ऐतिहासिक धरोहरों को सुरक्षित रखने और उनसे जुड़े रहस्यों का पता लगाने के लिए अलग-अलग कदम उठाए जा रहे हैं. अब इसी कड़ी में इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन) और आईसीएचआर (इंडियन कॉउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च) ने हाथ मिलाया है. इनका मकसद ऐतिहासिक धरोहरों की मॉनिटरिंग करना है. इसके तहत अलग-अलग चीजों का उपयोग करके विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत के योगदान के इतिहास का पता लगाना है. इसरो ने इसे लेकर कहा है कि प्रोजेक्ट में स्पेस-बेस्ड इमेजिंग और विरासत स्थलों की सैटेलाइट मॉनिटरिंग जैसे वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग किया जाएगा. इसके अलावा, गुमनाम सभ्यताओं का भी पता लगाया जाएगा.
इतिहास और विज्ञान का लगाया जाएगा पता
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा, "भारतीय विज्ञान और टेक्नोलॉजी का इतिहास" नाम से एक स्टडी करने के लिए इसरो और आईसीएचआर के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) साइन हुआ है. इस स्टडी में प्राचीन धर्मग्रंथों का उपयोग नहीं किया जा रहा है, बल्कि विरासत स्थलों और पुरापाषाण चैनलों और दूसरे सभी तरह के साक्ष्यों से स्पेस-बेस्ड इमेजिंग का उपयोग किया जा रहा है. काम अभी शुरू नहीं हुआ है.”
इसरो और आईसीएचआर मिलकर करेंगे काम
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इसरो वैज्ञानिकों ने कहा कि पूरे भारत में ऐतिहासिक महत्व के स्थलों की पहचान की जाएगी, फिर सैटेलाइट इमेजिंग और दूसरी स्पेस-बेस्ड मॉनिटरिंग सिस्टम का उपयोग करके स्टडी की जाएगी. इसरो की टेक्नोलॉजी वाली इमेज का इस्तेमाल आईसीएचआर एक्सपर्ट महत्वपूर्ण सभ्यताओं का पता लगाने के लिए करेंगे.
खोजी जाएंगी सभ्यताएं
रिपोर्ट के मुताबिक एक इसरो अधिकारी ने कहा, “उदाहरण के लिए, नदियां अपना रास्ता बदलने के लिए जानी जाती हैं. हमारी सैटेलाइट टेक्नोलॉजी उन रास्तों को ट्रैक कर सकती है जिन पर हमारी नदियां कई साल पहले चली थीं, और फिर इन रास्तों के आसपास की सभ्यताओं का पता लगा सकती हैं. यह सिर्फ एक पहलू है, ऐसे कई क्षेत्र होंगे जहां ऐसा हुआ होगा, इन्हीं का पता लगाया जाएगा.”
पुरातत्वविद् और आईसीएचआर के सदस्य वसंत शिंदे ने कहा कि परिषद भारत की सांस्कृतिक संपदा की खोज, दस्तावेजीकरण और पुनर्निर्माण और युगों से भारत के हुए वैज्ञानिक विकास का पता लगाएगी. ये इसरो के साथ सहयोग करके किया जाएगा. उन्होंने कहा, “ऐसे हजारों पुरातात्विक स्थल और स्मारक हैं जिनकी सीमित पहुंच के कारण अभी तक ठीक से खोजा नहीं जा सका है, और उन्हें भौतिक रूप से खोजना संभव नहीं है. ऐसी साइटों की खोज में इसरो की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा सकता है.”