सैटेलाइट लॉन्चिंग होगी लागत प्रभावी... ISRO कर रहा है रियूजेबल रॉकेट बनाने की तैयारी, ग्लोबल मार्केट में भी देश की बनेगी अलग पहचान

ISRO रियूजेबल रॉकेट बनाने की तैयारी कर रहा है. इसकी जानकारी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चेयरमैन एस सोमनाथ ने दी है. इसकी मदद से रॉकेट लॉन्चिंग को सस्ता बनाया जाएगा.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 06 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:36 PM IST
  • रॉकेट की लॉन्चिंग होगी लागत प्रभावी
  • स्पेस क्षेत्र में बनेगी भारत की अलग पहचान  

ग्लोबल मार्केट में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए भारत एक नए रियूजेबल रॉकेट को बनाने की योजना बना रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चेयरमैन एस सोमनाथ ने सोमवार को इसकी जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि इसरो एक रियूजेबल रॉकेट के डिजाइन और निर्माण की योजना बना रहा है. बंगलूरू स्पेस एक्सपो (BSX) 2022 के दौरान इसरो चेयरमैन ने यह घोषणा की है. बता दें, इससे पहले भारत GSLV Mk III लॉन्च कर चुका. अब इसरो का अगला कदम एक री-यूजेबल रॉकेट है. 

उम्मीद की जा रही है कि इसके इस्‍तेमाल से सैटेलाइट्स को लॉन्च करने में कम खर्चा होगा. इसे बनाने के लिए इसरो, स्‍पेस इंडस्‍ट्री, स्टार्टअप और न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड के साथ काम करने का प्लान कर रही है. 

रॉकेट की लॉन्चिंग करना चाहते हैं सस्ती 

चेयरमैन एस सोमनाथ ने इस दौरान कहा, “हम सभी चाहते हैं कि रॉकेट की लॉन्चिंग आज की तुलना में काफी सस्ता हो. वर्तमान में एक किलोग्राम पेलोड को ऑर्बिट में स्थापित करने में लगभग 10,000 अमरीकी डॉलर से 15,000 अमरीकी डॉलर लगते हैं. हमें इसे 5,000 अमरीकी डॉलर या 1,000 अमरीकी डॉलर प्रति किलोग्राम तक लाना होगा. ऐसा करने का एकमात्र तरीका रॉकेट को रियूजेबल बनाना है. आज भारत में हमारे पास लॉन्चिंग व्हीकल (रॉकेट) में रियूजेबल टेक्नोलॉजी नहीं है.”

इसरो चेयरमैन ने आगे कहा कि इसलिए, GSLV Mk III के बाद हम रियूजेबल रॉकेट बनाने जा रहे हैं. इसके लिए हम अलग अलग टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं.   

स्पेस क्षेत्र में बनेगी अलग पहचान  

दरअसल, अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा पहले से ही रीयूजेबल रॉकेट इस्तेमाल कर रही है. अरबपति एलन मस्‍क की कंपनी भी  री-यूजेबल रॉकेट बना चुकी है. नासा इस रॉकेट के साथ कई मिशन भी लॉन्च कर चुका है. इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ कहते हैं,"यह एक विचार है और हम इसपर काम कर रहे हैं. यह केवल अकेले इसरो का विचार नहीं हो सकता है. इसे एक इंडस्ट्री का विचार होना चाहिए. इसलिए, हमें एक नया रॉकेट डिजाइन करने में बाकि दूसरों की मदद की भी जरूरत पड़ेगी. न केवल इसे डिजाइन करना, बल्कि इंजीनियरिंग में भी दूसरों  की जरूरत पड़ेगी. 


 
 

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