NASA का Mission Mangal, न्यूक्लियर रॉकेट इंजन से सफर में लगेगा आधा टाइम?

यूनाइटेड स्टेट्स डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (DARPA) के सहयोग से NASA एक ऐसे न्यूक्लियर प्रोपल्शन सिस्टम पर काम कर रहा है, जो मंगल ग्रह की यात्रा में लगने वाले समय को आधा कर सकता है. Lockheed Martin को प्रोपल्शन सिस्टम के डिजाइन, निर्माण और टेस्ट के लिए चुना गया है.

3 साल में नासा स्पेस में न्यूक्लियर रॉकेट भेज सकता है (प्रतिकात्मक तस्वीर)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 07 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 3:57 PM IST

नासा स्पेस में न्यूक्लियर रॉकेट भेजने की तैयारी कर रहा है और बताया जा रहा है कि 3 साल से भी कम समय में वो ऐसा कर सकता है. नासा और डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी यानी डीएआरपीए ने ऐलान किया है कि लॉकडीह मार्टिन को प्रोपल्शन सिस्टम के डिजाइन, निर्माण और टेस्ट के लिए चुना गया है. ये प्रोपल्शन सिस्टम एक दिन मंगल ग्रह पर जाने वाले इंसानों के सफर के दौरान स्पीड को बढ़ा सकती है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्जीनिया के लिंचबर्ग में स्थिति BWX टेक्नोलॉजीज इंजन के सेंटर में न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर का निर्माण करेगी. इस प्रोजेक्ट को DRACO नाम दिया गया है. जिसकी लागत करीब 499 मिलियन डॉलर है.

मंगल ग्रह के सफर में लगेगा आधा टाइम-
क्या होगा अगर कोई स्पेसक्राफ्ट वर्तमान समय से आधे समय में मंगल ग्रह पर पहुंच जाए? हर 26 महीने के बाद मंगल और धरती के बीच सबसे कम दूरी होती है. इसके बावजूद ये यात्रा काफी लंबी है, ये यात्रा 7 से 9 महीने तक चलती है. ज्यादातर समय स्पेसक्राफ्ट सिर्फ स्पेस में घूमता रहता है.
अगर स्पेसक्राफ्ट सफर के पहले चरण में अपनी गति लगातार जारी रखे और फिर धीमी करना शुरू कर दे तो यात्रा का समय कम किया जा सकता है. फिलहाल इस समय जिस इंजन का इस्तेमाल किया जाता है, वो ऑक्सीजन के साथ हाइड्रोजन या मीथेन जैसे ईंधन पर निर्भर होता है, जो इस रफ्तार को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है. इतना अधिक प्रोपल्शन ले जाने के लिए स्पेसक्राफ्ट में जगह नहीं होता है. लेकिन यूरेनियम एटम्स के विखंडन से ऊर्जा उत्पन्न करने वाली न्यूक्लियर रिएक्शन ज्यादा कारगर है.

जिस DRACO इंजन पर काम चल रहा है, उसमें परमाणु रिएक्टर होगा, जो हाइड्रोजन को माइनस 420 डिग्री फारेनहाइट से 4400 डिग्री तक गर्म करेगा. जिसमें थ्रस्ट जनरेट करने के लिए नोजल से गर्म गैस भेजी जाएगी. अधिक फ्यूल एफिशिएंसी मंगल ग्रह की यात्रा को तेजी से पूरा कर सकती है. इससे एस्ट्रोनॉट के स्पेस के खतरनाक वातावरण में कम रहना पड़ेगा.
न्यूक्लियर प्रोपल्शन का इस्तेमाल घर के पास भी हो सकता है. इसलिए DARPA इस प्रोजेक्ट में निवेश कर रहा है. ये तकनीक धरती के चारों तरफ आर्बिट में मिलिट्री सैटेलाइट के रैपिड संचालन की इजाजत दे सकती है.

न्यूक्लियर प्रोपल्शन नहीं है नया विचार-
स्पेस के लिए न्यूक्लियर प्रोपल्शन कोई नया विचार नहीं है. 1950 और 1960 के दशक में प्रोजेक्ट ओरियन के तहत स्पेसक्राफ्ट को रफ्तार देने के लिए न्यूक्लियर बम के विस्फोट के इस्तेमाल पर विचार किया गया था. इस प्रोजेक्ट पर नासा, एयरफओर्स और एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी ने खर्च किया था.
उसी समय नासा और दूसरी एजेंसियों ने प्रोजेक्ट रोवर और प्रोजेक्ट NERVA भी शुरू किया था. जिसका मकसद इसी तरह के कॉन्सेप्ट पर न्यूक्लियर थर्मल इंजन विकसित करना था. जिसे अब DRACO प्रोग्राम के जरिए अपनाया जा रहा है.
23 रिएक्टर की एक सीरीज का निर्माण और उसका परीक्षण किया गया. लेकिन इसमें से किसी को भी स्पेस में लॉन्च नहीं किया गया. साल 1973 में इस प्रोग्राम का अंत हो गया. उस वक्त तक नासा ने जुपिटर, सैटर्न और उसके आगे तक के स्पेस कार्यक्रम के लिए न्यूक्लियर रिएक्टर्स के इस्तेमाल पर विचार किया था. इतना ही नहीं, नासा ने चांद पर बेस को पावर सप्लाई के लिए परमाणु रिएक्टर का इस्तेमाल करने पर विचार किया था.

NERVA और DRACO में अंतर-
NERVA और DRACO प्रोजेक्ट में एक बड़ा अंतर ये है कि NERVA ने अपने रिएक्टर्स के लिए हथियार-ग्रेड यूरेनियम का इस्तेमाल किया, जबकि DRACO यूरेनियम के कम-संवर्धित फॉर्म का इस्तेमाल करेगा.
धरती पर रेडियोधर्मी हादसे की आशंका को देखते हुए रिएक्टर को स्पेस में पहुंचने से पहले चालू नहीं किया जाएगा. DRACO की लॉन्चिंग साल 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में होना है.

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