हमारी सेल्स के भीतर भी एक छोटी दुनिया होती है. इसमें माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) नाम की संरचनाएं होती हैं. इन्हें पावर हाउस भी कहा जाता है. ये छोटे पावर हाउस ही हमारे खाने को एनर्जी में बदलते हैं , जिससे सेल्स को काम करने में मदद मिलती है. माइटोकॉन्ड्रिया एनर्जी बनाते हैं जो हमारे शरीर के दूसरे ऑर्गन्स को शक्ति देता है और हमें हमें स्वस्थ रखता है. लेकिन जब इन छोटे स्ट्रक्चर में कुछ गलत हो जाता है, तो यह कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं. इन्हें माइटोकॉन्ड्रियल डिजीज या "मिटो" (mito) के रूप में जाना जाता है.
माइटोकॉन्ड्रियल डिजीज क्या है?
माइटोकॉन्ड्रियल डिजीज (Mitochondrial disease) में कई सारी चीजें होती हैं. इससे एनर्जी पैदा करने में परेशानी आती है. इसका अलग-अलग ऑर्गन्स पर प्रभाव पड़ सकता है. कई बार तो इससे ऑर्गन्स भी खराब हो सकते हैं.
माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी के साथ एक बड़ी चुनौती यह है कि इसका कोई इलाज नहीं है. हालांकि, माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन के रूप में जानी जाने वाली एक आईवीएफ प्रक्रिया प्रभावित लोगों को ठीक कर सकती है. यह तकनीक बच्चों के लिए काफी प्रभावी हो सकती है. इससे उनकी माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी को ठीक किया जा सकता है.
डीएनए होती है इस बीमारी की वजह
माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी दो सोर्स से हो सकती है. पहला फॉल्टी न्यूक्लियर डीएनए (faulty nuclear DNA) या दूसरा फॉल्टी माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (faulty mitochondrial DNA). न्यूक्लियर डीएनए वह जेनेटिक मटेरियल होता है जो हमें अपने माता-पिता दोनों से विरासत में मिलता है, जबकि माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए पूरी तरह से हमारी मां से विरासत में मिलता है. जब माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए में कुछ परेशानी होती है तो बच्चे को बीमारी हो सकती है. ये बच्चे से मां में आ सकता है.
माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है, लेकिन यह आमतौर पर उन अंगों को प्रभावित करता है जिनमें बहुत ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है, जैसे दिमाग, मांसपेशियां और दिल. यही कारण है कि लक्षणों में अक्सर मांसपेशियों में कमजोरी, न्यूरोलॉजिकल समस्याएं और दिल से जुड़ी बीमारियां शामिल होती हैं. गंभीर मामलों में, बीमारी तेजी से बढ़ सकती है, खासकर बच्चों में.
माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन से बच सकते हैं बच्चे
माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन एक एक्सपेरिमेंटल आईवीएफ-आधारित तकनीक (IVF-based technique) है. इसके लिए वैज्ञानिक एक महिला के एग (Woman Egg) से न्यूक्लियर डीएनए निकालते हैं जिसमें फॉल्टी माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए होता है और इसे डोनर से मिले हेल्दी एग में डाला जाता है. डोनर एग का न्यूक्लियर डीएनए हटा दिया जाता है लेकिन उसका हेल्दी माइटोकॉन्ड्रिया बरकरार रहता है.
इस प्रक्रिया से एक बच्चे में तीन लोगों के जेनेटिक मटेरियल होते हैं: माता-पिता का न्यूक्लियर डीएनए और डोनर का माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए. इससे माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी फैलने का खतरा काफी कम हो जाता है.
बता दें, ऑस्ट्रेलिया में माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन को लेकर काम चल रहा है. वैज्ञानिक इसपर लगातार काम कर रहे हैं.