Rohini Satellite RS-1: सालों की मेहनत… कई रातों की नींद और कुछ हासिल करने की चाह… आज ही के दिन 44 साल पहले हुआ था रोहिणी-1 का सफल परीक्षण

इस सैटेलाइट को लॉन्च करके भारत दुनिया के विकसित देशों से आगे निकल गया था. रॉकेट लॉन्च करने वाला भारत दुनिया का सातवां देश बना था. यह एक हल्के वजन वाली एल्यूमिनियम एलोए से बनी सैटेलाइट थी. इसका वजन भी कुल 35 किलोग्राम था.

Rohini Satellite RS-1 (Photo/ISRO)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 4:10 PM IST

आजादी के बाद भारत की शुरुआत एक नए सिरे से हुई थी... यह वह दौर था जब भारत खुद दुनिया से कदम से कदम मिलाकर चलने के सपने देख रहा था. 1947 के बाद भारत के हिस्से कई सफलताएं आईं. भारत खुद को साबित करने की दौड़ में डटा रहा. 18 जुलाई 1980 का दिन भारतीय इतिहास के पन्नों पर सुनहरे शब्दों से लिखा गया है. एक ओर जहां कई विकसित देश नाकाम हो गए तो वहीं भारत ने 18 जुलाई 1980 में अपनी कामयाबी का परचम लहराया. इस दिन भारत ने SLV रॉकेट से रोहिणी-1(RS-1) सैटेलाइट का सफल परीक्षण किया था. ऐसा करने वाला भारत दुनिया का सातवां रॉकेट देश बन गया था. 

1980 की गई थी सैटेलाइट लॉन्च?
रोहिणी-1 (RS-1) को 18 जुलाई 1980 में SLV-3 की मदद से लॉन्च किया गया था. ये एक एक्सपेरिमेंटल सैटेलाइट थी जो भविष्य में किए जाने वाले स्पेस मिशन की कामयाबी के लिए बनाई गई थी. इस सैटेलाइट को लॉन्च करके भारत दुनिया के विकसित देशों से आगे निकल गया था. रॉकेट लॉन्च करने वाला भारत दुनिया का सातवां देश बना था. यह एक हल्के वजन वाली एल्यूमिनियम एलोए से बनी सैटेलाइट थी. 

इसका वजन भी कुल 35 किलोग्राम था. लगातार चक्कर लगाते रहने के लिए और ऑर्बिट में स्थिर रहने के लिए सैटेलाइट में स्पीच स्टेबलाइजर का उपयोग किया गया था. ऑर्बिट के अंदर सैटेलाइट 9 महीने तक रह सकती थी. इतना ही नहीं बल्कि सैटेलाइट के अंदर 16 वाट तक की बिजली पैदा करने के लिए सोलर पैनल का इस्तेमाल किया गया था. लॉन्चिंग के समय सैटेलाइट के साथ धरती की मैग्नेटिक फील्ड को मापने के लिए मैगनेटोमीटर, सूरज की जगह की पता लगाने के लिए डिजिटल सेंसर और सेटेलाइट का अंदरूनी तापमान मापने के लिए टेंप्रेचर सेंसर रखे गए थे.

कैसे हुई रोहिणी-1 की लॉन्चिंग?
रोहिणी-1 को 18 जुलाई 1980 को सुबह 8 बजकर 4 मिनट पर सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था. सेंटर और भारत दोनों का ही यह पहला ओरबिटल सफल परीक्षण था. रोमांचक बात यह थी कि लॉन्च होने के 8 मिनट बाद ही सैटेलाइट ने 44.7° के झुकाव के साथ 305 किमी × 919 किमी (190 मीटर× 571 मीटर) का ऑर्बिट पूरा कर लिया था. हालांकि, ये तीसरी सैटेलाइट टेस्टिंग थी. ये तीसरी और आखिरी कोशिश थी क्योंकि इससे पहले भी 2 SLV टेस्ट फेल हो चुके थे. 

पहला एक्सपेरिमेंटल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल
सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल(SLV-3) भारत का पहला एक्सपेरिमेंटल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल था. चार चरणों वाले वाहन का वजन 17 टन और ऊंचाई 20 मीटर थी. ये व्हीकल 40 किलोग्राम तक के पेलोड को लो अर्थ ऑर्बिट में आसानी से रख सकता था.

रोहिणी-1 के सफल टेस्टिंग के बाद ISRO ने कई सफल सैटेलाइट टेस्टिंग की. इसमें1983 की INSAT-1, 1988 की IRS, 1993 की PSLV, 2001 की GSAT, 2013 की मंगलयान सैटेलाइट शामिल हैं.

रोहिणी-1 के परीक्षण से यह साबित हो गया कि भारत अगर चाहे तो कुछ भी कर सकता है. उस समय भारत दुनिया को यह दिखाना चाहता था कि वह किसी से भी कम नहीं है. भारत ने यह साबित कर दिया था कि वह सैटेलाइट बना भी सकता है और उसका सफलतापूर्वक परीक्षण भी कर सकता है. 
 

 

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