Eco-Friendly Medicines: पर्यावरण को बचाने की पहल! अब ऑयल केमिकल से नहीं बल्कि पेपर वेस्ट से बनाई जा रही हैं दवाइयां

यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बीटा-पिनीन नाम के केमिकल से शुरुआत की, जो तारपीन का ही एक कॉम्पोनेन्ट है. ये चीड़ के पेड़ों से लिया जाता है. शोधकर्ताओं ने इसका इस्तेमाल पेरासिटामोल और इबुप्रोफेन को बनाने के लिए किया.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 12 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 1:56 PM IST
  • पर्यावरण को नहीं होगा कोई नुकसान 
  • चीड़ के पेड़ों से लिया केमिकल 

पेरासिटामोल (Paracetamol) और ब्रूफेन (ibuprofen) दुनिया की सबसे आम ओवर-द-काउंटर पेन किलर दवाएं हैं. लेकिन इन्हें बनाने के लिए कच्चे तेल की जरूरत होती है. अब, बाथ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कागज इंडस्ट्री के वेस्ट प्रोडक्ट्स से दवा बनाने का एक ज्यादा टिकाऊ ईजाद किया है. 

पर्यावरण को नहीं होगा कोई नुकसान 

जब भी हमें सिर दर्द महसूस होता है, तो हममें से कई लोग बिना यह सोचे कि इसका कारण क्या है, सीधा पेरासिटामोल खा लेते हैं. हम में से कम लोग ही जानते हैं कि कई नॉर्मल फार्मास्यूटिकल्स, जैसे पेरासिटामोल/एसिटामिनोफेन (टाइलेनॉल और पैनाडोल) और इबुप्रोफेन (जिसे एडविल या नूरोफेन के रूप में भी जाना जाता है), कच्चे तेल से मिले केमिकल का उपयोग करके बनाई जाती हैं. और जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को कम करने के लिए इसका विकल्प तलाशना बहुत जरूरी है. इन दवाओं का हर साल लगभग 100,000 टन उत्पादन होता है. ऐसे में इतने बड़े लेवल पर खनिजों का उपयोग करने के पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है. 

चीड़ के पेड़ों से लिया केमिकल 

नई स्टडी में, यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने नवीकरणीय स्रोतों से इन दवाओं में जो सामग्री इस्तेमाल होती है वो बनाई. टीम ने बीटा-पिनीन नाम के केमिकल से शुरुआत की, जो तारपीन का ही एक कॉम्पोनेन्ट है. ये चीड़ के पेड़ों से लिया जाता है. शोधकर्ताओं ने इसका इस्तेमाल पेरासिटामोल और इबुप्रोफेन को बनाने के लिए किया. इसमें 4-एचएपी कंपाउंड होता है जो इत्र और सफाई उत्पादों के साथ-साथ बीटा ब्लॉकर्स और अस्थमा की दवा बनाने के लिए किया जाता है.

कच्चे तेल का विकल्प तलाशना जरूरी है 

रिसर्चर्स का कहना है कि इससे बुनियादी दवाओं को पर्यावरण के अनुकूल बनाया जा सकता है. इसे लेकर डॉ जोश तिब्बट्स कहते हैं, "फार्मास्यूटिकल्स बनाने के लिए तेल का उपयोग करना अस्थिर है - यह न केवल बढ़ते CO₂ उत्सर्जन (Emission) में योगदान दे रहा है, बल्कि इसकी कीमत में भी उतार चढ़ाव होते रहते हैं. तेल भंडार कभी न कभी खत्म हो सकता है. ऐसे में इसका विकल्प तलाशना जरूरी है. जमीन से तेल निकालने के बजाय, हम भविष्य में इसे 'बायो-रिफाइनरी' मॉडल से बदलना चाहते हैं.”

 

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