AI बनाने को लेकर था अफसोस... अब उसी के लिए मिल गया Geoffrey Hinton को Nobel Prize... जानें आखिर कैसे दुनिया में आया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क्स पर बड़े योगदान के लिए जेफ्री हिंटन और जॉन हॉपफील्ड को फिजिक्स में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया है. यह पहली बार है जब AI से जुड़े काम के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है.

Geoffrey Hinton (Photo/Getty Images)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 09 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 1:17 PM IST
  • पहली बार AI के फील्ड में मिला है नोबेल
  • AI का है छिपा हुआ चेहरा 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने आधुनिक दुनिया को उस रूप में बदल दिया है जिसकी भविष्यवाणी कुछ ही लोगों ने की थी. अब इसी को देखते हुए 2024 में जेफ्री हिंटन (Geoffrey Hinton) और जॉन हॉपफील्ड (John Hopfield) को उनके आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क्स (artificial neural networks) पर किए गए काम के लिए फिजिक्स में नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया है. इतिहास में ऐसा पहली बार है जब AI के क्षेत्र में इतना बड़ा प्राइज दिया गया है. AI, जो कभी केवल साइंस फिक्शन का हिस्सा था, अब वैज्ञानिक जगत पर छा गया है. 

कैसे दुनिया में आ गया AI? 
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कॉन्सेप्ट सदियों पुराना है. अरस्तु जैसे दार्शनिकों ने मैकेनाइज्ड रीजनिंग पर विचार किया, लेकिन 20वीं सदी तक AI ने ठोस रूप नहीं लिया था. 1900 के दशक के बीच में कंप्यूटरों के आने से वैज्ञानिकों और गणितज्ञों ने यह जांचना शुरू किया कि क्या मशीनें इंसानों की तरह सोच सकती हैं.

सबसे पहले ब्रिटिश गणितज्ञ एलन ट्यूरिंग (Alan Turing) ने इसे लेकर बातचीत शुरू की. उन्होंने 1950 में अपने पेपर Computing Machinery and Intelligence में लेकर एक सवाल पूछा कि ”क्या मशीनें सोच सकती हैं?”. उन्होंने ट्यूरिंग टेस्ट का प्रस्ताव रखा, जो एक मशीन की बुद्धिमानी को परखने का एक तरीका था, कि मशीन इंसानों की तरह व्यवहार करती है या नहीं.

ट्यूरिंग थ्योरी के बाद जॉन मैक्कार्थी, मार्विन मिंस्की और हरबर्ट साइमन जैसे AI वैज्ञानिकों ने पहले AI प्रोग्राम बनाए और मशीन लर्निंग, पैटर्न रिकॉग्निशन, और ऑटोमेटेड रीजनिंग की अवधारणा शुरू की. 1956 में, जॉन मैक्कार्थी ने डार्टमाउथ सुमित में “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस” शब्द गढ़ा, जिससे इस क्षेत्र की औपचारिक शुरुआत हुई.

न्यूरल नेटवर्क्स कैसे आया?
ब्रेन स्ट्रक्चर की नकल करके बुद्धिमान मशीनें बनाने का विचार 20वीं सदी के मध्य में है. पहला आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क, “पर्सेप्ट्रॉन”, 1958 में फ्रैंक रोसेनब्लाट (Frank Rosenblatt) ने बनाया था. यह बायोलॉजिकल न्यूरॉन्स से प्रेरित था और ट्रायल और एरर के माध्यम से सीखने में सक्षम था. हालांकि, पर्सेप्ट्रॉन्स की कुछ सीमाएं थीं. मुश्किल सवालों को हल करने में ये असफल रहा. इसके बाद का कुछ समय “AI विंटर” के रूप में जाना जाता है, जब AI को लेकर लोगों को इंटरेस्ट कम हुआ.

यहीं पर जॉन हॉपफील्ड और जेफ्री हिंटन जैसे वैज्ञानिकों ने कदम रखा. उन्होंने न्यूरल नेटवर्क्स में फिर से रुचि जगाई और उन खोजों की नींव रखी जो आने वाले दशकों में सामने आईं.

जॉन हॉपफील्ड और न्यूरल नेटवर्क्स
अब 91 साल के जॉन हॉपफील्ड मॉडर्न न्यूरल नेटवर्क्स की नींव रखने वालों में से एक थे. 1982 में, जॉन हॉपफील्ड ने एक पेपर पब्लिश किया जिसमें “रिकरंट न्यूरल नेटवर्क” (बाद में जिसे हॉपफील्ड नेटवर्क के नाम से जाना गया) के बारे में बताया. ये पैटर्न्स को स्टोर और रिकॉल कर सकता था और अधूरे या शोर वाले इनपुट्स को सुधार सकता था. यह काफी क्रांतिकारी था क्योंकि इसने न्यूरल नेटवर्क्स को एक बायोलॉजिकल सिस्टम दिया, जो केवल इंसानों के पास था. हॉपफील्ड को 2022 में बोल्ट्जमैन मेडल से सम्मानित किया गया था.

जेफ्री हिंटन और डीप लर्निंग का उदय
जहां हॉपफील्ड ने नींव रखी, वहीं जेफ्री हिंटन ने न्यूरल नेटवर्क्स को अगले लेवल तक पहुंचाया. जेफ्री हिंटन, जिन्हें AI के "गॉडफादर" में से एक माना जाता है, ने मॉडर्न AI को संभव बनाने का काम किया. 1986 में, जेफ्री हिंटन, डेविड रुमेलहार्ट और रोनाल्ड विलियम्स के साथ मिलकर “बैकप्रोपेगेशन” या ग्रेडिएंट डिसेंट की अवधारणा पेश की.  ये एक ऐसा तरीका था जो न्यूरल नेटवर्क्स को डेटा से सीखने में सक्षम बनाता था. यह AI में एक बड़ा मोड़ था, क्योंकि इसने डीप लर्निंग के  कॉन्सेप्ट को बदलकर रख दिया. इसी की बदौलत फेशियल रिकग्निशन सिस्टम्स से लेकर ऑटोमेटिक वव्हीकल तक सब कुछ को पावर मिलती है. 

AI का छिपा हुआ चेहरा 
हालांकि, इसकी एक और छिपी हुई साइड है. अपनी उपलब्धियों के बावजूद, जेफ्री हिंटन ने अपनी बनाई तकनीक के संभावित दुरुपयोग को लेकर गहरी चिंता जताई है. 2023 में गूगल छोड़ने के बाद, जेफ्री ने AI द्वारा पैदा हुए खतरों के बारे में सार्वजनिक रूप से चेतावनी दी थी, साथ ही कहा था कि उन्हें अपन किए गए काम पर पछतावा है. उन्हें डर है कि AI से बड़ी परेशानियां खड़ी हो सकती हैं. इसके अलावा, उन्होंने ये भी चिंता जताई कि AI इंसानों कंट्रोल के बाहर हो सकता है, इसे इंसानियत को खतरा पैदा हो सकता है. 

बता दें, अब 2024 में, रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क्स पर उनके बड़े योगदान के लिए जेफ्री हिंटन और जॉन हॉपफील्ड को फिजिकल में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यह पहली बार था जब AI से जुड़े काम के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है.


 

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