Intelsat 33e and Space Debris: स्पेस में खराब हुई सैटेलाइट कहां जाती है? क्या नीचे गिर जाती है? धरती को इससे कैसे नुकसान पहुंच सकता है?

समस्या यह है कि एक बार जब कोई चीज ऑर्बिट में एंट्री कर जाती है, तो यह तब तक वहीं रहती है जब तक इसे सक्रिय रूप से हटा नहीं दिया जाता या यह प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के वातावरण में फिर से एंट्री नहीं करती और जलकर खत्म नहीं हो जाती है. समय के साथ, स्पेस में मौजूद ये कचरा बढ़ता जा रहा है. 

Space Debris (Representative Image)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 24 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 2:30 PM IST
  • स्पेस डेब्रिस की बढ़ रही समस्या
  • ये चीजें पृथ्वी के चारों और घूमती रहती हैं

स्पेस में हजारों सैटेलाइट्स हैं जो हमारे काम और कनेक्टिविटी को आसान बनाती हैं. लेकिन जरा सोचिए जब ये टूट जाती हैं तब क्या होता है? हाल ही में कुछ ऐसा ही Intelsat 33e नाम की एक कम्युनिकेशन सैटेलाइट के साथ हुआ है. ये अचानक से स्पेस में टूटकर बिखर गई. 2016 में लॉन्च हुई ये सैटेलाइट बोइंग ने डिजाइन की थी. 

इसका उद्देश्य अफ्रीका, एशिया और यूरोप को कम्युनिकेशन सर्विस देना था. लेकिन इसके टूटने के साथ एक और बहस शुरू हो गई है-स्पेस  डेब्रिस या जिसे हम स्पेस में होने वाला कचरा भी कहते हैं. 

स्पेस कचरा या डेब्रिस क्या है?
स्पेस डेब्रिस, जिसे "स्पेस जंक" या "ऑर्बिटल मलबा" भी कहा जाता है, वो होता है जो स्पेस में किसी काम का नहीं होता. ये एक तरह का मशीनी कचरा होता है, जो धरती की ऑर्बिट में रहता है. इस कचरे में इनएक्टिव सैटेलाइट, उपयोग किए गए रॉकेट पार्ट्स, टकराव से हुई टूट फूट, स्पेस मिशन से छोड़े गए अलग-अलग इक्विपमेंट और यहां तक कि छोटे-छोटे पार्टिकल्स जैसे पेंट के टुकड़े भी शामिल होते हैं. 

ये चीजें पृथ्वी के चारों और घूमती रहती हैं. सबसे छोटे मलबे के टुकड़े भी स्पेस में मौजूद सैटेलाइट के लिए खतरा हो सकते हैं. 

समस्या यह है कि एक बार जब कोई चीज ऑर्बिट में एंट्री कर जाती है, तो यह तब तक वहीं रहती है जब तक इसे सक्रिय रूप से हटा नहीं दिया जाता या यह प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के वातावरण में फिर से एंट्री नहीं करती और जलकर खत्म नहीं हो जाती है. समय के साथ, स्पेस में मौजूद ये कचरा बढ़ता जा रहा है. 

स्पेस डेब्रिस की बढ़ती समस्या
वर्तमान में, पृथ्वी की ऑर्बिट में इंसानो द्वारा बनाई गई चीजों का कुल वजन लगभग 13,000 टन है, जो लगभग 90 बड़ी नीली व्हेल के वजन के बराबर है. हर साल, सैकड़ों हजारों नई चीजें इस कचरे को और बढ़ा रही हैं, चाहे वह लॉन्च की वजह से हो, या टूट फूट से. 

जो डर अंतरिक्ष इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को परेशान करता है वह उसे "केसलर सिंड्रोम" कहा जाता है, जिसका नाम नासा के वैज्ञानिक डोनाल्ड जे. केसलर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1978 में ये थ्योरी दी थी. केसलर ने सुझाव दिया कि अगर लॉ अर्थ ऑर्बिट (LEO) में चीजें ज्यादा हो जाएंगी, तो इनके बीच टकराव होने की संभावना तेजी से बढ़ जाएगी. 

जब भी ये टकराएंगी तब उससे कचरा पैदा होगा, टकराव का सिलसिला चलता रहेगा और और उतना ही मलबा इकट्ठा होता रहेगा. इससे अगर चलकर काफी परेशानी हो सकती है.

स्पेस कचरा भविष्य की सैटेलाइट को कैसे नुकसान पहुंचा सकता है?
स्पेस डेब्रिस मौजूदा सैटेलाइट्स और भविष्य के स्पेस मिशनों के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर सकता है. यहां तक कि छोटे-छोटे मलबे के टुकड़े, जैसे पेंट के टुकड़े या छोटे मेटल्स के टुकड़े, दूसरे स्पेस क्राफ्ट्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

-स्पेस डेब्रिस का सबसे बड़ा खतरा टकराव का जोखिम है. किसी भी सैटेलाइट को डिजाइन करने और लॉन्च करने में बहुत खर्च आता है. मलबे के साथ एक ही टकराव से पूरी सैटेलाइट खराब हो सकती है. 

-इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) ऑर्बिट में सबसे ज्यादा हाई-प्रोफाइल चीजों में से एक है. स्पेस में मौजूद कचरे से बचने के लिए अलग-अलग उपाय अपनाए जाते हैं. लेकिन आगे चलकर इससे अंतरिक्ष यात्रियों को काफी खतरा हो सकता है. 

स्पेस डेब्रिस कहां जाता है?
स्पेस डेब्रिस ऑर्बिट में तब तक रहता है जब तक कि दो चीजों में से एक नहीं हो जाती: ये या तो पृथ्वी के वातावरण में फिर से प्रवेश करता है और जलकर नष्ट हो जाता है, या इसे खुद हटाया जाता है. हायर ऑर्बिट में सैटेलाइट का मलबा सदियों तक स्पेस में रह सकता है, जब तक कि इसे सक्रिय रूप से नहीं हटाया जाता. एक बार जब कोई चीज इस ऊंचाई पर पहुंच जाती हैं, तो किसी विशेष रूप से डिजाइन की गई तकनीक के बिना ऑर्बिट से बाहर लाना लगभग असंभव हो जाता है.


 

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