Solo Ageing: बुढ़ापे में अकेले रहना चुन रहे हैं बुजुर्ग, लोगों में बढ़ रहा सोलो एजिंग का ट्रेंड, क्या है ये? 

एक स्टडी में कुछ बुजुर्गों को शामिल किया गया. इसमें अधिकतर ने बताया कि वे पांच साल से ज्यादा समय से अकेले रह रहे हैं. अपने जीवन को मैनेज करने में आने वाली परेशानियों को साइड में रखकर उन्होंने अकेले रहना चुना है. रिपोर्ट बताती है कि 46.9% सोलो एजर्स अपनी जिंदगी से खुश हैं, जबकि 41.5% असंतुष्ट हैं. 

Solo Ageing Trend
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 02 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 2:51 PM IST
  • बढ़ रहा सोलो एजिंग का ट्रेंड
  • सोलो एजिंग की चुनौतियां भी हैं

मौजूदा समय में लोग अकेले रहना ज्यादा पसंद करने लगे हैं. इसे सोलो एजिंग भी कहा जाता है. सोलो एजिंग उन व्यक्तियों, खासकर बुजुर्गों की स्थिति को बताता है जो परिवार के सदस्यों या पार्टनर के सपोर्ट के बिना अकेले रहना चुनते हैं. अब इसी को लेकर एक स्टडी हुई है जिसमें इस ट्रेंड के बारे में पता चला है. 

एजवेल फाउंडेशन की स्टडी के मुताबिक, सोलो एजिंग का ट्रेंड दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा है. जैसे-जैसे परिवार और न्यूक्लियर बन रहे हैं, बच्चे बेहतर अवसरों के लिए विदेश चले जा रहे हैं, और बुजुर्ग अकेले रहना तलाश रहे हैं. 

बढ़ रहा सोलो एजिंग का ट्रेंड 
एक स्टडी में कुछ बुजुर्गों को शामिल किया गया. इसमें 41.9% बुजुर्ग, जिनमें 46.5% बुजुर्ग महिलाएं शामिल हैं, ने बताया कि वे पांच साल से ज्यादा समय से अकेले रह रहे हैं. अपने जीवन को मैनेज करने में आने वाली परेशानियों को साइड में रखकर उन्होंने अकेले रहना चुना है. रिपोर्ट बताती है कि 46.9% सोलो एजर्स अपनी जिंदगी से खुश हैं, जबकि 41.5% असंतुष्ट हैं. 

इस बदलाव के पीछे प्रमुख कारणों में से एक आत्मनिर्भरता, आर्थिक और सामाजिक, की बढ़ती पसंद है. 31% से ज्यादा बुजुर्गों ने कहा है कि उन्होंने अपनी आजदी के लिए और अकेले रहना चुना है. विशेष रूप से इसमें बुजुर्ग महिलाएं शामिल हैं. इन महिलाओं को अकेले रहना ज्यादा पसंद आ रहा है. अपने जीवन के कई साल परिवार में बिताने और सभी जिम्मेदारियों के बीच से हटकर वे अकेले रहना चाहती हैं. वे इन सभी जिम्मेदारियों से खुद को फ्री रखना चाहती हैं. वे ऐसा जीवन चाहती हैं जिसमें वे अकेले ही अपने निर्णय ले सकें.

क्या हैं सोलो एजिंग के अलग-अलग कारण  
सोलो एजिंग का एक और सबसे बड़ा कारण सामाजिक-आर्थिक बदलाव है. जैसे-जैसे युवा पीढ़ी पढ़ाई या नौकरी के अवसरों के लिए घर से दूर जाती है, बुजुर्ग माता-पिता अक्सर खुद को अकेला पाते हैं. इसके अलावा, न्यूक्लियर परिवारों के बढ़ने के कारण बुजुर्ग माता-पिता के अपने बच्चों के साथ रहने की संभावना कम होती जाती है. स्टडी में 26.7% लोगों ने इन सामाजिक-आर्थिक बदलावों को सोलो एजिंग का कारण बताया है. 

इसके अलावा, प्राइवेसी भी सोलो एजिंग का बड़ा कारण है. लगभग 21.5% बुजुर्गों ने प्राइवेसी को अकेले रहने का एक कारण बताया है. यह दिखाता कि बुजुर्ग अपनी व्यक्तिगत सीमाओं को कैसे देखते हैं, और अपने जीवन को अपने हिसाब से जीने को ज्यादा तवज्जो देते हैं. वे खुद की जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं.  

सोलो एजिंग की चुनौतियां भी हैं
हालांकि, सोलो एजिंग के साथ कई चुनौतियां भी आती हैं. अकेले रहने से भावनात्मक और मानसिक तौर पर बहुत फर्क पड़ सकता है. अकेलेपन का एहसास चिंता, डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ पर खराब असर डाल सकता है. अध्ययन में पाया गया कि 41% बुजुर्ग जो अकेले रह रहे थे, ने बताया कि उनकी मेंटल हेल्थ काफी हद तक प्रभावित हुई है. सोलो एजर्स में अकेलापन एक बड़ी समस्या के रूप में उभरकर सामने आया. 10.4% लोगों ने कहा कि वे हमेशा अकेलापन महसूस करते हैं, जबकि 21.2% ने स्वीकार किया कि वे कभी-कभी ऐसा खालीपन महसूस करते हैं.

वहीं, कुछ व्यक्तियों ने कहा कि सोलो एजिंग का उनपर पॉजिटिव असर पड़ा है. लगभग 32% बुर्जुगों का कहना है कि अकेले रहने के बाद उनकी मेंटल हेल्थ में काफी सुधार हुआ है. 

एजवेल फाउंडेशन के फाउंडर हिमांशु राठ ने इन चुनौतियों का समाधान करने की बात कही है. उनके मुताबिक जरूरी है कि बुजुर्गों से सभी बात करें. युवा परिवार के सदस्यों को बुजुर्ग सदस्यों की जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए. बात करने से आप कई हद तक पीढ़ियों के बीच की खाई को पाटने का काम कर सकते हैं. 


 

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