कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका पूरी तरह से कोई इलाज नहीं है. हालांकि, सही तरह से ट्रीटमेंट हो तो इसके खतरे को कम किया जा सकता है. अब विश्व कैंसर डे (4 फरवरी) से पहले, एक गुड न्यूज आई है. साउथेम्प्टन यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर कैंसर इम्यूनोलॉजी की एक नई स्टडी में ऐसी थैरेपीयूटिक एंटीबॉडी के बारे में पता लगा है जिससे कैंसर के इलाज में मदद मिल सकती है.
कैसे करता है ये काम?
बताते चलें कि एंटीबॉडी वायरस और बैक्टीरिया का पता लगाते हैं और उन्हें टैग करते हैं ताकि शरीर का इम्यून सिस्टम उन्हें नष्ट कर सके. दूसरे इन्फेक्शन को रोकने में मदद करने के लिए हमारा इम्यून सिस्टम इन एंटीबॉडी को इन टार्गेट्स पर ग्रिप बनाए रखने में मदद करता है. ताकि बाद में वे इसे पहचान सकें और खुद इसे ट्रीट कर सकें. बस यही मेथड कैंसर के लिए इम्यूनोथेरेपी ट्रीटमेंट में भी इस्तेमाल होता है.
डायरेक्ट टारगेट एंटीबॉडी को कैंसर सेल को ढूढ़ने और उन्हें सबको एक जगह बांधने के लिए डिजाइन किया गया है ताकि हमारा इम्यून सिस्टम उन्हें खत्म कर सके. बता दें, ये एंटीबॉडी ट्रीटमेंट पिछले कुछ साल में कई सारे कैंसर को ट्रीट करने में सफल साबित हुआ है.
कैंसर के इलाज में मदद कर सकती है
अब नेचर में प्रकाशित हुई एक नई स्टडी में, साउथेम्प्टन के शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि एक अलग प्रकार की थैरेपीयूटिक एंटीबॉडी, जिसे "इम्युनोमॉड्यूलेटरी एंटीबॉडी" कहा जाता है, कैंसर के इलाज में मदद कर सकती है. इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एंटीबॉडी ट्यूमर सेल की बजाय इम्युनिटी सेल पर रिसेप्टर्स को बांधती है और कैंसर सेल को मारने के लिए उन्हें और ज्यादा एक्टिव और बेहतर बनाने में मदद करती है.
दुनियाभर में चल रही है रिसर्च
सेंटर फॉर कैंसर इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर मार्क क्रैग ने कहा: "हालांकि जो एंटीबॉडी ड्रग्स अप्रूव्ड हैं उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है. 100 से अधिक अभी क्लिनिक में हैं. इसलिए, सुपर-चार्ज करने के लिए नई रणनीति विकसित की जा रही है. एफिनिटी इंजीनियरिंग जैसी तकनीकों के माध्यम से एंटीबॉडी रोगियों के लिए बेहतर ट्रीटमेंट में मदद कर सकती है. हमारे अध्ययन से पता चलता है कि कुछ चीजों को बदलकर हम एंटीबॉडी की मदद से कैंसर को प्रभावी रूप से ठीक कर सकते हैं.”
गौरतलब है कि कई सारी रिपोर्ट्स बताती हैं कि इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एंटीबॉडीज पर दुनिया के कई सारे क्लिनिक में तेजी से काम चल रहा है. लेकिन इम्यूनोथेरेपी हमेशा सभी के लिए काम नहीं करती है. हालांकि, अगर ये उपचार सफल हो जाता है तो कई सारे कैंसर मरीजों को फायदा हो सकता है.