Good News: Pfizer और Covishield वैक्सीन लगवाने वालों में बन रही है कोरोना संक्रमितों से ज्यादा एंटीबॉडीज: स्टडी

सोमवार को साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च में पाया गया कि इन दोनों वैक्सीन से बनने वाली एंटीबॉडी डेल्टा वायरस के खिलाफ भी काफी प्रभावी हैं. इस रिसर्च में, 32 गैर-अस्पताल में भर्ती कोविड-19 पॉजिटिव कनाडाई वयस्कों को शामिल किया गया. रिसर्च में पाया गया कि जब किसी ऐसे व्यक्ति को वैक्सीन लगाई जाती है जिसे मामूली कोविड-19 संक्रमण है, उनके शरीर में एंटीबॉडी ज्यादा बनती हैं, बजाय उनके जो कोरोना संक्रमित हैं और उन्हें वैक्सीन नहीं लगी है.

प्रतीकात्मक तस्वीर
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 09 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 10:12 AM IST
  • वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी देती है ज्यादा सुरक्षा
  • इन दोनों वैक्सीन से बनने वाली एंटीबॉडी डेल्टा वायरस के खिलाफ भी काफी प्रभावी हैंं
  • उनकी एंटीबॉडी स्पाइक-एसीई -2 (Spike-ACE-2) इंटरैक्शन को रोकने में भी सक्षम है

हाल ही में हुई एक रिसर्च के अनुसार, जो लोग फाइजर (Pfizer) या एस्ट्राजेनेका यानि कोविशील्ड (Covishield) वैक्सीन लगवाते हैं, उनमें कोविड-19 संक्रमण की तुलना में अधिक एंटीबॉडी बनती हैं. सोमवार को साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च में पाया गया कि इन दोनों वैक्सीन से बनने वाली एंटीबॉडी डेल्टा वायरस के खिलाफ भी काफी प्रभावी हैं. कनाडा में मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में टीम ने इस रिसर्च को पूरा किया है.

इस रिसर्च में, 32 गैर-अस्पताल में भर्ती कोविड-19 पॉजिटिव कनाडाई वयस्कों को शामिल किया गया. ये सभी लोग 2020 में पीसीआर टेस्ट (PCR-test) में कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे. ये बात वायरस का 'बीटा', 'डेल्टा' और 'गामा' वेरिएंट सामने आने से पहले की है.

वैक्सीन से बनी एंटीबॉडीज देती हैं ज्यादा सुरक्षा 

मॉन्ट्रियल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीन-फ्रेंकोइस मैसन ने इस रिसर्च पर कहा, "हर वो व्यक्ति जो कोरोना संक्रमित हुआ उसमें एंटीबॉडी बनी हैं, लेकिन वृद्ध लोगों में 50 वर्ष से कम उम्र के वयस्कों की तुलना में ज्यादा एंटीबॉडी बनी. इसके अलावा, संक्रमित होने के 16 हफ्ते बाद तक उनके खून में ये एंटीबॉडी रही.”

वहीं, मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय के अन्य प्रोफेसर जोएल पेलेटियर कहते हैं कि जिस परिणाम ने हमें सबसे ज्यादा हैरान किया, वह यह था कि 50 और उससे अधिक उम्र के संक्रमित व्यक्तियों में जो एंटीबॉडीज बनीं, वह 50 से कम उम्र के वयस्कों की तुलना में ज्यादा सुरक्षा प्रदान करती हैं.

प्रोफेसर जोएल ने बताया कि ह्यूमन सेल में मौजूद ACE-2 रेसेप्टर के साथ जब डेल्टा वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन का इंटरेक्शन होता है तब वह व्यक्ति कोविड संक्रमित होता है. इसी को नापकर इस रिसर्च को किया गया है. हालांकि, इस रिसर्च में फिनॉमिना को दूसरे वेरिएंट्स के साथ टेस्ट नहीं किया गया.

क्या आया रिसर्च में सामने?

रिसर्च में पाया गया कि जब किसी ऐसे व्यक्ति को वैक्सीन लगाई जाती है जिसे मामूली कोविड-19 संक्रमण है, उनके शरीर में एंटीबॉडी ज्यादा बनती हैं, बजाय उनके जो कोरोना संक्रमित हैं और उन्हें वैक्सीन नहीं लगी है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, उनकी एंटीबॉडी स्पाइक-एसीई -2 (Spike-ACE-2) इंटरैक्शन को रोकने में भी सक्षम है.

प्रोफेसर मेसन कहते हैं, "सबसे ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि हमारे पास 49 वर्ष से कम उम्र के एक व्यक्ति के सैंपल हैं, जिनके शरीर में कोविड संक्रमण के बाद भी एंटीबॉडी नहीं बनीं. इससे पता चलता है कि वैक्सीन उन लोगों को भी डेल्टा वेरिएंट से सुरक्षा देता है जो पहले वायरस के नेटिव स्ट्रेन से  संक्रमित हुए हैं.”

हालांकि, शोधकर्ताओं का मानना ​​​​है कि वायरस के सभी वेरिएंट और एंटीबॉडी को लेकर और रिसर्च होनी चाहिए. 


 

 

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