भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अब तक कई कीर्तिमान बनाए हैं. अब बुधवार को एक और उपलब्धि इसरो के नाम जुड़ने जा रही है. इसरो 4 दिसंबर 2024 की शाम 4:08 बजे यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) का प्रोबा-3 मिशन (Proba-3 Mission) लॉन्च करने जा रहा है.
इसकी जानकारी ISRO ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर दी है. लॉन्चिंग आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से PSLV-XL रॉकेट से की जाएगी. आप यूट्यूब पर इस लॉन्च को लाइव देख सकते हैं. यूट्यूब का लिंक - https://www.youtube.com/live/PJXXLLW0PBI है. इसरो की साइट पर भी लाइव लिंक खुली रहेगी.
क्या है PROBA-3 मिशन
यूरोप के कई देशों का एक पार्टनरशिप प्रोजेक्ट PROBA-3 मिशन है. इन देशों के समूह में स्पेन, पोलैंड, बेल्जियम, इटली और स्विट्जरलैंड शामिल हैं. इस मिशन की कुल अनुमानित लागत लगभग 200 मिलियन यूरो है. प्रोबा-3 मिशन दो सालों तक चलेगा. इस मिशन की खास बात है कि इसके जरिए पहली बार अंतरिक्ष में ‘प्रिसिजन फॉर्मेशन फ्लाइंग’ को टेस्ट किया जाएगा. इसके तहत एक साथ दो सैटेलाइट उड़ेंगे. ये सैटेलाइट लगातार एक ही फिक्स कॉन्फिगरेशन को मेंटेन करेंगे.
Proba-1 को ISRO ने 2001 में किया था लॉन्च
Proba-3 यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का एक इन-ऑर्बिट प्रदर्शन मिशन है. Proba-3 यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की Proba शृंखला में सबसे नया सौर मिशन है. इस शृंखला का पहला मिशन Proba-1 को ISRO ने 2001 में लॉन्च किया था. उसके बाद 2009 में Proba-2 लॉन्च किया था. Proba-3 मिशन में इसरो PSLV-C59 रॉकेट की मदद ले रहा है.
इसमें C59 असल में रॉकेट लॉन्च का कोड है. यह PSLV रॉकेट की 61वीं उड़ान और PSLV-XL कॉन्फ़िगरेशन का उपयोग करते हुए 26वीं उड़ान होगी. यह रॉकेट 145.99 फीट ऊंचा है. लॉन्च के समय इसका वजन 320 टन होगा. यह चार स्टेज का रॉकेट है. यह रॉकेट करीब 26 मिनट में प्रोबा-3 सैटेलाइट को 600 X 60,530 km वाली अंडाकार ऑर्बिट में डालेगा. इस मिशन में ISRO की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) सहयोग कर रही है.
जानिए प्रोबा-3 सैटेलाइट के बारे में
PROBA-3 दुनिया का पहला प्रेसिशन फॉर्मेशन फ्लाइंग सैटेलाइट है. यानी यहां एक नहीं दो सैटेलाइट लॉन्च होंगे. पहला है कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट (Coronagraph Spacecraft) और दूसरा ऑक्लटर स्पेसक्राफ्ट (Occulter Spacecraft) है. इन दोनों का वजन 550 किलोग्राम है. लॉन्चिंग के बाद दोनों सैटेलाइट अलग हो जाएंगे. बाद में सोलर कोरोनाग्राफ बनाने के लिए इन्हें एक साथ पोजिशन किया जाएगा. यह सूर्य के कोरोना का डिटेल स्टडी करेंगे. आपको बता दें सूर्य के बाहरी एटमॉस्फियर को सूर्य का कोरोना कहते हैं.
कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट
1. 310 किलोग्राम वजनी यह सैटेलाइट सूरज की तरफ मुंह करके खड़ा होगा.
2. यह लेजर और विजुअल बेस्ड टारगेट डिसाइड करेगा.
3. इसमें ASPIICS यानी एसोसिएशन ऑफ स्पेसक्राफ्ट फॉर पोलैरीमेट्रिक और इमेंजिंग इन्वेस्टिंगेशन ऑफ कोरोना ऑफ द सन लगा है.
4. इसके अलावा 3DEES यानी 3डी इनरजेटिक इलेक्ट्रॉन स्पेक्ट्रोमीटर है. यह सूरज के बाहरी और अंदरूनी कोरोना के बीच के गैप की स्टडी करेगा.
5. यह सूरज के सामने खड़ा होगा. जैसे ग्रहण में चंद्रमा सूरज के सामने आता है.
ऑक्लटर स्पेसक्राफ्ट
1. 240 किलोग्राम वजन वाला यह स्पेसक्राफ्ट कोरोनाग्राफ के पीछे रहेगा. जैसे ग्रहण में सूरज के सामने चंद्रमा और उसके पीछे धरती रहती है.
2. इसमें लगा DARA यानी डिजिटल एब्सोल्यूट रेडियोमीटर साइंस एक्सपेरीमेंट इंस्ट्रूमेंट कोरोना से मिलने वाले डेटा की स्टडी करेगा.
सूर्य के कोरोना की करेंगे डिटेल स्टडी
कोरोनाग्राफ और ऑक्लटर स्पेसक्राफ्ट एकसाथ एक लाइन में धरती का चक्कर लगाते हुए सूरज के कोरोना की स्टडी करेंगे. सूरज के ऊपर दिख रहे काले घेरे की की स्टडी प्रोबा-03 मिशन करेगा. असल में यहां पर दो तरह के कोरोना होते हैं. जिनकी स्टडी कई सैटेलाइट्स कर रहे हैं. हाई कोरोना और लो कोरोना लेकिन इनके बीच के गैप की स्टडी यानी काले हिस्से की स्टडी प्रोबा-03 करेगा.
प्रोबा-03 में लगा ASPIICS इंस्ट्रूमेंट की वजह से ट्रस काले गैप की स्टडी आसान हो जाएगी. यह सोलर हवाओं और कोरोनल मास इजेक्शन की स्टडी भी करेगा. इस सैटेलाइट की वजह से वैज्ञानिक अंतरिक्ष के मौसम और सौर हवाओं की स्टडी कर सकेंगे ताकि यह पता चल सके की सूरज का डायनेमिक्स क्या है. इसका हमारी धरती पर क्या असर होता है.