लोग अब साइंस को अपना शरीर दे रहे हैं. यानी वे अब ऑर्गन डोनेशन की जगह बॉडी डोनेशन कर रहे हैं. ठीक ऐसा ही CPI (M) नेता सीताराम येचुरी, जिनका 12 सितंबर को निधन हुआ, ने अपना शरीर एम्स को डोनेट करने का फैसला किया. ऑर्गन डोनेशन से अलग, साइंस के लिए बॉडी को डोनेट करने का मतलब है कि मृत्यु के बाद अपने पूरे शरीर को मेडिकल रिसर्च के लिए दे देना.
कैडवर डोनेशन और ऑर्गन डोनेशन में क्या फर्क है?
कैडवर डोनेशन में मरने के बाद पूरा शरीर डोनेट किया जाता है, जबकि ऑर्गन डोनेशन में लिवर, किडनी या हार्ट जैसे ऑर्गन डोनेट किए जाते हैं. ऐसा आमतौर पर दूसरों की जिंदगी को बचाने या बेहतर बनाने के लिए किया जाता है. ऑर्गन डोनेशन किसी व्यक्ति को किया जाता है, जबकि बॉडी डोनेशन डॉक्टरों को ट्रेनिंग देने, रिसर्च एंड स्टडी के लिए किया जाता है.
ऑर्गन हमेशा हमेशा तत्काल जरूरत के लिए किया जाता है. इसके विपरीत, बॉडी डोनेशन बाद के लिए या भविष्य की जरूरतों के लिए किया जाता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एम्स को हाल के सालों में कई बॉडी मिली हैं. पिछले दो साल में संस्थान को लगभग 70 बॉडी डोनेशन मिला है. हालांकि यह संख्या देश भर में बढ़ती मांग के मुकाबले बहुत कम है, लेकिन यह मेडिकल के छात्रों के लिए कुछ हद तक राहत की बात है. हालांकि, भारत में बॉडी डोनेशन को लेकर लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है.
मेडिकल ट्रेनिंग के लिए बॉडी डोनेशन क्यों जरूरी है?
बॉडी डोनेशन का सबसे बड़ा उद्देश्य भविष्य के डॉक्टरों को ट्रेनिंग देना है. मेडिकल क्षेत्र में बॉडी डोनेशन एक बड़ी चीज है. इससे ट्रेनिंग कर रहे डॉक्टरों को इंसानों के शरीर को समझने और एक्सपेरिमेंट करने में मदद मिलती है. मेडिकल छात्र शरीर को परत दर परत dissect करके उसकी गहरी जानकारी लेते हैं. प्लास्टिक मॉडल या वर्चुअल सिम्युलेशन से ऐसा सीखना लगभग नामुमकिन है. कैडवर की स्टडी से यह समझने में मदद मिलती है कि कैंसर जैसी बीमारी कैसे फैलती है या किसी विशेष सर्जरी से अलग-अलग ऑर्गन्स पर क्या प्रभाव पड़ता है.
भारत में कैडवर की कमी
विज्ञान के लिए बॉडी डोनेशन करने के इच्छुक लोगों की संख्या भारत में बहुत कम है. ऑर्गन डोनेशन के विपरीत, यहां पूरे शरीर के डोनेशन को ट्रैक करने के लिए कोई सेंट्रल या नेशनल रजिस्टर नहीं है, जिससे कैडवर डोनर्स की संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है. आमतौर पर, मेडिकल कॉलेजों के एनाटॉमी विभाग बॉडी डोनेशन के लिए जिम्मेदार होते हैं. अगर कोई अपनी बॉडी डोनेट करना चाहता है, तो उसे मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग से संपर्क करना होता है, फॉर्म भरना होता है और अपनी इच्छा की जानकारी अपने परिवार को देनी होती है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट की मानें, तो वर्तमान में भारत में उपलब्ध कैडवर की संख्या मांग से काफी कम है. उदाहरण के लिए, मेडिकल कॉलेजों में हर 10 छात्रों के लिए एक कैडवर होना चाहिए. जबकि एम्स दिल्ली, जहां येचुरी ने अपनों बॉडी डोनेट की है, को पिछले दो साल में केवल 70 कैडवर ही मिले हैं. उदाहरण के लिए, सफदरजंग अस्पताल और वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज (VMMC) को पिछले पांच साल में केवल 24 बॉडी डोनेट की गई हैं, जबकि उनके पास 150 छात्रों का एक ग्रदुएटेड बैच है. इसी तरह, राम मनोहर लोहिया अस्पताल और अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज को 2019 से केवल 18 बॉडी डोनेशन मिले थे.
बॉडी कैसे डोनेट करें?
जो लोग अपने शरीर को विज्ञान के लिए डोनेट करने में रुचि रखते हैं, उनके लिए प्रक्रिया काफी आसान है. उन्हें मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में जाकर फॉर्म भरना होता है और अपनी सहमति देनी होती है. यह भी जरूरी है कि व्यक्ति अपने परिवार को अपनी इच्छा के बारे में बताए, क्योंकि मरने के बाद डोनेशन प्रोसेस को पूरा करने के लिए परिवार का सहयोग जरूरी होता है.
हालांकि, कौन सी बॉडी स्वीकार की जाएगी, इसे लेकर भी कुछ नियम हैं. क्रोनिक बीमारियों से मरने वाले लोग अभी भी अपना शरीर दान कर सकते हैं, लेकिन टीबी, सेप्सिस या एचआईवी जैसी संक्रामक बीमारियों से मरने वाले व्यक्तियों के शरीर आमतौर पर स्वीकार नहीं किए जाते हैं. ऐसे लोग जिन्होंने अपने ऑर्गन डोनेट किए हैं, उनके शरीर भी अस्वीकार किए जा सकते हैं.