Smart watches detect Parkinson’s: आपके हाथ पर बंधी स्मार्टवॉच है बड़ी काम की, 7 साल पहले ही लगा सकेगी पार्किंसंस बीमारी का पता

Smart watches and Parkinson’s: यूके डिमेंशिया रिसर्च इंस्टीट्यूट और कार्डिफ यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस एंड मेंटल हेल्थ इनोवेशन इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में ये स्टडी की गई है. इस स्टडी में 103,712 लोगों का डेटा जांचा गया था.

Smart watches detect Parkinson
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 04 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 11:59 AM IST
  • तेजी से बढ़ने वाली बीमारी है पार्किंसन 
  • 1 लाख लोगों का लिया गया सैंपल 

आपके हाथ पर बंधी स्मार्टवॉच बड़ी काम की है. इससे आप बीमारियों का पता भी लगा सकते हैं. एक स्टडी के मुताबिक, लक्षण दिखने के 7 साल पहले आप पार्किंसंस बीमारी का पता लगा सकते हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल करते हुए, शोधकर्ताओं ने सात दिनों में लोगों के चाल-ढाल का विश्लेषण किया और ये भविष्यवाणी की कि बाद में यह बीमारी किसे हो सकती है. 

तेजी से बढ़ने वाली बीमारी है पार्किंसन 

दरअसल, पार्किंसंस, दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, एक ऐसी बीमारी है जिसमें हमारे दिमाग के कुछ हिस्से धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त (Damage) होने लगते हैं. इसके लक्षण शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों हो सकते हैं. लक्षणों में कंपकंपी, मूवमेंट धीरे हो जाना, मांसपेशियों का कठोर या ढीला हो जाना शामिल हैं. मरीजों को बैलेंस, सूंघने की क्षमता, कुछ याद करने में परेशानी या नींद न आने जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. 

1 लाख लोगों का लिया गया सैंपल 

पार्किंसंस यूके के मुताबिक, ब्रिटेन में 37 लोगों में से हर एक को अपनी पूरी लाइफ में इस बीमारी का सामना करना पड़ सकता है. 2020 में लगभग 145,000 लोगों का डेटा सामने आया है. 50 से 89 साल  की उम्र के पुरुषों में महिलाओं की तुलना में इसका ट्रीटमेंट होने की संभावना 1.4 गुना अधिक है.

यूके डिमेंशिया रिसर्च इंस्टीट्यूट और कार्डिफ यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस एंड मेंटल हेल्थ इनोवेशन इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में ये स्टडी की गई है. इस स्टडी में 103,712 लोगों का डेटा देखा गया था. ये वो लोग थे जिन्होंने  2013 और 2016 के बीच सात दिनों के लिए मेडिकल-ग्रेड स्मार्ट वॉच पहनी थी.

एआई देगा साथ

वॉच ने हर प्रतिभागी की एवरेज स्पीड को नापा और डेटा की तुलना उन लोगों के ग्रुप से की, जिन्हें पहले ही पार्किंसंस रोग हो चुका था. एआई मॉडल समय-सीमा के बारे में बताने में भी सक्षम था. स्टडी लीडर्स को उम्मीद है कि इस नई तकनीक का उपयोग भविष्य में स्क्रीनिंग टूल के रूप में किया जा सकता है. इससे वर्तमान प्रक्रियाओं की तुलना में पार्किंसंस का पहले से पता लगाया जा सकेगा और रोगियों को पहले उपचार तक पहुंच की सुविधा मिलेगी. 

 

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