दिल को स्वस्थ रखने का नया मंत्र है सेल्फ कंपैशन.... स्टडी में हुआ खुलासा....जानें इसके बारे में सबकुछ

वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन महिलाओं ने सेल्फ कंपैशन में अच्छा स्कोर किया था, उनकी कैरोटिड धमनी की दीवारें पतली थीं और कम सेल्फ कंपैशन वाले लोगों की तुलना में कम प्लैक का जमा था. डॉ थर्स्टन ने बताया, “इन निष्कर्षों से ये पता चला कि हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए सेल्फ कंपैशन जरूरी है”.

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अंजनी
  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 4:37 PM IST
  • पॉजिटिव साइकोलॉजिकल फैक्टर्स भी दिल को करते हैं प्रभावित
  • महामारी का मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है बुरा असर  
  • 45 से 67 वर्ष की आयु की 200 महिलाओं से पूछे गए सवाल 
  • दूसरों से अच्छे व्यवहार की उम्मीद के बजाय रखें खुद का ख्याल

बड़े-बुजुर्ग घर में हमेशा कहा करते थे कि एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मन का निवास होता है. लेकिन अभी के समय में ये कहावत उलटी पड़ती दिखाई दे रही है. एक नए शोध से पता चला है कि सेल्फ कंपैशन का अभ्यास करने से हृदय रोग का खतरा कम हो सकता है. यह स्टडी 'हेल्थ साइकोलॉजी जर्नल' में प्रकाशित हुई है. सेल्फ कंपैशन का मतलब  बुरे वक्त में स्वयं के प्रति उसी तरह से व्यवहार करना है जैसा आप दूसरों के साथ करते हैं. सेल्फ कंपैशन का मतलब खुद के प्रति करुणा और दयाभाव रखना है. इस स्टडी में उच्च रक्तचाप, इंसुलिन रेसिस्टेंस और कोलेस्ट्रॉल के स्तर जैसे अन्य ट्रैडिशनल रिस्क फैक्टर्स के बावजूद, मिडिल एज की महिलाएं जो सेल्फ कंपैशन का अभ्यास करती थीं, उनमें हृदय रोग होने का जोखिम कम पाया गया.

पॉजिटिव साइकोलॉजिकल फैक्टर्स भी दिल को करते हैं प्रभावित 

पिट में क्लिनिकल एंड ट्रांसलेशनल साइंस, एपिडेमियोलॉजी एंड साइकोलॉजी में मनोचिकित्सा की प्रोफेसर रेबेका थर्स्टन ने कहा, "इस अध्ययन पर बहुत सारे शोध केंद्रित हैं. हम सबको पता है कि तनाव और दूसरे निगेटिव फैक्टर्स हृदय स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन पॉजिटिव साइकोलॉजिकल फैक्टर्स, जैसे कि सेल्फ कंपैशन का दिल की सेहत पर प्रभाव के बारे में बहुत कम लोगों को पता है." 

महामारी का मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है बुरा असर  

मेडिटेशन जैसे माइंडफुलनेस प्रैक्टिस धीरे-धीरे लोगों के बीच में लोकप्रिय हो रही है. काम और अपने निजी जीवन में तनाव के बंधन से थके हुए, लोग तेजी से अपने मूड और इमोशंस को मैनेज  करने के लिए आत्मचिंतन का विकल्प चुनते हैं. महामारी के दौरान, विशेष रूप से महिलाओं के लिए तनाव बढ़ गया था. दुनिया भर के विभिन्न ग्रुप रिसर्च से पता चला है कि इस महामारी से  महिलाएं बहुत ज्यादा प्रभावित हुई हैं क्यूंकि उन्हें घर के बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करनी होती हैं.

45 से 67 वर्ष की आयु की 200 महिलाओं से पूछे गए सवाल 

थर्स्टन और उनके सहयोगियों ने 45 से 67 वर्ष की आयु तक की लगभग 200 महिलाओं को कुछ प्रश्नों का उत्तर देने को कहा. महिलाओं ने एक छोटे से क्वेस्चनैर का उत्तर दिया, जिसमें उन्हें यह बताने के लिए कहा गया कि वे कितनी बार अकेलेपन का अनुभव करती हैं, चाहे वे अक्सर अपनी स्वयं की खामियों से निराश महसूस करती हों या यदि वे कठिन जीवन के क्षणों में खुद की  देखभाल करती हैं. महिलाओं की कैरोटिड धमनियों का एक स्टैंडर्ड डायग्नोस्टिक अल्ट्रासाउंड भी किया गया. कैरोटिड धमनियां गर्दन में पाई जाती हैं जो खून को दिल से दिमाग तक ले जाती हैं.

दूसरों से अच्छे व्यवहार की उम्मीद के बजाय रखें खुद का ख्याल 

वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन महिलाओं ने सेल्फ कंपैशन में अच्छा स्कोर किया था, उनकी कैरोटिड धमनी की दीवारें पतली थीं और कम सेल्फ कंपैशन वाले लोगों की तुलना में कम प्लैक का जमा था. डॉ थर्स्टन ने बताया, “इन निष्कर्षों से ये पता चला कि हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए सेल्फ कंपैशन जरूरी है”. हमारा खुद के लिए अच्छा व्यवहार हमारे दिल को ज्यादा सेहतमंद बनाता है. तो अब से दूसरों से अच्छे व्यवहार की उम्मीद करने से पहले अपने साथ अच्छा व्यवहार करें.


 

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