कल्पना कीजिए कि आप आंखों के चेकअप के लिए गए ऑप्टोमेट्रिस्ट पास गए हैं, लेकिन इस जांच से आपको यह पता चल जाए कि आपके दिमाग की सेहत कैसी है? दरअसल, स्कॉटलैंड में इसी से जुड़ी एक स्टडी हुई है, जिसमें पता चला है कि Eye टेस्टिंग, भविष्य में डिमेंशिया जैसी गंभीर बीमारियों का शुरुआती चरण में पता लगाने में एक बड़ी भूमिका निभा सकती है.
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी और ग्लासगो कैलिडोनियन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से ऐसा कर दिखाया है. आंखों की जांच के माध्यम से डिमेंशिया के शुरुआती संकेत पहचानने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया जा सकता है. इस तकनीक का उद्देश्य आंख के रेटिना में दिखने वाली ब्लड वेसेल्स और नर्वस सिस्टम के पैटर्न को समझना है. अगर इसे एक बार समझ लिया जाए तो आसानी से न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों का पता लगाया जा सकता है.
ब्रेन हेल्थ का आसानी से लग सकता है पता
न्यू यॉर्क पोस्ट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट को प्रोफेसर बलजीत ढिल्लों लीड कर रहे हैं. वे कहते हैं, “आंखें हमें दिमाग की सेहत के बारे में बहुत कुछ बता सकती हैं, जिसकी हमने पहले कल्पना भी नहीं की थी. बता दें, ब्रेन का अध्ययन करने के लिए महंगे डिवाइस जरूरत होती है. लेकिन रेटिना की जांच में इस्तेमाल होने वाले आसान से टूल से ब्रेन हेल्थ का पता लगाया जा सकता है.
स्कॉटलैंड की ये स्टडी क्यों जरूरी है?
NeurEye नामक इस रिसर्च टीम ने स्कॉटलैंड में Eye डॉक्टर्स से एक करोड़ आंखों की जांच की रिपोर्ट इकट्ठी की है. ये दुनिया का सबसे बड़ा डेटा सेट है. इस डेटा का उपयोग करके शोधकर्ता AI तकनीक के माध्यम से रेटिना में होने वाले छोटे-छोटे बदलावों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
इस स्टडी का उद्देश्य ऐसा टूल बनाना है जिसे Eye डॉक्टर्स अपनी नियमित जांच में शामिल कर सकें. इससे डिमेंशिया का समय पर पता लगाकर रोगियों को बेहतर ट्रीटमेंट और देखभाल दी जा सकती है.
डिमेंशिया के लिए शुरुआती पहचान क्यों जरूरी है?
डिमेंशिया एक तेजी से बढ़ती वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है. जैसे-जैसे वैश्विक आबादी बूढ़ी हो रही है, आने वाले दशकों में इस बीमारी के आंकड़ें बढ़ सकते हैं. ऐसे में परिवारों को इलाज और देखभाल के लिए बेहतर तरीके से तैयार होने का मौका मिलना जरूरी है. अगर शुरुआती चरण में ही डेमेंशिया का पता चल जाए तो इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है.
आंखों और दिमाग के बीच का संबंध
आंखों और दिमाग के स्वास्थ्य का संबंध रेटिना से है. रेटिना का अध्ययन आसान और सस्ते डिवाइस या टूल से किया जा सकता है, जो लगभग हर जगह उपलब्ध होते हैं. प्रोफेसर ढिल्लों कहते हैं, “ब्रेन के चेकअप में जहां महंगे टूल की जरूरत होती है, वहीं रेटिना का चेकअप आसान से और सस्ते टूल से किया जा सकता है.”
आप क्या कर सकते हैं?
American Optometric Association का सुझाव है कि 18 से 64 साल की उम्र के वयस्कों को हर दो साल में एक Eye टेस्ट करवाना चाहिए. 65 साल से ज्यादा उम्र वालों के लिए हर साल Eye टेस्टिंग जरूरी है. ये टेस्टिंग न केवल आपकी आंखों की रोशनी को बचाएंगे बल्कि जल्द ही डिमेंशिया जैसी दिमाग से जुड़ी बीमारियों का पता लगाने के लिए भी एक टूल बन सकते हैं.