अब वैज्ञानिक समझेंगे कैसे नल और नील ने समुद्र पर तैरा दिए थे पत्थर, रामसेतु पर होगी रिसर्च

रामसेतु के पत्थरों पर रिसर्च करने के लिए विक्रम विवि के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग और उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज ने एक एमओयू साइन किया है. इसका उद्देश्य रामसेतु के पत्थरों की तरह पानी पर तैरने वाला मटेरियल बनाना है. इनका प्रयोग कर देश में हल्के बिल्डिंग और पुल-पुलिया बनाए जा सकेंगे.

Ram setu
अंजनी
  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 9:59 PM IST
  • रामायण के अनुसार 3500 साल पुराना है रामसेतु
  • इसके पीछे है एक कथा
  • रिजल्ट्स आने में लगेगा एक साल का समय
  • दोनों संस्थानों के बीच चलेगा एक्सचेंज प्रोग्राम

रामायण की उस घटना के बारे में तो सब जानते होंगे जब राम का नाम लिखने पर पत्थर तैरने लगे थे और इन पत्थरों का उपयोग करके राम और राम की वानर सेना समुद्र पार कर श्रीलंका पहुंची थी. अब भारत के विश्वविद्यालय इस पत्थर पर रिसर्च करने वाले हैं और जल्द ही लैब्स में ये पत्थर बनाएं जाएंगे. इस स्ट्रक्चर का कृत्रिम रूप से निर्माण वैज्ञानिकों के लिए बड़ी उपलब्धि साबित होगी. यह मटेरियल भूकंप वाले क्षेत्रों में घरों के निर्माण में काम आएगा. इनका प्रयोग कर देश में हल्के बिल्डिंग और पुल-पुलिया बनाए जा सकेंगे.

रामायण के अनुसार 3500 साल पुराना है रामसेतु

रामायण के अनुसार रामसेतु 3500 साल पुराना है, तो कुछ लोग इसे 7000 हज़ार साल पुराना बताते हैं. नासा, इसरो, आईआईटी जैसे कई संस्थानों ने यह तो पता लगा लिया है कि यह पत्थर प्यूबिक मटेरियल से बना है. इस रिसर्च में इसपर और आगे शोध किया जाएगा. यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि इस पत्थर का स्ट्रक्चर क्या है और उसमें कितना वजन झेलने की क्षमता  है.

इसके पीछे है एक कथा 

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब राम सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए लंका पर चढ़ाई करने वाले थे, तो समुद्र के देवता वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए रास्ता देने की  मांग की थी. तब श्री राम ने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठा लिया था. इसे देखते ही वरुण श्रीराम से क्षमा मांगने लगा. उसके बाद उसने बताया था कि अगर नल-नील नाम के वानर अगर पत्थर पर राम का नाम लिखकर समुद्र में डालेंगें तो वह पत्थर तैरने लगेगा और इस तरह ही राम की सेना ने समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार किया था. 

रिजल्ट्स आने में लगेगा एक साल का समय 

रामसेतु के पत्थरों पर रिसर्च करने के लिए विक्रम विवि के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग और उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज ने एक एमओयू साइन किया है. इसका उद्देश्य रामसेतु के पत्थरों की तरह पानी पर तैरने वाला मटेरियल बनाना है. दोनों संस्थानों के कुलपतियों ने इस एमओयू पर हस्ताक्षर किये. ये दोनों संस्थान मिलकर इतिहास एवं संस्कृति की स्टडी कर रिसर्च एवं डेवलपमेंट कार्य करेंगे. इसके लिए संस्कृत लाइब्रेरी और विक्रम यूनिवर्सिटी की भी मदद ली जाएगी. एसओईटी संस्थान के डायरेक्टर डॉ. गणपति अहिरवार ने एमओयू के कई फायदे बताए. उन्होंने जानकारी दी कि इसके रिजल्ट्स आने में एक साल का समय लगेगा.

दोनों संस्थानों के बीच चलेगा एक्सचेंज प्रोग्राम 

उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने बताया,“ हमने रामचरित मानस पर पाठ्यक्रम इसी वर्ष शुरू किया है, यह थ्योरिटिकल है, लेकिन रामसेतु पर हम प्रैक्टिकल करना चाहते हैं”. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय व इंजीनियरिंग कॉलेज के संसाधनों का इस्तेमाल कर वो इसे पूरा करने की कोशिश करेंगे. वहीं शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज के डायरेक्टर, डॉ. गणपति अहिरवार ने इंजीनियरिंग कॉलेज और विक्रम विश्वविद्यालय के बीच एक्सचेंज प्रोग्राम चलाने की बात कही.


 

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