फिर से चल सकेंगे पैरालाइज रोगी, नए न्यूरॉन्स की खोज से बदलेगी जिंदगी

ऑनलाइन पब्लिशर नेचर (Nature) में प्रकाशित हुई एक अध्ययन के अनुसार लकवाग्रस्त रोगी फिर से चल सकेंगे. दरअसल वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक नए न्यूरॉन्स की खोज की है जो फिर से पैरालाइज से जूझ रहे लोगों को चलने में मदद करेगी.

Scientists Discover New Neurons
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:41 PM IST
  • नौ रोगियों के ऊपर किए शोध में पता चला
  • रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगने से बाधित हो जारी है न्यूरॉन्स की संचार प्रक्रिया

वैज्ञानिकों ने एक ऐसे न्यूरॉन्स की खोज की खोज की है जो लकवा ग्रस्त लोगों को फिर से चलने में मदद कर सकता है. इसके बारे में वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में नए न्यूरॉन के प्रकार की पहचान की है. जिसकी मदद से रीढ़ की हड्डी फिर से जान डाली जा सकेगी. जिसकी मदद से रोगियों को खड़े होने, चलने और अपनी मांसपेशियों को फिर से रिबिल्ड करने में मदद मिलती है. इसके साथ ही रोगी का जीवन और भी बेहतर होता जाता है. 

पहले चूहों पर किया गया शोध
ये अध्ययन नेचर (Nature) में 9 नवंबर, 2022 को प्रकाशित हुआ है. जिसमें बताया गया है कि लकवा ग्रस्त लोगों को फिर से चलने में मदद करने के लिए खोजी गई नई न्यूरॉन को नौ रोगियों पर शोध करने पर पता चला है. इस शोध को स्विस शोध समूह न्यूरोरेस्टोर के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया. जिन्होंने थेरेपी के दौरान इस नए न्यूरॉन का पता लगाया. जिसका इस्तेमाल पहले चूहों के ऊपर किया गया था. 

ऐसे होता है पैरालाइज
साइंस अलर्ट के अनुसार पाई गई नई न्यूरॉन को तंत्रिका कोशिकाएं रीढ़ की हड्डी के उस हिस्से में पाई जाती हैं जो हमारी पीठ के निचले हिस्से से होकर गुजरती है. हमारी रीढ़ की हड्डी में चोट लगने पर मस्तिष्क की संकेत की श्रृंखला बाधित होती है. जिसका असर हमारे चलने-फिरने पर असर पड़ता है. वहीं नेचर मैगजीन के मुताबिक रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से मस्तिष्क और मस्तिष्क तंत्र से मार्ग को बाधित होती है, जो रीढ़ की हड्डी तक जाती है, जिसके चलते पैरालाइज हो जाता है. 

ऐसे काम करती है न्यूरॉन्स
इस अध्ययन में आगे बताया गया है कि लोगों को चलने में मदद करने वाले न्यूरॉन्स रीढ़ की हड्डी में रहते हैं. चलने में मदद करने के लिए दिमाग इन न्यूरॉन को सक्रिय करने के लिए आदेशों को प्रवाहित करते है. अगर रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लग जाती है तो उस चोट के कारण यह संचार प्रणाली बाधित हो जाती है. इसके साथ ही इस संचार प्रक्रिया को चोट पूरी तरह से बिखेर देती है. जबकि रीढ़ की हड्डी में स्थित ये न्यूरॉन्स सीधे चोट से क्षतिग्रस्त नहीं होते हैं, आवश्यक सुपरस्पाइनल कमांड की कमी उन्हें गैर-कार्यात्मक बना देती है. जिसके परिणाम स्वरूप पैरालाइज हो जाता है. 


 

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