहां बर्फबारी हुआ करती थी लेकिन, अब बर्फ की जगह अब यहां हरी-भरी चोटियां नजर आती हैं. 

रिसर्च में पाया गया कि ग्लोबल वार्मिंग का अल्पाइन जोन पर ज्यादा प्रभाव पड़ा है, जैसा कि आर्कटिक में देखा जा रहा है. उन्होंने बताया कि लगभग 80 प्रतिशत आल्प्स में पेड़ की रेखा बढ़ गई है, और बर्फ कम दिखने लगी है. हालांकि, अभी स्थिति बेहद खराब नहीं हुई है लेकिन, लोगों को अब इसे लेकर चिंता करना शुरू कर देना चाहिए. 

बर्फबारी के पैटर्न में हो रहा बदलाव 

साइंस जर्नल में पब्लिश एक रिसर्च में कहा गया है कि पहाड़ों में पहले से ज्यादा गर्माहट का अनुभव किया गया है. कहीं बर्फबारी बढ़ी है तो कहीं इसके पैटर्न में भी बदलाव देखा गया है. उन्होंने रिसर्च की कि पिछले चार दशकों के जलवायु परिवर्तन ने यूरोपीय आल्प्स में बर्फबारी और वनस्पति उत्पादकता (Plant Productivity)को प्रभावित किया है. 

बर्फबारी के पैटर्न में क्यों हो रहा बदलाव 

वहीं, ग्लेशियर के पिघलने के बर्फबारी के पैटर्न में बदलाव हो रहा है. 1984 से 2021 तक हाई रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट डेटा का उपयोग करके बर्फबारी और वनस्पति उत्पादकता को लेकर स्टडी की गई है. इसमें पाया गया कि आल्प्स में परिवर्तन का पैमाना बड़े पैमाने पर निकला है. अल्पाइन पौधे कठोर परिस्थितियों के अनुकूल होते हैं, लेकिन वे बहुत ज्यादा बदलाव के आदि नहीं होते हैं. इसलिए आल्प्स की यूनिक डायवर्सिटी काफी दबाव में है. 1984 के बाद से बर्फ अब कम पड़ने लगी है, जहां पहले पहाड़ों पर लगे पेड़ भी बर्फ से ढके रहते थे अब इसमें भी कमी देखी गई है. 

पोटेंशियल इकोलॉजिकल और जलवायु प्रभावों के साथ दो-तिहाई क्षेत्र में वनस्पति उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है. बर्फ और वनस्पति के बीच प्रतिक्रिया से भविष्य में और भी ज्यादा परिवर्तन होने की संभावना है. 

वैज्ञानिकों को डर है कि जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग जारी रहेगी, आल्प्स अधिक से अधिक सफेद से हरे रंग में बदल जाएंगे. इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियरों का पिघलना भी जारी रहेगा और इसके कारण सीधा असर ज्यादा भूस्खलन, चट्टानें और कीचड़ को प्रवाहित करेगा. 

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