Kulasekarapattinam Launchport: आखिर क्यों देश को पड़ी दूसरे लॉन्चपोर्ट की जरूरत, कैसे कमर्शियल और छोटी सैटेलाइट लॉन्चिंग में मिलेगी मदद? जानें

पिछले कुछ समय से भारत के कमर्शियल स्पेस वेंचर में लगातार विकास हो रहा है. सरकार ने स्पेस इंडस्ट्री को प्राइवेट प्लेयर्स के लिए खोल दिया है. ऐसे में लगातार प्राइवेट सैटेलाइट लॉन्चिंग में वृद्धि हुई है. इसी को देखते हुए दूसरे लॉन्चपोर्ट की जरूरत पड़ी.

ISRO
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 07 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 2:22 PM IST
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में हो रहा है विकास 
  • छोटी सैटेलाइट लॉन्चिंग में मदद 

भारत अपनी स्पेस इंडस्ट्री को बेहतर बनाने के लिए आए दिन नए-नए प्रयास कर रहा है. इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 28 फरवरी को कुलसेकरपट्टिनम लॉन्चपोर्ट (Kulasekarapattinam Launchport) की आधारशिला रखी. इस तरह स्पेस इंडस्ट्री में भारत एक और कदम आगे बढ़ गया. यह देश का दूसरा लॉन्चपोर्ट है. तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले में इसे लॉन्च किया गया है. 986 करोड़ रुपये के निवेश के साथ, कुलसेकरपट्टिनम लॉन्चपोर्ट मुख्य रूप से भविष्य में कमर्शियल, ऑन-डिमांड और छोटी सैटेलाइट लॉन्चिंग में मदद करेगा. 

अंतरिक्ष क्षेत्र में हो रहा है विकास 

दरअसल, पिछले कुछ समय से भारत के कमर्शियल स्पेस वेंचर में लगातार विकास हो रहा है. सरकार ने स्पेस इंडस्ट्री को प्राइवेट प्लेयर्स के लिए खोल दिया है. ऐसे में लगातार प्राइवेट सैटेलाइट लॉन्चिंग में वृद्धि हुई है. इसरो के पहले लॉन्चपोर्ट, श्रीहरिकोटा में मौजूदा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) SHAR पर बोझ को कम करने के लिए, एक नई सुविधा की जरूरत नजर आ रही है. बस इसी को देखते हुए ये नया लॉन्चपोर्ट बनाया गया. हालांकि, अभी भी SHAR बड़े मिशनों को देखरेख करेगा, वहीं कुलसेकरपट्टिनम छोटे पेलोड और ऑन-डिमांड कमर्शियल लॉन्च पर ध्यान केंद्रित करेगा. 

छोटी सैटेलाइट लॉन्चिंग में मदद 

तमिलनाडु तट पर रणनीतिक रूप से स्थित, कुलसेकरपट्टिनम भविष्य के लॉन्च के लिए काफी फायदेमंद है. भौगोलिक रूप से भी ये लॉन्चिंग में काफी मदद करने वाला है. इसका स्थान सीधे दक्षिण की ओर लॉन्च की अनुमति देता है, जिससे छोटे पेलोड ले जाने वाले SSLV (Small Satellite Launch Vehicle) के लिए फ्यूल एफिशिएंसी ठीक रहती है. जबकि SHAR से लॉन्च करने पर उसे श्रीलंका के चारों ओर से घूमकर निकलना पड़ता है. सैटेलाइट जब कुलसेकरपट्टिनम से लॉन्च  होती है तो ये आसानी से हो जाती है, इससे फ्यूल की बचत होती है.

क्या है एसएसएलवी?

जैसा कि नाम से पता चलता है SSLV छोटी सैटेलाइट की लॉन्चिंग को पूरा करने के लिए बनाए गए हैं. इसमें तीन चरणों वाला लॉन्च व्हीकल है, जिसका वजन करीब 120 टन है और इसकी लंबाई 34 मीटर और डायमीटर 2 मीटर है. एसएसएलवी मिशन 10 से 500 किलोग्राम वजन वाले छोटे आकार के सैटेलाइट को धरती की निचली ऑर्बिट में लॉन्च करने के लिए बनाया गया है. इनके आकार और वजन के हिसाब से ही इन्हें आमतौर पर मिनी, माइक्र या नैनो सैटेलाइट कहा जाता है. इनकी लागत भी कम होती है और इनका फ्लाइट टाइम भी कम होता है. 

इसरो संभालेगा बागडोर 

तमिलनाडु सरकार ने इसके लिए 2,000 एकड़ से ज्यादा भूमि दी है. ऐसे में अब लॉन्चपोर्ट के विकास की बागडोर इसरो के पास है. जबकि इसको बनने में दो साल तक का समय लगने की उम्मीद है. इसकी लॉन्चिंग पूरी होते है भारत की स्पेस इंडस्ट्री में एक नए युग की शुरुआत होगी. एक बार चालू होने के बाद, कुलसेकरपट्टिनम सालाना 20 से 30 SSLV लॉन्च की मेजबानी कर सकता है. जिससे वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भारत की उपस्थिति और बढ़ जाएगी. 


 

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