ISRO ने फिर बजाया दुनिया में भारत का डंका, रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल RLV LEX का सफल परीक्षण, जानें इससे कैसे बदलेगा स्पेस सेक्टर

RLV LEX at ATR Chitradurga: रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV LEX) को भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिए  4.5 किमी की ऊंचाई पर ले जाकर सफल परीक्षण किया गया. इससे रीयूजेबल टू स्टेज ऑर्बिटल लांच व्हीकल प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.

Successful test of reusable launch vehicle RLV LEX
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 03 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 4:33 PM IST
  • रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के सहारे हम रॉकेट को कर सकते हैं दोबारा लॉन्च 
  • RLV LEX यान के जरिए डायरेक्ट एनर्जी वेपन को चलाए जा सकेगा 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बार फिर दुनिया में भारत का डंका बजाया है. उसने रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल ऑटोनॉमस लैंडिंग मिशन (RLV LEX) का सफल परीक्षण किया है. इसे रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. इसरो और उसके सहयोगियों ने एरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (एटीआर), चित्रदुर्ग, कर्नाटक में इस टेस्ट को सफलता पूर्वक पूरा किया. 

4.6 किलोमीटर की रेंज पर छोड़ा गया
RLV LEX को भारतीय वायुसेना के चिनुक हेलीकॉप्टर ले लाया गया. इसे 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाया गया और 4.6 किलोमीटर की रेंज पर छोड़ा गया. इसके छोड़ने के बाद रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल धीमी गति से उड़ान भरा. इसके कुछ देर बाद वह लैंडिंग गियर के साथ खुद ही एटीआर में लैंड किया. इस मिशन को डीआरडीओ और इंडियन एयर फोर्स की मदद से पूरा किया गया. रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के सहारे हम रॉकेट को दोबारा लॉन्च कर सकते हैं. इसरो ने अपने पहले RLV-TD HEX-01 मिशन की शुरुआत 2016 में की थी. RLV LEX की शुरुआत 2019 में हुई थी.

आरएलवी-टीडी प्रोजेक्ट क्या है 
आरएलवी-टीडी व्हीकल प्रोजेक्ट टेस्टिंग की एक सीरीज है, जो स्पेस में कम लागत वाली पहुंच को सक्षम बनाने के लिए जरूरी है. यह प्रोजेक्ट रीयूजेबल लॉन्च के लिए आवश्यक टेक्नोलॉजी के विकास का एक महत्वपूर्ण भाग है. इसरो का RLV-TD एक एयरक्राफ्ट की तरह दिखता है, इसमें एक फ्यूजलेज, एक नोज कैप, डबल डेल्टा विंग्स और ट्विन वर्टिकल टेल्स होते हैं.

क्या है खासियत
RLV LEX यान के जरिए डायरेक्ट एनर्जी वेपन चलाए जा सकेंगे. यह यान अंतरिक्ष से यह काम कर पाएगा यानी दुश्मनों के लिए यह यह एक आफत की भूमिका में होगा. इसकी सफलता से युद्ध के तरीके में बदलाव आएगा. ऐसी संभावना जताई जा रही है. इसरो ने 2030 तक आरएलवी प्रोजेक्ट को सफल बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इस प्रोजेक्ट की मदद से भारत के रीयूजेबल टू स्टेज ऑर्बिटल (TSTO) लांच व्हीकल प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी.

स्पेसएक्स से है अलग
इसरो का रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) स्पेसएक्स से बिल्कुल अलग है. मिशन के दौरान स्पेसएक्स रॉकेट के निचले हिस्से को बचाता है, जबकि इसरो रॉकेट के ऊपरी हिस्से को बचाएगा जो ज्यादा जटिल होता है. इसे रिकवर करने से ज्यादा पैसों की बचत होगी. ये सैटेलाइट को स्पेस में छोड़ने के बाद वापस लौट आएगा. इसरो का स्पेसक्रॉफ्ट ऑटोनॉमस लैंडिंग कर सकता है. इसरो ने मई 2016 में हेक्स मिशन के तहत विंग आरएलवी-टीडी व्हीकल के री-एंट्री की टेस्टिंग की थी. हाइपरसोनिक सब-ऑर्बिटल व्हीकल की इस टेस्टिंग को एक मेजर बूस्ट के रूप में देखा गया था.  

  

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